वैसे तो कोई भी स्मोकर सिगरेट पीने के ढेर सारे बहाने गिना सकता है। जब आप उसे छोड़ने को कहें तो वह अपनी आदत बदलने से साफ इनकार देता है। कई लोगों का तो यह भी कहना है कि वे अवसाद और चिंता से दूर रहने के लिए स्मोकिंग करते हैं। पर, नवीनतम शोध के मुताबिक यदि आप धूम्रपान छोड़ते हैं तो वह आपके मिजाज को प्रसन्न बना सकता है। यह रिसर्च निकोटीन एंड टूबोको रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुई है।
रिसर्चर क्रिस्टोफर केलर ने बताया कि धूम्रपान छोड़ना किसी इंसान के लिए डर की बात नहीं, बल्कि सुखद दीघार्यु जिंदगी के लिए एक छोटा सा त्याग है। यदि उन्हें अपनी जिंदगी में खुशियों की बरसात करनी है तो निश्चय ही उन्हें धूम्रपान छोड़ना होगा। हर एक सिगरेट का कश आपकी जिंदगी के कुछ पल आपसे छीन लेता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि कोई भी सिगरेट के साथ स्मोकर कुछ पल के लिए तो आराम महसूस करता है, बाकी समय एक लंबे अवसाद में ही बिताता है।
केलर ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 236 स्मोकरों पर रिसर्च किया। इनमें पुरूष और औरत दोनों शामिल थे। इन लोगों को निकोटीन की पुड़िया दी गई। एक निर्धारित तारीख के बाद उन्हें सिगरेट छोड़ना था। कुछ लोगों को धूम्रपान छोड़ने के लिए खास सलाह भी दी गई। निर्धारित तारीख से 1, 2, 8,16 और 18 सप्ताह पहले प्रतियोगियों के अवसाद को मापा गया।
रिसर्चरों ने पाया कि जिन लोगों ने धूम्रपान अस्थायी रूप से छोड़ दिया, उनमें कई बदलाव देखे गए। अब उनका मिजाज पहले की अपेक्षा काफी खुश था। इससे यह साफ पता चलता है कि स्मोकिंग छोड़ना आपकी सेहत के अलावा एक टॉनिक है। यह टॉनिक आपको शारीरिक और मानसिक रूप से तंदुरुस्त करती है।
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
Today Thought
Never eject a day in ur profession because
a good day gives us Business &
bad day gives us Experience
a good day gives us Business &
bad day gives us Experience
सोमवार, 29 नवंबर 2010
जिंदाबाद जिंदगी
26/11.....2008.... जब आतंकियों की गोलियों से रात की चादर मुंबई ही नहीं, पूरे देश पर फ़ैल गई थी| लेकिन हर रात के बाद एक सुबह होती है, हर अन्धकार का अंत होता है और जिंदगी की सुगंध चारों ओर बहती है| उसी तरह देश की शान होटल ताज का घायल गुम्बद आज हमें हौंसले ऊँचे रखने की प्रेरणा देता है|
धुंए में लिपटे हुए लाल गुम्बद से निकलती सुर्ख लपटों की रोशनी आज भी आँखों में जलती हुई दिखाई देती है और सारा मंजर याद आ जाता है| मुंबई पर हमला भारतीय गणतंत्र के इतिहास का सबसे घटक, भयानक और सबसे अधिक सबक सिखाने वाला था| जान माल के भारी नुकसान के अलावा हमले में पुलिस के जवानों, कमांडो और विदेशी नागरिकों तक को निशाना बनाया गया| जो देश महाशक्ति बनने की महत्वकांक्षा रखता है, वह विश्व के सामने विशाल वृक्ष के समान नजर आया जिसका तना खोखला है| यह घटना भारत के बुद्धिजीवीयों के आंतरिक विचारों को पूरे देश के सामने लाती है| मुंबई हमले के दो बरस बाद जब सारा देश भारत भूमि पर हुए आतंकी आक्रमण का स्मरण कर रहा है तब यह प्रश्न मन में उठता है कि इस हमले की साजिश रचने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही अब तक क्यों नहीं हुई ?
दस आतंकी पाकिस्तान के कराची से स्टीमर पर सवार होकर निकलते है, बड़े आराम से गेट ऑफ इंडिया के करीब मुंबई में दाखिल होते है और चार गुटों में बंट कर पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की तरफ बढ़ जाते है| एक गुट ताज पर कब्ज़ा करता है, दूसरा लिओपोल्ड कैफे और ओबरोए होटल पर धावा बोलता है, तीसरा छब्द हाउस में घुस जाता है और चौथा छत्रपति रेलवे स्टेशन पर पहुँचता है| वे जहाँ भी जाते हैं खून की नदियाँ बहा देते हैं | बड़ी निर्दयिता से निर्दोष लोगों का कत्लेआम किया जाता है| जब तक उनमें से 9 मारे जाते हैं और 1 जिंदा पकड़ा जाता है, तब तक वे 180 लोगों को मौत के घाट उतार चुके थे| यह कोई सामान्य तौर पर होने वाला रूटीन आतंकी हमला नहीं था, बल्कि इस घटना को पाकिस्तान की सेना, वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी और आतंकवादियों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया था| इसके सबूत भारत के पास मौजूद है| पहले तो पाकिस्तान ने इस घटना में अपनी सरजमीं से किसी के भी शामिल होने से इन्कार किया, लेकिन जब सबूतों और पूरी दुनिया का दबाव पड़ा तो उसने बड़ी मुश्किल से स्वीकार किया कि हां इस घटना को उसी की सरजमीं से अंजाम दिया गया था|
आतंकी हमला होने के बाद जिस तत्परता की आवश्यकता थी नहीं दिखाई दी| आतंकियों ने जिस खतरनाक रफ़्तार और योजना से हमलों को अंजाम दिया, उसके विपरीत राज्य और केंद्र सरकार का सुरक्षा तंत्र बिल्कुल ही लाचार नजर आया| इस ढांचे ने खुद को सँभालने में काफी समय लिया, तो ये देश को क्या सँभालते ? इस घटना के सन्दर्भ में सवाल ये उठता है कि मुंबई पर 26/11 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने क्यों कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की ? मुंबई को लहूलुहान कर भारत की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले आतंकियों के संरक्षक और समर्थक आज भी पाकिस्तान में खुले आम घूम रहे हैं| जबकि हमले के दौरान ही ये सन्देश पकड़ में आ गया था कि इसके सूत्रधार पाकिस्तान में बैठे है और हमला कर रहे आतंकियों को आईएसआई और पाक सेना के आला अधिकारीयों की तरफ से निर्देश मिल रहे है, तब भारत खामोश क्यों बैठा रहा ? संसद पर हमले के बाद यह हमारी ख़ामोशी का ही नतीजा था कि आतंकवादियों का हौंसला इतना बढ़ा गया कि उन्होंने मुंबई जैसे खतरनाक हमले को अंजाम देने की हिम्मत जुटाई| यदि भारत ने आक्रामक जवाब उसी समय दे दिया होता तो मुंबई की यह घटना शायद ही होती भारत की इस कमजोरी का फायदा पाकिस्तान बार-बार उठता है| आखिर यह तथ्य है कि हम जिस तरह संसद पर हमले को याद करते है उसी तरह कारगिल युद्ध को भी याद करने की रस्म अदा कर ली जाती है| लेकिन हम है कि अपनी नरम निति में कोई बदलाव ही नहीं लाना चाहते| कठोर कार्यवाही का अर्थ केवल युद्ध छेड़ना ही नहीं होता बल्कि इसके लिए मजबूत राजनितिक इच्छाशक्ति की जरुरत है| आतंकवाद को खत्म करने के लिए जीरो टालरेंस की निति अपनानी होगी और पाकिस्तान से सभी तरह के रिश्ते ख़त्म करने होंगे| सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि मुंबई हमले के सन्दर्भ में भारत सरकार अपने उस वादे पर भी कायम नहीं रह सकी जो उसने देश दुनिया के सामने दृढ़तापूर्वक किया था | देश की जनता को यह भरोसा दिलाया था कि इस हमले के जिम्मेदार लोगों को हर हाल में न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाएगा| लेकिन भारत ने ये सब भूल कर पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया| यह भी कम शर्मनाक नहीं है कि हमले के दौरान रंगे हाथ पकड़ा गया आतंकी कसाब आज भी जेल की रोटियां तोड़ रहा है| आखिर देशवासी ये क्यों न महसूस करे कि उनके जख्मों पर नमक छिड़का जा रहा है| भारत सरकार चाहे जैसे भी दावे कर देश की जनता को सांत्वना देने का प्रयास क्यों न करें, वह पाकिस्तान पर दबाव बनाने में समर्थ नहीं है| यह भयानक घटना तब हुई जब भारत अनेक आतंकी हमलों की मार झेल चुका था | 2008 में ही 13 मई को जयपुर में 8 बम विस्फोटों में 80 लोगों की मौत हुई, 26 जुलाई को अहमदाबाद में श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों में 53 लोग मारे गए और दिल्ली में हुए 8 धमाकों में 26 लोग मौत के मुंह में समा गए | दुर्भाग्य से, ऐसा लगता है कि भारत ने न सुधरने की कसम खा रखी है, जिस कारण बार -बार हमले होते हैं| पाकिस्तान में जब बाढ़ आई तो उसने सहयोग लेने से मना कर दिया| इसके बावजूद भारत ने उसे 2.5 करोड़ डॉलर दिए, जो एक तरह से उनके मुंह में जबरन ठुसने जैसा था | आज इस पर विचार करने की जरुरत है कि क्या मजबूत पाकिस्तान वाकई भारत के हित में होगा ? पाकिस्तान अपने यहाँ से भारत में आतंकी हमलों का ताना-बाना बुनता रहता है और इन्हें अंजाम देता रहता है, लेकिन दिल्ली में बैठी सरकार सिर्फ अटकलें ही लगाती रहती है कि कब कहाँ हमला हो सकता है और इन्हें कैसे रोका जाये ? हमारे प्रधानमंत्री का यह कानूनी दायित्व है कि वह देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को सुनिश्चित करे | परन्तु उनके कामों को देखा कर यह नहीं कहा जा सकता कि वे अपनी सवैंधानिक जिम्मेदारी को भी पूरा करने में ईमानदार रहे हैं | हमारी सरकार गुलाम मानसिकता की शिकार है, इसलिए हमारा व्यवहार व कार्यवाही का स्तर भी गुलामों जैसा ही है| हम हर मामले में अमेरिका का मुंह ताकते रहते हैं | अगर दूसरी तरफ देखा जाये - आतंकवाद के पहले चरण में कश्मीरी पंडित और अन्य निर्दोष लोगों को घाटी में मौत के घाट उतारा गया था | इस बुद्धिजीवी वर्ग ने तब भी इनके प्रति सहानुभूति का प्रदर्शन नहीं किया था | दूसरी तरफ इन्हीं में से कुछ ने कश्मीरी युवाओं के खिलाफ सवाल उठाते हुए आतंकवाद को जायज ठहराने की कोशिश की| जिसके कारण देश को बेहिसाब नुकसान उठाना पड़ा| आतंक नामक कैंसर को तो शुरुआत में ही ऑपरेशन कर ख़त्म कर देना चाहिए था| लेकिन अब आतंक की ये कोशिकाएं पूरे शरीर में फैल गई है और भारत के महत्वपूर्ण अंगों पर वार कर रही हैं| इसके खात्मे के लिए अब लम्बा समय और भरी संसाधन चाहिए | पहले ही हजारों जानें और हजारों करोड़ों रूपये इसकी भेंट चढ़ चुके हैं | अगर हम 26/11 की पुनरावृति से बचना चाहते है तो खुद से कुछ सवाल पूछने होंगे - क्या हम अपने शासन तन्त्र में सुधर ला रहे हैं और अपनी राजसता की कमियों को दूर करने की दिशा में कम कर रहे हैं? क्या हम बुद्धिजीवी तबके को नई दिशा दे रहे है? क्या हम लोगों में नया रुख और दृष्टिकोण पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं ?
इस घटना की कहानी बयां करने के लिए आंसू भी कम पड़ जाते है.......|
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
Learn From Failure..........
I will not say I failed 1000 times, I will say that
I discovered 1000 ways that can cause failure.
Thomas Alva Edison
I discovered 1000 ways that can cause failure.
Thomas Alva Edison
Everybody Can Made Mistakes
If someone feel that he never made a mistake in their life,
It means they have never tried a new thing in their life.
Albert Einstein
It means they have never tried a new thing in their life.
Albert Einstein
Napoleon said...........
The world suffers a lot…Not because of the violence of bad people,But because of the silence of good people!
Problems Tells U R On Right Path
In a day when you dont come accross any problems,
You can be sure that you are travelling in a wrong path.
SWAMI VIVEKANAND
You can be sure that you are travelling in a wrong path.
SWAMI VIVEKANAND
If u Luv 2 All Then U luv 2 God
If you start judging people, you will be having no time to love them,
If we cannot love the person whom we see, then how come we love god whom we cannot see.
MOTHER TERESA
If we cannot love the person whom we see, then how come we love god whom we cannot see.
MOTHER TERESA
Change Urself World Automatically Changed
Everyone thinks of changing the world,
But no one thinks of changing himself.
LEO TOLSTOY
But no one thinks of changing himself.
LEO TOLSTOY
What is Real Winning
Winning does'nt always mean being first,
Winning means you are doing better than you have done before.
BONNIE BLAIR
Winning means you are doing better than you have done before.
BONNIE BLAIR
बुधवार, 24 नवंबर 2010
Only Challenges Make Us great
There are no great people in this world,
Only great challenges which ordinary people rise to meet.
William Frederick Halsy, Jr
Only great challenges which ordinary people rise to meet.
William Frederick Halsy, Jr
Be Happy Today...........
Each morning when I open my eyes I say to myself:
I, not events, have the power to make me happy or unhappy today.
I can choose which it shall be. Yesterday is dead, tomorrow hasn't arrived yet.
I have just one day, today, and I'm going to be happy in it.
-Groucho Marx
I, not events, have the power to make me happy or unhappy today.
I can choose which it shall be. Yesterday is dead, tomorrow hasn't arrived yet.
I have just one day, today, and I'm going to be happy in it.
-Groucho Marx
Believe In Urself
If you believe you can, you probably can. If you believe you won't, you most assuredly won't. Belief is the ignition switch that gets you off the launching pad.
Denis Waitley
Denis Waitley
Should Be Understand
A man may fall many times, but he won't be a failure until
He says that someone pushed him.
Elmer G. Letterman
He says that someone pushed him.
Elmer G. Letterman
Order Of Success
In order to succeed, your desire for success
Should be greater than your fear of failure.
Bill Cosby
Should be greater than your fear of failure.
Bill Cosby
Measure a man's success
I don't measure a man's success by how high he climbs
but how high he bounces when he hits bottom.
George S. Patton
but how high he bounces when he hits bottom.
George S. Patton
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
टीवी की सांस्कृतिक समस्या
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक बार फिर से हस्तक्षेप किया है| उसके पास शिकायते थी और उसके सामने समस्याएं भी थी कि "बिग बॉस" और "राखी का इन्साफ" नमक रियलिटी शो में जिस तरह के सीन और जैसी अशिष्ट भाषा का दिखाई जा रही है वह औचित्य कि हदों को पार कर रही है| गाली गलौच की मात्र बढ़ रही है और अशोभनीय दृश्यों की मात्र बढ़ रही है| चिंतित मंत्रालय और क्या करता ? उसने जो किया वो ठीक किया | चैंनलों के कार्यक्रमों को प्राइम टाइम से हटा कर रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक दिखने का आदेश दिया है| यह भी कहा गया है कि इन्हें दिखने से पहले चेतावनी दी जनि चाहिए कि यह कार्यक्रम बछो के देखने लायक नहीं है| यह भी कहा कि न्यूज़ चैनल अपने प्राइम टाइम की या उससे पहले की ख़बरों में कई बार ऐसे कार्यक्रमों के प्रोमोज दिखाते रहते हैं| यह बंद होना चाहिए| स्पष्ट है कि आदेश इन कार्यक्रमों को को ' रेगुलेट ' करने के लिए आया, न कि इन पर प्रतिबंध लगाने के लिए आया| लेकिन चैनलों ने इस आदेश को आजादी में हस्तक्षेप माना है| इस पृष्ठ भूमि ने एक बड़ी सांस्कृतिक बहस के मुद्दे खोल दिए है| इस मसले पर आम जनता के पक्ष में बोलती सरकार का पक्ष है कि ये रियलिटी शो "रियलिटी" के नाम पर कृत्रिम, फूहड़, अशलील, और अमर्यादित जीवन शैली और व्यवहार को दिखाते रहते हैं| कार्यक्रमों और निर्माताओं को बढ़िया 'टीआरपी' मिलती है| कार्यक्रमों को बनाने वालों का कहना है कि जनता को हम वही दिखाते है जो वो देखना चाहती है| देखने के लिए उनकी ओर से कोई जबरदस्ती नही है| आपको देखना है तो आप देखें| कार्यक्रम के चुनाव का हक आपका है| इस प्रक्रिया में सरकार का हस्तक्षेप ठीक नहीं| यह तो सरासर तानाशाही हुई| अधिकांश हिन्दुस्तानी घरों में केवल एक ही टीवी सेट होता है और उसी से पूरा परिवार टीवी देखता है| हिस तरह की संस्कृति इन कार्यक्रमों में दिखाई जाती है वह तो वयस्कों की दुनिया के और अधिक उलट है| इस प्रक्रिया में 'नागरिक स्पेस' और 'नागरिकता' के मूल्य नहीं बनते और न ही एक दूसरे को समझने के मूल्य बन पते है| न ही नागरिक संस्कृति बनती है और न ही कहीं रचनात्मकता नजर आती है, इनके अलावा क्रूरता, हिंसक व्यवहार, नंगई से भरी भाषा का निर्माण होता है| इससे समाज पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण पामेला एंडरसन है वो एपिसोड तो किसी से भी छुपे नहीं है| अब तो असहिष्णुता और हिंसा आम बात हो गई है| अगर दूसरी और हम देखे तो राखी का इन्साफ भी किसी से पीछे नहीं है| राखी ने तो एक व्यक्ति को टीवी पर ही 'नामर्द' कह दिया| कुछ दिन बाद वह मर गया| उसके घर वालों का कहना है कि नामर्द कहने से उसने अपने आप को अपमानित महसूस किया और डिप्रेशन के कारण मर गया| उसके बाद उसके प्रति हमदर्दी जताने तक के लिए न तो राखी आई और न ही चैनल आया|
क्या आम आदमी आपके कार्यक्रम के लिए 'गिनिपग' है, जिन्हें दिखा कर आप करोडो कमाते हो और जब जिम्मेदारी की बात आई तो पीठ दिखाते है? ऐसे कार्यक्रमों से लोग कई ऐसे ही सवाल पूछते है जिनके जवाब नदारद रहते हैं| इस तरह के कार्यक्रमों पर तो सवाल उठने ही चाहिए, बहस होनी ही चाहिए , और जवाबदेही भी फिक्स होनी चाहिए|
इमोशनल अत्याचार और रोडीज भी ऐसे ही रियलिटी शो है, जिन पर बहस की जानी चाहिए कि वे दर्शकों को कौन से मूल्य देते है ? किसी कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाना एक अलग बात है और उसे रेगुलेट करना, उनका नियमन करना एक अलग बात | प्रतिबंध का तो कोई ओचित्य ही नही है , लेकिन नियमन की जरुरत तो है |अरबों रुपयों के टीवी मनोरंजन उद्योग के लिए हमारे यहाँ किसी भी तरह के कंटेंट की निगरानी की व्यवस्था नहीं है . इसलिए सांस्कृतिक समस्याए पैदा होती रहती है . अदालत का फैसला जो भी हो , यह उचित अवसर है की निजी मनोरंजन चैंनल सरकार के साथ बैठ कर वैसी ही एक आत्मनियांत्रिक आचार सहिंता के बारे में सोचें जिस तरह की अचार सहिंता 26 नवम्बर के आतंकी हमले के बाद न्यूज़ ब्रोडकास्ट ने बने है ......
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
ईद-उल-जुहा का महत्व
ईद-उल-जुहा अर्थात बकरीद मुसलमानों का प्रमुख त्योहार है। इस दिन मुस्लिम बहुल क्षेत्र के बाजारों की रौनक बढ़ जाती है। बकरीद पर खरीददार बकरे, नए कपड़े, खजूर और सेवईयाँ खरीदते हैं। बकरीद पर कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है। इसलिए हर कोई इस दिन कुर्बानी देता है।
इस्लामी साल में दो ईदों में से एक है बकरीद। ईद-उल-जुहा और ई-उल-फितर। ईद-उल-फिरत को मीठी ईद भी कहा जाता है। इसे रमजान को समाप्त करते हुए मनाया जाता है। एक और प्रमुख त्योहार है ईद-उल-मीनाद-उन-नबी, लेकिन बकरीद का महत्व अलग है। इसे बड़ी ईद भी कहा जाता है। हज की समाप्ति पर इसे मनाया जाता है।
इस्लाम के पाँच फर्ज माने गए हैं, हज उनमें से आखिरी फर्ज माना जाता है। मुसलमानों के लिए जिंदगी में एक बार हज करना जरूरी है। हज होने की खुशी में ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है। यह बलिदान का त्योहार भी है। इस्लाम में बलिदान का बहुत अधिक महत्व है। कहा गया है कि अपनी सबसे प्यारी चीज रब की राह में खर्च करो। रब की राह में खर्च करने का अर्थ नेकी और भलाई के कामों में।
ईद उल अजहा पर कुर्बानी दी जाती है। यह एक जरिया है जिससे बंदा अल्लाह की रजा हासिल करता है। बेशक अल्लाह को कुर्बानी का गोश्त नहीं पहुँचता है, बल्कि वह तो केवल कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है। अल्लाह को पसंद है कि बंदा उसकी राह में अपना हलाल तरीके से कमाया हुआ धन खर्च करे। कुर्बानी का सिलसिला ईद के दिन को मिलाकर तीन दिनों तक चलता है।
बुधवार, 10 नवंबर 2010
नई एम्बुलेंस सेवा का शुभारम्भ करते अशोक तंवर
सोमवार, 8 नवंबर 2010
आतंक के खिलाफ सशक्त संदेश: ओबामा
9 नवम्बर, नई दिल्ली | अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा भारत में पहुँच चुके हैं, और ताज होटल में रुके है | राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने कहा कि ताज होटल में उनका ठहरना आतंकवाद के खिलाफ उन लोगों को एक सशक्त संदेश है जिन्होंने मुंबई को दर्दनाक कुए में धकेल दिया था, और मांग की कि भयावह मुंबई आतंकी हमले के अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए| उन्होंने मुंबई आतंकी हमले का शिकार हुए लोगों को श्रद्धांजलि दे कर भारत की अपनी तीन दिवसीय यात्रा शुरू की, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच आतंकवाद विरोधी साझेदारी को और मजबूत करने की जरुरत है| यह तभी होगा जब हम एकजुट होकर काम करेंगे और आतंकवाद की जड़ों को मिलकर काटेंगे| बराक ओबामा भारत में कई मकसद लेकर आए है और साथ ही उन्होंने 20 सम्झोतो पर भी बात की| इस दौरान अपने छह मिनट के भाषण में उन्होंने मुंबई और भारत की जनता की संकल्प शाक्ति और संयम की सराहना की जिन्होंने मुंबई हमले में ग्रस्त हुए लोगों को एक साथ संभाला है| उन्होंने होटल के महाप्रबंधक कर्मवीर कांग का विशेष उल्लेख किया जो उस हमले में अपने परिजनों के मारे जाने के बावजूद 60 घंटे के उस भयावह हालात में काम करते रहे| उन्होंने कहा, ‘ताज भारतीय जनता की शक्ति का प्रतीक है|’ अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस भारतीय आया का भी जिक्र किया जिसने चाबड़ हाउस में मारे गए यहूदी दंपत्ति के बच्चे को बचाया|
रविवार, 7 नवंबर 2010
Today's thought for happy life...
Happiness always looks small, when you hold it in your hands...!!!!!
But when you learn to share it, you will realize,
How big and precious it is!!!!
But when you learn to share it, you will realize,
How big and precious it is!!!!
भारत-पाक के बीच मध्यस्थता में अमेरिका का कोई इरादा नहीं : ओबामा
नई दिल्ली/मुंबई। | |
भारतीय नेतृत्व से सामरिक वार्ता शुरू होने से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने रविवार को स्पष्ट किया कि उनका देश भारत-पाक संबंधों के बारे में अपने को थोपेगा नहीं। मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के संबंधों में मध्यस्थता का अमेरिका का कोई इरादा नहीं है। साथ ही उन्होंने माना कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में पाकिस्तान की प्रगति अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। मुंबई का अपना दो दिवसीय दौरा खत्म कर ओबामा रविवार दोपहर बाद नई दिल्ली पहुंचे, जहां प्रोटोकाल को दरकिनार कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। तीखे सवालों से रूबरू होना पड़ा मायानगरी के सेंट जेवियर कॉलेज के छात्रों से भेंट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति को कई तीखे सवालों से रूबरू होना पड़ा। अमेरिका आखिर पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित क्यों नहीं कर रहा, इस सवाल के जवाब में ओबामा ने कहा हमारी विदेश नीति यह है कि पाकिस्तान के साथ संबंध रखते हुए उसे यह बताया जाए कि अमेरिका एक स्थिर, खुशहाल और शांतिपूर्ण पाकिस्तान से अधिक कुछ नहीं चाहता। हम आतंकवाद रूपी कैंसर के सफाए के लिए पाक सरकार के साथ काम कर रहे हैं । पाक सरकार अब उस खतरे को समझ रही है जो उसकी सीमाओं के भीतर विद्यमान है। विवादित मुद्दों की ओर बढ़ना चाहिए स्थिर और शांतिपूर्ण पाकिस्तान को भारत के हित में बताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि समय के साथ भारत और पाकिस्तान में विश्वास बढ़ेगा और वार्ता कम विवादास्पद मुद्दों से शुरू होकर अधिक विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने की ओर बढ़ेगी। गौरतलब है कि नई दिल्ली लगातार इस बात की वकालत करता रहा है कि भारत-पाक को पहले कम विवादित मुद्दों पर चर्चा शुरू करनी चाहिए और इसके बाद ही कश्मीर जैसे अधिक विवादित मुद्दों की ओर बढ़ना चाहिए। ओबामा ने कहा कि भारत और पाकिस्तान साथ-साथ चलकर खुशहाली हासिल कर सकते हैं। ऐसा तुरंत ही नहीं हो जाएगा, लेकिन अंतिम लक्ष्य यह होना चाहिए। दोनों पड़ोसी देशों के संबंधों को बेहतर बनाने की कामना करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका इस प्रक्रिया का साझेदार बन सकता है, लेकिन भारत और पाकिस्तान को खुद किसी समझौते पर पहुंचना होगा। मुंबई का दौरा पूरा कर ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दूसरे चरण में नई दिल्ली पहुंचे, पालम एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पत्नी गुरशरण कौर के साथ उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। वाशिंगटन में ओबामा के पहले राजकीय अतिथि होने का सम्मान हासिल कर चुके मनमोहन ने इस स्वागत के जरिए अमेरिकी मेहमान की भारत में विशेष अहमियत का संदेश दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति इस दौरान केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, विदेश सचिव निरुपमा राव और अमेरिका में भारतीय राजदूत मीरा शंकर समेत कई अधिकारियों से भी मिले। चाणक्यपुरी स्थित अमेरिकी दूतावास रूजवेल्ट हाउस में भी कुछ पल गुजारने के बाद ओबामा शाम को हुमायूं का मकबरा देखने भी पहुंचे। |
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा चलाई गई हाईटेक डेयरी स्कीम
सिरसा, 2 नवम्बर (रेखा/निधि)| जिला में बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाने, शुद्व व पूर्ण मात्रा में दूध की उपलब्धता व अच्छी नस्ल के पशुओं की बढ़ौतरी के लिए पशुपालन एवं डेयरी विभाग हरियाणा द्वारा हाईटेक डेयरी स्कीम चलाई गई है| जिसके तहत योग्य प्रार्थियों का चयन करके उन्हें डेयरी प्रशिक्षण दिया जाता है और तत्पश्चात प्रार्थी का ऋण प्रार्थना पत्र संबंधित क्षेत्र के बैंक में ऋण हेतु भेज दिया जाता है।
यह जानकारी देते हुए जिला उपायुक्त श्री सी.जी रजिनीकांथन ने बताया कि विभाग द्वारा चलाई गई अनूठी स्कीम के तहत बेरोजगार लोग दूध के क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित कर सकते है। यह एक अनूठी स्कीम है। ऋण स्वीकृत होने के बाद 20 दूधारु पशु यूनिट द्वारा स्थापित करवाए जाते है और विभाग द्वारा 8.50 रुपए के टर्म लोन का 15 प्रतिशत भाग अनुदान के रुप में इस स्कीम के तहत दिया जाता है तथा साथ-साथ में पशुओं का बीमा भी किया जाता है और पशुओं के बीमा प्रीमियम की राशि का 75 प्रतिशत भाग विभाग द्वारा दिया जाता है। इस स्कीम के तहत जिला में अब तक 12 हाईटेक डेयरी यूनिट स्थापित करवाई गई है तथा 15 लाख रुपए अनुदान राशि के रुप में वितरित किए गए है।
उन्होंने बताया कि इसके साथ-साथ विभाग द्वारा बेरोजगार ग्रामीण व शहरी शिक्षित व अद्र्धशिक्षित युवक-युवतियों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए मिनी डेयरी योजना भी चलाई गई है| जिसमें सर्वप्रथम योग्य प्रार्थियों का चयन करके 11 दिन का डेयरी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद प्रार्थियों से भिन्न-भिन्न बैंकों में ऋण आवेदन मांगा जाता है और उन्हें ऋण दिलवाकर उन्हें रोजगार प्रदान करवाया जाता है। यह योजना एक छोटे स्तर की योजना है जिसके तहत 10, 5 व 3 दूधारु पशु यूनिट स्थापित करवाई जाती है और विभाग द्वारा दूधारु पशु यूनिट का 15 प्रतिशत भाग अनुदान के रुप में दिया जाता है तथा एक पशु की कीमत 30 हजार रुपए अधिकतम रखी गई है। इस योजना में भी पशुओं के बीमों के लिए बीमा प्रीमियम की राशि का 75 प्रतिशत भाग विभाग द्वारा दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि जिला में मिनी डेयरी योजना के तहत करीब एक वर्ष में 48 यूनिटों की स्थापना की गई है तथा 11 लाख रुपए की राशि अनुदान के रुप में दी गई है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे विभाग द्वारा चलाई गई रोजगार परक योजनाओं का पूरा लाभ उठाए और सरकार की हिदायतों अनुसार ऋण का भुगतान भी करे। उन्होंने कहा कि सरकार बेरोजगार लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से विभिन्न विभागों के माध्यम से योजनाएं चलाती है और लोगों को इनका भरपूर फायदा उठाना चाहिए।
यह जानकारी देते हुए जिला उपायुक्त श्री सी.जी रजिनीकांथन ने बताया कि विभाग द्वारा चलाई गई अनूठी स्कीम के तहत बेरोजगार लोग दूध के क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित कर सकते है। यह एक अनूठी स्कीम है। ऋण स्वीकृत होने के बाद 20 दूधारु पशु यूनिट द्वारा स्थापित करवाए जाते है और विभाग द्वारा 8.50 रुपए के टर्म लोन का 15 प्रतिशत भाग अनुदान के रुप में इस स्कीम के तहत दिया जाता है तथा साथ-साथ में पशुओं का बीमा भी किया जाता है और पशुओं के बीमा प्रीमियम की राशि का 75 प्रतिशत भाग विभाग द्वारा दिया जाता है। इस स्कीम के तहत जिला में अब तक 12 हाईटेक डेयरी यूनिट स्थापित करवाई गई है तथा 15 लाख रुपए अनुदान राशि के रुप में वितरित किए गए है।
उन्होंने बताया कि इसके साथ-साथ विभाग द्वारा बेरोजगार ग्रामीण व शहरी शिक्षित व अद्र्धशिक्षित युवक-युवतियों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए मिनी डेयरी योजना भी चलाई गई है| जिसमें सर्वप्रथम योग्य प्रार्थियों का चयन करके 11 दिन का डेयरी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद प्रार्थियों से भिन्न-भिन्न बैंकों में ऋण आवेदन मांगा जाता है और उन्हें ऋण दिलवाकर उन्हें रोजगार प्रदान करवाया जाता है। यह योजना एक छोटे स्तर की योजना है जिसके तहत 10, 5 व 3 दूधारु पशु यूनिट स्थापित करवाई जाती है और विभाग द्वारा दूधारु पशु यूनिट का 15 प्रतिशत भाग अनुदान के रुप में दिया जाता है तथा एक पशु की कीमत 30 हजार रुपए अधिकतम रखी गई है। इस योजना में भी पशुओं के बीमों के लिए बीमा प्रीमियम की राशि का 75 प्रतिशत भाग विभाग द्वारा दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि जिला में मिनी डेयरी योजना के तहत करीब एक वर्ष में 48 यूनिटों की स्थापना की गई है तथा 11 लाख रुपए की राशि अनुदान के रुप में दी गई है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे विभाग द्वारा चलाई गई रोजगार परक योजनाओं का पूरा लाभ उठाए और सरकार की हिदायतों अनुसार ऋण का भुगतान भी करे। उन्होंने कहा कि सरकार बेरोजगार लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से विभिन्न विभागों के माध्यम से योजनाएं चलाती है और लोगों को इनका भरपूर फायदा उठाना चाहिए।
हरियाणा दिवस पर कन्या महाकुआ पूजन
कुआपूजन करवाती अतिरिक्त उपायुक्त श्रीमती पंकज चौधरी |
इससे पूर्व सिरसा कल्ब के प्रांगण में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए अतिरिक्त उपायुक्त श्रीमती पंकज चौधरी ने कहा कि आज समाज में सबसे बड़ी लड़ाई कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ है क्योंकि बढता लिंगानुपात हमारे समाज, देश व प्रदेश में चिंता का विषय है। हम सबको मिलकर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ सामुहिक रूप से प्रयास करने होंगे और यह तभी संभव होगा जब इस कार्य में आमजन की भागीदारी सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि हरियाणा दिवस के मौके पर हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम बेटी को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यही है कि बेटी बचाओ अभियान में सभी को साथ लेकर कार्य किया जाए। इस कार्यक्रम के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक सार्थक पहल की गई है जिसमें लोगों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया है। उन्होंने जिला के स्थानीय डॉक्टरों की प्रशंसा करते हुए कहा कि चिकित्सकों ने मिलकर सामुहिक रुप से यह फैसला किया है कि वे किसी भी सूरत में अपने यहां अस्पताल के अंदर लिंग जांच नहीं करेंगे और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लोगों को जागरुक भी करेंगे।
श्रीमती पंकज चौधरी ने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि मात्र सरकार द्वारा कानून बनाकर किसी भी सामाजिक बुराई को समाप्त नहीं किया जा सकता। सामाजिक बुराईयों को मिटाने के लिए समाज को खुद ही आगे आना होगा। यह बड़े हर्ष की बात है कि अब कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने के लिए स्वयं महिलाएं आगे आई है। उन्होंने कहा कि इस महाकुआ पूजन अभियान के आने वाले समय में सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे। समाज में कोई भी व्यक्ति लड़का और लड़की में मतभेद न समझे क्योंकि आज लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से कही आगे हे और उन्होंने विभिन्न पटलों पर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है।
उन्होंने कहा कि आधुनिकता की दौड़ में आज समाज में लिंग भेद, दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराईयां घर कर गई है। इनसे निजात पाने के लिए समाज के प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना होगा और समाज के प्रबुद्ध वर्ग को ही इस प्रकार की सामाजिक बुराईयां मिटाने के लिए संबंधित क्षेत्रों में अलख जगानी होगी तभी देश व समाज तरक्की कर पाएगा। उन्होंने महाकुआ पूजन समारोह में शरीक हुई 161 बेटियों की माताओं को प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया। समारोह में शरीक हुई सभी 161 महिलाओं ने अतिरिक्त उपायुक्त श्रीमती पंकज चौधरी की अगुवाई में नृत्य के साथ खुशी जाहिर कर अपने सिर पर बंटा, टोकनी रखकर जनता भवन रोड़, आटो मार्केट रोड़ आदि विभिन्न बाजारों में शुभ यात्रा भी निकाली और निकट श्री डेरा बाबा श्योराण दास मंदिर में विधिवत विधान से ब्राह्मणों के मंत्रोचारण के साथ कुआ पूजन की रस्म अदा की।
कुआं पूजन में भाग लेने वाली बिमला देवी, शारदा, कीर्ति आदि ने बताया कि हमें पहली बार कन्या जन्म के अवसर पर महाकुआं पूजन पर आने का अवसर मिला है और इन कार्यों से लड़के और लड़की में अंतर खत्म होने के लिए प्रेरणा मिलती है। उन्होंने खुशी जाहिर की कि उनके घर बेटी पैदा हुई है। आंगनवाड़ी वर्कर रणजीत कौर ने बताया कि हमारे परिवार में यह छठी लड़की है और मुझे पूरा गर्व है कि हमारे घर में लड़की का जन्म हुआ है।
इस अवसर पर नगराधीश श्री एच.सी भाटिया, पूजा बंसल, डा. आर.एस सांगवान, डा. के.के गौतम सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
सोमवार, 1 नवंबर 2010
Some Important in life...
** भूल करना कोई बुरा नहीं है लेकिन भूल को भूल न समझना बहुत बुरी बात है
एक्रागता आत्म साक्षात्कार की कुंजी है.....
** मनुष्य का जीवन स्वयं ही प्रत्यक्ष देवता है अन्य देवताओ की कृपा तो परलोक में मिलती है पर अपने जीवन को सुघर सुसंस्कृत बनाने की उपासना के लाभ तो इसी जीवन में ही मिलती है.
एक्रागता आत्म साक्षात्कार की कुंजी है.....
** मनुष्य का जीवन स्वयं ही प्रत्यक्ष देवता है अन्य देवताओ की कृपा तो परलोक में मिलती है पर अपने जीवन को सुघर सुसंस्कृत बनाने की उपासना के लाभ तो इसी जीवन में ही मिलती है.
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
ओबामा के स्वर्ण मंदिर में न आने का कारण पंजाब कांग्रेस
रेखा/गोविन्द सलोता
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपनी अमृतसर यात्रा पंजाब कांग्रेस और अकालियों की आपसी खींचा तानियों के कारण रद्द करनी पड़ी है. दोनों ही पार्टियाँ ओबामा की स्वर्ण मंदिर की यात्रा का लाभ एक दुसरे को नहीं लेने-देना चाहती. सिर ढकने की अनिच्छा की अटकलों के उलट ओबामा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खुश करने के लिए स्वर्ण मंदिर जाने को लेकर बेहद उत्सुक थे. सप्रंग नेतृत्व से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पंजाब कांग्रेस ने ओबामा की यात्रा टलवाने के लिए सारे तीर छोड़ दिए. इसकी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध नहीं, बल्कि स्वर्ण मंदिर में होने वाले कार्यक्रमों में अकाल तख़्त के लोगों के अलावा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह के छाए रहने का डर है.
पंजाब कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उन्हें भी प्रोटोकोल का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि स्वर्ण मंदिर प्रांगन में ओबामा के साथ-साथ उनकी उपस्थिति भी प्रमुखता से देश-विदेश में दिखाई दे. उनका यह भी कहना है कि अगर ऐसा नहीं होगा तो ओबामा के इस दौरे का सियासी फायदा अकालियों को भी मिलेगा. इस बार व्हाइट हाउस ने खुद अमृतसर यात्रा की इच्छा जताई थी इसलिए पंजाब तर्कों से परेशान पीएमओ और विदेश मंत्रालय ने बीच का रास्ता निकालने के लिए विदेश राज्यमंत्री प्रणीत कौर को कांग्रेस के चेहरे के रूप में ओबामा के साथ दिखने का प्रस्ताव दिया.
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अपनी अमृतसर यात्रा पंजाब कांग्रेस और अकालियों की आपसी खींचा तानियों के कारण रद्द करनी पड़ी है. दोनों ही पार्टियाँ ओबामा की स्वर्ण मंदिर की यात्रा का लाभ एक दुसरे को नहीं लेने-देना चाहती. सिर ढकने की अनिच्छा की अटकलों के उलट ओबामा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खुश करने के लिए स्वर्ण मंदिर जाने को लेकर बेहद उत्सुक थे. सप्रंग नेतृत्व से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पंजाब कांग्रेस ने ओबामा की यात्रा टलवाने के लिए सारे तीर छोड़ दिए. इसकी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध नहीं, बल्कि स्वर्ण मंदिर में होने वाले कार्यक्रमों में अकाल तख़्त के लोगों के अलावा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह के छाए रहने का डर है.
पंजाब कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उन्हें भी प्रोटोकोल का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि स्वर्ण मंदिर प्रांगन में ओबामा के साथ-साथ उनकी उपस्थिति भी प्रमुखता से देश-विदेश में दिखाई दे. उनका यह भी कहना है कि अगर ऐसा नहीं होगा तो ओबामा के इस दौरे का सियासी फायदा अकालियों को भी मिलेगा. इस बार व्हाइट हाउस ने खुद अमृतसर यात्रा की इच्छा जताई थी इसलिए पंजाब तर्कों से परेशान पीएमओ और विदेश मंत्रालय ने बीच का रास्ता निकालने के लिए विदेश राज्यमंत्री प्रणीत कौर को कांग्रेस के चेहरे के रूप में ओबामा के साथ दिखने का प्रस्ताव दिया.
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
सैयद अली गिलानी ने किया सारे देश को शर्मसार
वाह भई वाह आज मेरा मन उस पंक्ति के सत्य होने पर ख़ुशी से भर गया है जिसमें लिखा है " मेरा भारत महान ". मेरा भारत महान हो भी क्यूँ न इस देश में सैयद अली गिलानी जैसे नेता ओर अरुंधती राय जैसे सामाजिक कार्यकर्त्ता जो हैं. इस से भी महान बात हमारे देश के उन नेताओं को सलाम करने की है जो गिलानी ओर अरुंधती जैसे देश विरोधियों की बातें सुनने के बाद भी विनम्रता दर्शातें हैं. पर हमारे देश की सरकार करे भी ओ क्या, वो तो हमेशा ही ऐसे नेताओं ओर हिंसा प्रेमी लोगों के आगे लाचार रही है. ऐसे ही किस्सों पर गौर फरमाते हैं जिसमें देश विरोध की कामना करने वाले नेता अपने हिंसात्मक कार्यो को बढावा दे रहे हैं.
गौरतलब है कि भारत प्रशासित कश्मीर के सबसे अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने कहा था कि भारत सरकार के साथ राजनीतिक चर्चा तभी होगी जब सरकार उनकी पांच शर्तों को मानेगी. उन्होंने यह भी कहा कि शर्तों को मानने के बाद ही कश्मीर में हो रही हिंसात्मक घटनाओं को रोकने पर विचार होगा नहीं तो ये हिंसात्मक कार्यवाही ओर भी तेज कर दी जाएगी. सैयद गिलानी भारत प्रशासित कश्मीर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे हैं. इन्हीं विरोध प्रदर्शनों की वजह से सरकार ने जम्मू-कश्मीर मसले के लिए राजनीतिक चर्चा की बात कही थी. इसके लिए केंद्र सरकार ने तीन वार्ताकार नियुक्त किये थे. लेकिन देश की अशांति ओर देश में हिंसा की कामना करने वाले सैयद अली को यह शांतिपूर्वक वार्तालाप कहाँ रास आने वाला था ओर उसने सरकार की इस बात का बहिष्कार करते हुए रख डाली अपनी पांच शर्तें.
उन्होंने कहा कि इन शर्तों के पूरा होने के बाद ही बातचीत के लिए माहौल तैयार हो सकेगा. अपने निवास पर पत्रकारों से उन्होंने कहा कि वे सरकार की ओर से राजनीतिक बातचीत के प्रस्ताव में ये शर्तें रख रहे हैं. हुर्रियत नेता गिलानी ने कश्मीर को अन्तराष्ट्रीय समस्या के रूप में स्वीकार करने की शर्त तो रखी लेकिन इस बार उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने और पकिस्तान को बातचीत में शामिल करने की अपनी पुरानी मांग भी दोहराई.
उल्लेखनीय है कि भारत प्रशासित कश्मीर में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अलगाववादी नेताओं से राजनीतिक चर्चा की अपील की थी. अपनी शर्तें गिनाते हुए कि वार्ता शुरू करने के लिए भारत को पहले यह स्वीकार करना होगा कि कश्मीर कि समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है. उनकी दूसरी शर्त है कि भारत को कश्मीर से सेना को हटाना होगा और इस प्रक्रिया की निगरानी का काम किसी विश्वसनीय एजेंसी को सौंपना चाहिए. गिलानी की तीसरी शर्त है कि भारत के प्रधानमंत्री को सार्वजानिक रूप से आश्वासन देना होगा कि इसके बाद कश्मीर में न तो किसी की गिरफ्तारी होगी और न ही किसी की जान ली जाएगी. अलगाववादी नेता ने चौथी शर्त यह रखी कि सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जायेगा और उनके खिलाफ सारे मुक्क्द्मे वापिस लिए जाएँगे. राजनीतिक बंदियों में उन्होंने मोह्हमद अफजल गुरु, मिर्जा नासिर हुसैन, और मोह्हमद अली भट का नाम लिया है. इन तीनो को ही भारतीय अदालतों ने मौत की सजा सुनाई है. उनकी अंतिम शर्त यह है कि राज्य में हिंसा के लिए दोषी सभी लोगों को सजा डी जाएगी. उनका कहना है, "इसकी शुरुआत पिछले जून से अब तक मारे गए 65 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को इस अपराध के लिए सजा देने से की जा सकती है."
सैयद गिलानी ने कहा कि ये कदम उठाने के बाद ही ऐसा माहौल तैयार हो सकेगा जिसमें कश्मीर के नेता मिलकर चर्चा कर सकेंगे और कश्मीर के शांतिपूर्ण हल के लिए जनमत तैयार कर सकेंगे. उन्होंने कहा कि यदि भारत सरकार ये कदम तत्काल उठाती है तो वे घटी में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को ख़त्म करने पर विचार करेंगे. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इन न्यूनतम आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करती है तो विरोध प्रदर्शन तेज कर दिए जायेंगे. उन्होंने राजनीतिक बंदियों को ईद से पहले रिहा करने की भी मांग की थी. गिलानी ने ही कश्मीर छोडो अभियान शुरू किया था, उसके बाद दो महीनों से अधिक समय से कश्मीर घाटी बंद ही रही है. या तो विरोध प्रदर्शनों की वजह से या फिर राज्य सरकार की और से लगाए गए कर्फ्यू की वजह से. गिलानी ने 28 अक्तूबर से शुरू होने वाले विरोध प्रदर्शन का कैलेंडर भी जरी किया. इस कैलेंडर के अनुसार 28,29 अक्तूबर और 2 व 4 नवम्बर को छोड़कर बाकी 8 नवम्बर तक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
देशप्रेम की भावना मन में होने के नाते और अपने देश की नागरिक होने के नाते यदि मुझे गिलानी के इन शर्मनाक कार्यों पर कुछ कहना पड़े तो में यही कहूँगी कि ऐसे नेता को हमारे देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को ऐसे नेता के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए और ऐसे नेताओं को देश से बाहर कर देना चाहिए जो देश में अशांति और हिंसा को बढावा देते है. में कश्मीर के उन लोगों से भी पूछना चाहूँगा कि उनकी अकल क्या कहीं घास चरने गई है जो इस देश विरोधी नेताओं की बैटन में आकर इस तरह की हिंसक घटनाओं के अंजाम दे रहे हैं. इन घटनाओं में न तो इन नेताओं को कुछ होगा और न ही इनके सगे सम्बन्धियों को, मारे जाते हैं तो वो आम लोग जो इन नेताओं के बहकावे में आकर अपने ही देश में खून खराबे को अंजाम देते है. उन सभी लोगों को सच्चाई को पहचानना भी चाहिए और समझना भी चाहिए कि ये नेता उन्हें इस्तेमाल करके केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं न कि उन्हें शांति और अमन दिला रहे हैं.
गौरतलब है कि भारत प्रशासित कश्मीर के सबसे अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने कहा था कि भारत सरकार के साथ राजनीतिक चर्चा तभी होगी जब सरकार उनकी पांच शर्तों को मानेगी. उन्होंने यह भी कहा कि शर्तों को मानने के बाद ही कश्मीर में हो रही हिंसात्मक घटनाओं को रोकने पर विचार होगा नहीं तो ये हिंसात्मक कार्यवाही ओर भी तेज कर दी जाएगी. सैयद गिलानी भारत प्रशासित कश्मीर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे हैं. इन्हीं विरोध प्रदर्शनों की वजह से सरकार ने जम्मू-कश्मीर मसले के लिए राजनीतिक चर्चा की बात कही थी. इसके लिए केंद्र सरकार ने तीन वार्ताकार नियुक्त किये थे. लेकिन देश की अशांति ओर देश में हिंसा की कामना करने वाले सैयद अली को यह शांतिपूर्वक वार्तालाप कहाँ रास आने वाला था ओर उसने सरकार की इस बात का बहिष्कार करते हुए रख डाली अपनी पांच शर्तें.
उन्होंने कहा कि इन शर्तों के पूरा होने के बाद ही बातचीत के लिए माहौल तैयार हो सकेगा. अपने निवास पर पत्रकारों से उन्होंने कहा कि वे सरकार की ओर से राजनीतिक बातचीत के प्रस्ताव में ये शर्तें रख रहे हैं. हुर्रियत नेता गिलानी ने कश्मीर को अन्तराष्ट्रीय समस्या के रूप में स्वीकार करने की शर्त तो रखी लेकिन इस बार उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने और पकिस्तान को बातचीत में शामिल करने की अपनी पुरानी मांग भी दोहराई.
उल्लेखनीय है कि भारत प्रशासित कश्मीर में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अलगाववादी नेताओं से राजनीतिक चर्चा की अपील की थी. अपनी शर्तें गिनाते हुए कि वार्ता शुरू करने के लिए भारत को पहले यह स्वीकार करना होगा कि कश्मीर कि समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है. उनकी दूसरी शर्त है कि भारत को कश्मीर से सेना को हटाना होगा और इस प्रक्रिया की निगरानी का काम किसी विश्वसनीय एजेंसी को सौंपना चाहिए. गिलानी की तीसरी शर्त है कि भारत के प्रधानमंत्री को सार्वजानिक रूप से आश्वासन देना होगा कि इसके बाद कश्मीर में न तो किसी की गिरफ्तारी होगी और न ही किसी की जान ली जाएगी. अलगाववादी नेता ने चौथी शर्त यह रखी कि सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जायेगा और उनके खिलाफ सारे मुक्क्द्मे वापिस लिए जाएँगे. राजनीतिक बंदियों में उन्होंने मोह्हमद अफजल गुरु, मिर्जा नासिर हुसैन, और मोह्हमद अली भट का नाम लिया है. इन तीनो को ही भारतीय अदालतों ने मौत की सजा सुनाई है. उनकी अंतिम शर्त यह है कि राज्य में हिंसा के लिए दोषी सभी लोगों को सजा डी जाएगी. उनका कहना है, "इसकी शुरुआत पिछले जून से अब तक मारे गए 65 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को इस अपराध के लिए सजा देने से की जा सकती है."
सैयद गिलानी ने कहा कि ये कदम उठाने के बाद ही ऐसा माहौल तैयार हो सकेगा जिसमें कश्मीर के नेता मिलकर चर्चा कर सकेंगे और कश्मीर के शांतिपूर्ण हल के लिए जनमत तैयार कर सकेंगे. उन्होंने कहा कि यदि भारत सरकार ये कदम तत्काल उठाती है तो वे घटी में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को ख़त्म करने पर विचार करेंगे. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इन न्यूनतम आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करती है तो विरोध प्रदर्शन तेज कर दिए जायेंगे. उन्होंने राजनीतिक बंदियों को ईद से पहले रिहा करने की भी मांग की थी. गिलानी ने ही कश्मीर छोडो अभियान शुरू किया था, उसके बाद दो महीनों से अधिक समय से कश्मीर घाटी बंद ही रही है. या तो विरोध प्रदर्शनों की वजह से या फिर राज्य सरकार की और से लगाए गए कर्फ्यू की वजह से. गिलानी ने 28 अक्तूबर से शुरू होने वाले विरोध प्रदर्शन का कैलेंडर भी जरी किया. इस कैलेंडर के अनुसार 28,29 अक्तूबर और 2 व 4 नवम्बर को छोड़कर बाकी 8 नवम्बर तक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.
देशप्रेम की भावना मन में होने के नाते और अपने देश की नागरिक होने के नाते यदि मुझे गिलानी के इन शर्मनाक कार्यों पर कुछ कहना पड़े तो में यही कहूँगी कि ऐसे नेता को हमारे देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को ऐसे नेता के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए और ऐसे नेताओं को देश से बाहर कर देना चाहिए जो देश में अशांति और हिंसा को बढावा देते है. में कश्मीर के उन लोगों से भी पूछना चाहूँगा कि उनकी अकल क्या कहीं घास चरने गई है जो इस देश विरोधी नेताओं की बैटन में आकर इस तरह की हिंसक घटनाओं के अंजाम दे रहे हैं. इन घटनाओं में न तो इन नेताओं को कुछ होगा और न ही इनके सगे सम्बन्धियों को, मारे जाते हैं तो वो आम लोग जो इन नेताओं के बहकावे में आकर अपने ही देश में खून खराबे को अंजाम देते है. उन सभी लोगों को सच्चाई को पहचानना भी चाहिए और समझना भी चाहिए कि ये नेता उन्हें इस्तेमाल करके केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं न कि उन्हें शांति और अमन दिला रहे हैं.
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
Never Forget in Life...
"If we fight, we may not always win, but if we don't fight
we will surely lose, So never compromise in life & fight
for the best...
we will surely lose, So never compromise in life & fight
for the best...
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
Today's Thought for success life..
Do not count what you have lost, Just see what you have now
Because past never comes back but sometimes future can give
you back your lost...
Because past never comes back but sometimes future can give
you back your lost...
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
इस रिपोर्ट में अमेरिका ने खुद को पहले स्थान पर रखा है और चीन को दूसरे स्थान पर रखा गया है। दुनिया के शक्तिशाली देश अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए इस तरह की बौद्धिक कसरत लगातार करते हैं। इस तौर पर कुछ ऐसे आधार बनाकर वे अकादमिक व सरकारी सर्वेक्षण करवाते हैं, जिसमें वे खुद को अव्वल घोषित कर सकें और इन सर्वेक्षणों को लगातार प्रचारित किया जाता है।
अपने शक्तिशाली जनमाध्यमों द्वारा दुनिया में इन खबरों को पहुंचाना उनके लिए काफी आसान होता है। यही खबरें दुनिया के लोगों में उस मानसिकता की निर्मिति और विकास करती हैं, जहां एक देश के प्रति अन्य देश के लोगों और शासकों के लिए सबसे बड़ी ताकत का अहसास व भय लगातार बना रहता है। यह सांस्कृतिक साम्राज्य को बनाए रखने का एक तरीका है, हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स से आगे का तरीका।
बहरहाल, दुनिया में गरीबी, भुखमरी, जीवन स्तर, राष्ट्रीय शक्ति को लेकर पत्रिकाओं व संस्थाओं के द्वारा प्रतिवर्ष सैकड़ों रिपोर्टे प्रस्तुत की जाती हैं। ये राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की होती हैं, पर आखिर इनके तथ्यात्मक आधार में इतना अंतराल क्यों होता है। सन 2005 से लेकर अब तक भारत में गरीबी पर कई रिपोर्टे प्रस्तुत की गई हैं। चर्चित अजरुन सेनगुप्ता रिपोर्ट में देश में गरीबों की तादाद 78 प्रतिशत थी, तो सुरेश तेंदुलकर की रिपोर्ट में 37.2 प्रतिशत, एन.सी. सक्सेना ने गरीबी का जो आंकड़ा रखा वह 50 प्रतिशत था और विश्व बैंक ने भारत में 42 प्रतिशत गरीबों को प्रस्तुत किया जो 26 अफ्रीकी देशों के गरीबों की संख्या से एक करोड़ ज्यादा था।
निश्चित तौर पर ये अंतर इसलिए आए, क्योंकि गरीबी रेखा का जो मानक है, सभी ने अलग-अलग रखा है। सरकार ने गरीबी रेखा का जो पैमाना 1970 में तय किया था, यदि उसके आधार पर कोई रिपोर्ट तैयार की जाएगी तो सेनगुप्ता के 78 प्रतिशत गरीब 30 प्रतिशत भी नहीं बचेंगे, परंतु मूल सवाल जीवन स्तर का है, उस वास्तविकता का जिसे देश को महाशक्ति के रूप में प्रचारित करते हुए देश की सरकार छुपा लेती है।
युनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम ने 2009 में दुनिया के 184 देशों की एक सूची प्रस्तुत की थी, जिसमें यह देखा गया कि भारत के लोगों का जीवन स्तर लगातार गिरता जा रहा है। भारत 2006 में दुनिया के देशों में 126वां था, 2008 में 128वां व 2009 में 134वां हो गया। हमारे देश में बड़ी संख्या है, जो खाद्य पूर्ति के अभाव में मर रही है, ऐसे में जीवन स्तर का घटना स्वाभाविक है। दरअसल, लोगों के पास अपने जीवन स्तर को ठीक रखने के लिए आर्थिक आधारों की जरूरत है और ये आर्थिक आधार इन्हें रोजगार से मिल सकते हैं, परंतु सरकार ऐसा कोई ठोस मसौदा अभी तक तैयार नहीं कर पा रही है जिससे बहुसंख्य आबादी के लिए जिन क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध हैं, उन्हें सहूलियत हो। बजाय इसके रोजगार के अवसर कम करने वाले क्षेत्रों की तरफ ही ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।
भारत का 58 फीसदी रोजगार कृषि से जुड़ा हुआ है और महज आठ फीसदी रोजगार प्रशासन, आईटी, चिकित्सा के क्षेत्रों में है। ऐसे में कृषि से सरकार की विमुखता देश में जीवन स्तर के गिरावट का ही संकेत देती है।
इसके बावजूद गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों या फिर भूमिहीनों, जो कृषि से संबद्ध नहीं हैं, उनकी स्थिति को सुधारा जा सकता है। यदि देश में खाद्यान्न वितरण प्रणाली को ठीक कर दिया जाए तो ऐसा संभव है, पर न्यायपालिका के आदेश को लेकर अभी विधायिका व देश के प्रमुख नेताओं ने जिस तरह की टिप्पणी की, उससे यही लगता है कि देश की सरकार शक्तिशाली होने का गौरव और देश में भुखमरी दोनों को साथ में रखना चाहती है। देश में 50.2 मिलियन टन खाद्यान्न का भंडारण हो चुका है, जिसमें 50 फीसदी हिस्सा दो साल पुराना है, जबकि सरकार के पास भंडारण क्षमता इसकी आधी है। इसके बावजूद गरीबों को अनाज न वितरित करना यही संदेश देता है कि सरकार विकास की एकमुखी तस्वीर से ही देश की तस्वीर बनाना चाहती है।
निश्चित तौर पर देश में गरीबी व गरीबों को लेकर जो रिपोर्ट राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय आधार पर प्रस्तुत की जाती है, उसका संबंध यथार्थ से नहीं बल्कि एक ऐसे आधार से है, जिससे निहित स्वार्थो का प्रचार किया जा सके।
अब भी अनेक सवालों को अपने आप में समेटे हुए अयोध्या फैसला
रविवार की ये बात है 'एक गुम्बद टूटा!’ ‘दूसरा भी टूट गया!!’ ‘पूरी मस्जिद ढह गई!!!’ थोड़ी-थोड़ी देर फोन आए, और ये खबरें मिलीं। मैंने भी सुना।
मुझे बहुत बुरा लगा। मैं सोचती रही कि ‘उन्होंने मस्जिद तोड़ी क्यों?’ मैंने अपनी सहेली इशिता से पूछा तो उसका भी यही कहना था ‘यह गलत हुआ|' अगर उन्हें मंदिर बनाना ही था तो मस्जिद के बगल में बना लेते।’
अगले दिन सोमवार था। मैं स्कूल गई। पढ़ाई नहीं हो रही थी, औरों को क्या लगा, यह जानने के लिए मैंने अपनी क्लास के कुछ बच्चों से पूछा कि ‘मस्जिद टूटी तो तुम्हे अच्छा लगा या बुरा?’ जिस -जिस से पूछा, उनका नाम व राय अपनी कॉपी के पीछे लिख लिए। ऐसे कुल 75 बच्चों की राय मुझे पता लगी। इनमें से लगभग 50 को अच्छा और 25 को बुरा लगा था। जिन्हें अच्छा लगा वे सब हिंदू, और जिन्हें बुरा लगा वे सब मुसलमान थे।
इस बातचीत से मुझे यह भी पता चला कि उस रात मुसलमान घरों में कोई सोया नहीं, क्योंकि उन्हें डर था। बारी-बारी डंडे लेकर पहरा देते रहे थे। थोड़ी-सी आहट होते ही सब दौड़ पड़ते और हल्ला मच जाता था।
(दिसंबर, 1998)
तब मैं दस साल की थी। अब मैं इक्किस साल की हूं। अयोध्या की घटना ने मेरे मन और दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी है। मुझे याद है कि इस छोटे से तात्कालिक सर्वे के द्वारा मेरा मन था कि बड़े लोगों को दर्शाया जाए कि कैसे बच्चों को मंदिर-मस्जिद की लड़ाई से कोई फर्क नहीं पड़ता और इस तरह की कटुतापूर्ण बातें उन्हें भी छोड़ देनी चाहिए। परंतु इस सर्वे का नतीजा इसके बिल्कुल विपरीत निकला था। उन बच्चों के लिए, जो इस सर्वे का हिस्सा थे, यह एक असली लड़ाई थी, जिसका गहरा असर उनकी रोजाना जिंदगी पर कई तरह से डर और असुरक्षा पैदा कर रहा था।
यह असर कई पीढ़ियों तक, सरकार व दूसरे संप्रदायों के ठोस व सकारात्मक कदम उठाए बिना तो नहीं जा सकता। दूसरी तरफ, हिंदू बच्चे भी अपने घर व आस-पड़ोस के बड़े लोगों से काफी प्रभावित दिखे। यह मानना गलत न होगा कि जो लोग मस्जिद तोड़े जाने के ज्यादा पक्ष में थे, ऐसे मौके पर उनकी आवाज ज्यादा ऊंची रही होगी। इसका मतलब यह नहीं कि सब लोग अगर जा सकते तो अयोध्या जाकर बाबरी मस्जिद तोड़ने में हाथ बंटाते। मगर उनकी उत्तेजना पूर्वी दिल्ली की एक अनधिकृत कॉलोनी में बच्चों की सोच को प्रभावित करने के लिए काफी थी।
(सितंबर, 2010)
हाल ही में जब देश में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार हो रहा था| अटकलें लगाई जा रही थीं कि लोगों की और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया कैसी होगी? कहा जा रहा था कि अब लोग परिपक्व हो गए हैं और कोई हिंसा आदि नहीं होगी। कई लोगों का मानना था कि देश में युवा वर्ग की तादाद बहुत है और वे या तो 1992 में हुए दंगों घटना के बाद पैदा हुए हैं या फिर नौकरियां कर बहुत कमा रहे हैं, जिसमें वे न कोई अड़चन चाहते हैं और न ही उनके कोई सामुदायिक सरोकार रह गए हैं। एक पल के लिए यह तर्क जितना भी दुखदायी हो, सही लगता है।
मगर थोड़ा गहराई से सोचने पर इसकी कमजोरियां दिखने लगती हैं। पहला, ज्यादातर कारसेवक 1949 में नहीं थे और सोलहवीं सदी में तो बिल्कुल ही नहीं थे। 1992 की क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्तिगत अनुभव या याददाश्त पर आधारित नहीं थी। युवाओं के बीच में आज जिस तरह की गैर-बराबरी बढ़ रही है, वह उत्तेजना पैदा करने वाले मत-प्रचार को सहूलियत ही देती है। दूसरा, मेरे आसपास के, मेरी उम्र के युवाओं में इस फैसले को लेकर मैंने अनपेक्षित उत्सुकता देखी। हां, डर या चिंता नहीं थी। अखबारों को ध्यान से पढ़ने पर यह साफ है कि मुस्लिम-बहुल इलाकों में चिंता थी, सड़कें खाली और दुकानें बंद थीं और फैसला आने के बाद इस बात पर राहत थी कि कोई उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के बाद की चर्चाओं से कई बातें निकल कर आई हैं। कई लोगों, विशेषत: जो कानून को जानते-समझते हैं, का कहना है कि यह फैसला कानूनी सिद्धांतों के बजाय आस्था पर आधारित है। दूसरी तरफ बहुसंख्यक मत इस फैसले को अच्छा और देश की धर्मनिरपेक्षता को मजबूत और दरारों को कम करने वाला मानता लगता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड इस फैसले से कतई खुश नहीं है। आम मुस्लिम, विशेषत: जो सांप्रदायिक संवेदनशील इलाकों में रहते और जीवनयापन करते हैं, को राहत मिली कि यह फैसला कम से कम उनके जीवनयापन पर कोई आपदा नहीं लाया। मगर साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय इस फैसले से निराश है। पिछले अठारह साल में हमारे देश में अल्पसंख्यक समुदायों के साथ जो भी हुआ है, उससे लगता है कि निराशा से ज्यादा कुछ प्रकट करने का उनके पास अधिकार ही नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट में अपील करना मात्र ही उनके इस विवाद को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जा सकता है।
इस समय कुछ मूल प्रश्न सामने आ रहे हैं। किसी भी तरह की सहमति बनाने के लिए इन पर बातचीत व खुला संवाद जरूरी है।
1. क्या इस प्रकार का गहरा, जटिल व उत्तेजनात्मक विवाद, जो धार्मिक विश्वास से जुड़ा हो, उसका हल खोजने के लिए न्यायालय ही एकमात्र रास्ता है? क्या हमारी बाकी संस्थाओं ने इसको सुलझा पाने में अपनी हार स्वीकार कर ली है?
2. अपने लोकतंत्र में हम अपने न्यायतंत्र की क्या भूमिका देखते हैं? क्या इस तरह के फैसले को न्यायपालिका पर डालना न्यायोचित है? अगर हां, तो क्या हमारे धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का न्यायशास्त्र इस भूमिका के लिए उपयुक्त रूप से विकसित हुआ है?
3. अगर हम इन मुद्दों को, जो अब अदालत के सामने हैं, एक संकीर्ण कानूनी विवाद के रूप में देखें, तो क्या जितनी आस्था और जनभावना की भूमिका भारतीय कानून में मान्य है, उससे ज्यादा हो सकती है?
4. एक कानूनी फैसला, जो औपचारिक रूप से समझौता न हो, कानूनी मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। संवाद व सहमति से समझौता हो सकता है। एक अदालत का फैसला, जो कानूनी मूल्यों से निकले हक पर आधारित होने का दावा करे, क्या बिना दोनों पक्षों की सहमति के ‘समझौता’ माना जाना चाहिए?
5. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को ‘समझौता’ मानना, क्या धर्मनिरपेक्षता को खतरनाक तरीके से पुनर्परिभाषित करना नहीं है?
6. कानून की नजर में समानता और समान कानूनी संरक्षण का हमारे देश में क्या मतलब है?
7. अदालत में जाना, कानून में आस्था का द्योतक है। तो क्या आस्था व कानून को एक दूसरे से विपरीत देखकर हम कानून व संवैधानिक मूल्यों में अपनी आस्था डगमगा नहीं रहे?
8. इस बहुधार्मिक देश में जहां एक धर्म बहुमत में है, अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति इसकी अन्य संस्थाओं व राज्यव्यवस्था का क्या उत्तरदायित्व है ?
इन सब सवालों के जवाब कौन देगा ? कौन है जो इन को खोजने के लिए सामने आएगा? ये सब बातें आज भी विचारणीय हैं |
मुझे बहुत बुरा लगा। मैं सोचती रही कि ‘उन्होंने मस्जिद तोड़ी क्यों?’ मैंने अपनी सहेली इशिता से पूछा तो उसका भी यही कहना था ‘यह गलत हुआ|' अगर उन्हें मंदिर बनाना ही था तो मस्जिद के बगल में बना लेते।’
अगले दिन सोमवार था। मैं स्कूल गई। पढ़ाई नहीं हो रही थी, औरों को क्या लगा, यह जानने के लिए मैंने अपनी क्लास के कुछ बच्चों से पूछा कि ‘मस्जिद टूटी तो तुम्हे अच्छा लगा या बुरा?’ जिस -जिस से पूछा, उनका नाम व राय अपनी कॉपी के पीछे लिख लिए। ऐसे कुल 75 बच्चों की राय मुझे पता लगी। इनमें से लगभग 50 को अच्छा और 25 को बुरा लगा था। जिन्हें अच्छा लगा वे सब हिंदू, और जिन्हें बुरा लगा वे सब मुसलमान थे।
इस बातचीत से मुझे यह भी पता चला कि उस रात मुसलमान घरों में कोई सोया नहीं, क्योंकि उन्हें डर था। बारी-बारी डंडे लेकर पहरा देते रहे थे। थोड़ी-सी आहट होते ही सब दौड़ पड़ते और हल्ला मच जाता था।
(दिसंबर, 1998)
तब मैं दस साल की थी। अब मैं इक्किस साल की हूं। अयोध्या की घटना ने मेरे मन और दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी है। मुझे याद है कि इस छोटे से तात्कालिक सर्वे के द्वारा मेरा मन था कि बड़े लोगों को दर्शाया जाए कि कैसे बच्चों को मंदिर-मस्जिद की लड़ाई से कोई फर्क नहीं पड़ता और इस तरह की कटुतापूर्ण बातें उन्हें भी छोड़ देनी चाहिए। परंतु इस सर्वे का नतीजा इसके बिल्कुल विपरीत निकला था। उन बच्चों के लिए, जो इस सर्वे का हिस्सा थे, यह एक असली लड़ाई थी, जिसका गहरा असर उनकी रोजाना जिंदगी पर कई तरह से डर और असुरक्षा पैदा कर रहा था।
यह असर कई पीढ़ियों तक, सरकार व दूसरे संप्रदायों के ठोस व सकारात्मक कदम उठाए बिना तो नहीं जा सकता। दूसरी तरफ, हिंदू बच्चे भी अपने घर व आस-पड़ोस के बड़े लोगों से काफी प्रभावित दिखे। यह मानना गलत न होगा कि जो लोग मस्जिद तोड़े जाने के ज्यादा पक्ष में थे, ऐसे मौके पर उनकी आवाज ज्यादा ऊंची रही होगी। इसका मतलब यह नहीं कि सब लोग अगर जा सकते तो अयोध्या जाकर बाबरी मस्जिद तोड़ने में हाथ बंटाते। मगर उनकी उत्तेजना पूर्वी दिल्ली की एक अनधिकृत कॉलोनी में बच्चों की सोच को प्रभावित करने के लिए काफी थी।
(सितंबर, 2010)
हाल ही में जब देश में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार हो रहा था| अटकलें लगाई जा रही थीं कि लोगों की और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया कैसी होगी? कहा जा रहा था कि अब लोग परिपक्व हो गए हैं और कोई हिंसा आदि नहीं होगी। कई लोगों का मानना था कि देश में युवा वर्ग की तादाद बहुत है और वे या तो 1992 में हुए दंगों घटना के बाद पैदा हुए हैं या फिर नौकरियां कर बहुत कमा रहे हैं, जिसमें वे न कोई अड़चन चाहते हैं और न ही उनके कोई सामुदायिक सरोकार रह गए हैं। एक पल के लिए यह तर्क जितना भी दुखदायी हो, सही लगता है।
मगर थोड़ा गहराई से सोचने पर इसकी कमजोरियां दिखने लगती हैं। पहला, ज्यादातर कारसेवक 1949 में नहीं थे और सोलहवीं सदी में तो बिल्कुल ही नहीं थे। 1992 की क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्तिगत अनुभव या याददाश्त पर आधारित नहीं थी। युवाओं के बीच में आज जिस तरह की गैर-बराबरी बढ़ रही है, वह उत्तेजना पैदा करने वाले मत-प्रचार को सहूलियत ही देती है। दूसरा, मेरे आसपास के, मेरी उम्र के युवाओं में इस फैसले को लेकर मैंने अनपेक्षित उत्सुकता देखी। हां, डर या चिंता नहीं थी। अखबारों को ध्यान से पढ़ने पर यह साफ है कि मुस्लिम-बहुल इलाकों में चिंता थी, सड़कें खाली और दुकानें बंद थीं और फैसला आने के बाद इस बात पर राहत थी कि कोई उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के बाद की चर्चाओं से कई बातें निकल कर आई हैं। कई लोगों, विशेषत: जो कानून को जानते-समझते हैं, का कहना है कि यह फैसला कानूनी सिद्धांतों के बजाय आस्था पर आधारित है। दूसरी तरफ बहुसंख्यक मत इस फैसले को अच्छा और देश की धर्मनिरपेक्षता को मजबूत और दरारों को कम करने वाला मानता लगता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड इस फैसले से कतई खुश नहीं है। आम मुस्लिम, विशेषत: जो सांप्रदायिक संवेदनशील इलाकों में रहते और जीवनयापन करते हैं, को राहत मिली कि यह फैसला कम से कम उनके जीवनयापन पर कोई आपदा नहीं लाया। मगर साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय इस फैसले से निराश है। पिछले अठारह साल में हमारे देश में अल्पसंख्यक समुदायों के साथ जो भी हुआ है, उससे लगता है कि निराशा से ज्यादा कुछ प्रकट करने का उनके पास अधिकार ही नहीं रह गया है। सुप्रीम कोर्ट में अपील करना मात्र ही उनके इस विवाद को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जा सकता है।
इस समय कुछ मूल प्रश्न सामने आ रहे हैं। किसी भी तरह की सहमति बनाने के लिए इन पर बातचीत व खुला संवाद जरूरी है।
1. क्या इस प्रकार का गहरा, जटिल व उत्तेजनात्मक विवाद, जो धार्मिक विश्वास से जुड़ा हो, उसका हल खोजने के लिए न्यायालय ही एकमात्र रास्ता है? क्या हमारी बाकी संस्थाओं ने इसको सुलझा पाने में अपनी हार स्वीकार कर ली है?
2. अपने लोकतंत्र में हम अपने न्यायतंत्र की क्या भूमिका देखते हैं? क्या इस तरह के फैसले को न्यायपालिका पर डालना न्यायोचित है? अगर हां, तो क्या हमारे धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का न्यायशास्त्र इस भूमिका के लिए उपयुक्त रूप से विकसित हुआ है?
3. अगर हम इन मुद्दों को, जो अब अदालत के सामने हैं, एक संकीर्ण कानूनी विवाद के रूप में देखें, तो क्या जितनी आस्था और जनभावना की भूमिका भारतीय कानून में मान्य है, उससे ज्यादा हो सकती है?
4. एक कानूनी फैसला, जो औपचारिक रूप से समझौता न हो, कानूनी मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। संवाद व सहमति से समझौता हो सकता है। एक अदालत का फैसला, जो कानूनी मूल्यों से निकले हक पर आधारित होने का दावा करे, क्या बिना दोनों पक्षों की सहमति के ‘समझौता’ माना जाना चाहिए?
5. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को ‘समझौता’ मानना, क्या धर्मनिरपेक्षता को खतरनाक तरीके से पुनर्परिभाषित करना नहीं है?
6. कानून की नजर में समानता और समान कानूनी संरक्षण का हमारे देश में क्या मतलब है?
7. अदालत में जाना, कानून में आस्था का द्योतक है। तो क्या आस्था व कानून को एक दूसरे से विपरीत देखकर हम कानून व संवैधानिक मूल्यों में अपनी आस्था डगमगा नहीं रहे?
8. इस बहुधार्मिक देश में जहां एक धर्म बहुमत में है, अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति इसकी अन्य संस्थाओं व राज्यव्यवस्था का क्या उत्तरदायित्व है ?
इन सब सवालों के जवाब कौन देगा ? कौन है जो इन को खोजने के लिए सामने आएगा? ये सब बातें आज भी विचारणीय हैं |
जंजीरों में जकड़ी जिंदगी हुई रिहा
चंडीगढ़ 21, अक्तूबर (रेखा)| दो समाचारों के हवाले से पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका पर जंजीरों में जकड़े दो लोगों को रिहाई नसीब हुई है। सिरसा के डीसी और डबवाली के डीएसपी की तरफ से दाखिल जवाब में कहा गया कि बंधकों को रिहा करवाकर उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। साथ ही परिवार को आर्थिक मदद भी पहुंचाई गई है।
वकील राजेश खंडेलवाल की तरफ से दाखिल याचिका में भास्कर में छपे दो समाचारों के हवाले से कहा गया कि मानसिक रूप से विक्षिप्त दो लोगों को उनके ही परिवार के सदस्यों ने जंजीरों से बांध रखा है। इनमें पहला मामला सिरसा के पन्नीवाला रूलदू में 28 साल के नौजवान जगबीर सिंह जग्गी का है। जग्गी को 15 साल से जंजीरों में बांधकर रखा गया था। दूसरा मामला चरखी दादरी के 32 वर्षीय अजीत सिंह का है। अजीत को भी पांच साल से उसके घर में जंजीरों से बांध कर रखा गया था।
बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
सड़ गया 58 हज़ार करोड़ का अनाज
अक्तूबर 20 जयपुर (रेखा/निधि )। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि देश में एक तरफ महंगाई बढ रही है, 40 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा, दूसरी ओर सरकारी गोदामों में एक साल में 58 हजार करोड रूपए का अनाज सड गया।
अगले साल यह आकंडा एक लाख टन तक पहुंचने की आंशका है जिसकी कीमत एक लाख करोड रूपए होगी।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और राजस्थान सह-प्रभारी किरीट सौमेया ने केन्द्र पर आरोप लगाया है कि सरकार शराब कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए अनाज स्टाक के तयशुदा मापदण्डों का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने कहा कि देश में अनाज का तय बफर 269 लाख टन है, परंतु एफसीआई के माध्यम से भारत सरकार ने इस स्टाक को 625 लाख टन कर रखा है जिसके कारण 180 लाख टन अनाज खुले में रखा है। अनाज के खराब रख-रखाव एवं ज्यादा स्टोरेज से अनाज सड रहा है और यह सडा हुआ अनाज केन्द्र सरकार सस्ते दामों पर शराब बनाने वाली कंपनियों को दे रही है।
भाजपा द्वारा लगाई गई एफीसीआई के गोदामों में सड रहे गेहूं की दो दिवसीय चित्र प्रदर्शनी के उद्घाटन के बाद सौमेया ने केन्द्र सरकार से इस बात का खुलासा करे कि अब तक कितना सडा अनाज शराब कंपनियों को दिया जा चुका है
अगले साल यह आकंडा एक लाख टन तक पहुंचने की आंशका है जिसकी कीमत एक लाख करोड रूपए होगी।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और राजस्थान सह-प्रभारी किरीट सौमेया ने केन्द्र पर आरोप लगाया है कि सरकार शराब कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए अनाज स्टाक के तयशुदा मापदण्डों का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने कहा कि देश में अनाज का तय बफर 269 लाख टन है, परंतु एफसीआई के माध्यम से भारत सरकार ने इस स्टाक को 625 लाख टन कर रखा है जिसके कारण 180 लाख टन अनाज खुले में रखा है। अनाज के खराब रख-रखाव एवं ज्यादा स्टोरेज से अनाज सड रहा है और यह सडा हुआ अनाज केन्द्र सरकार सस्ते दामों पर शराब बनाने वाली कंपनियों को दे रही है।
भाजपा द्वारा लगाई गई एफीसीआई के गोदामों में सड रहे गेहूं की दो दिवसीय चित्र प्रदर्शनी के उद्घाटन के बाद सौमेया ने केन्द्र सरकार से इस बात का खुलासा करे कि अब तक कितना सडा अनाज शराब कंपनियों को दिया जा चुका है
मुझे बनाया गया बली का बकरा : मित्तल
अक्तूबर 20 नई दिल्ली (रेखा/निधि)। भारतीय जनता पार्टी के नेता सुधांशु मित्तल ने भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारते हुए बुधवार को कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में कथित अनियमितता के लिए उन्हें 'राजनीतिक बली का बकरा' बनाया गया है।
मित्तल ने अपने परिवार या खुद के भ्रष्टाचार में शामिल होने से इंकार किया। इससे पहले मित्तल के परिसरों पर आयकर विभाग ने छापे मारे थे। मित्तल को भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह और प्रमोद महाजन का नजदीकी माना जाता है। मित्तल ने कहा कि उनकी कंपनी दिल्ली टेंट एंड डेकोरेटिव ने राष्ट्रमंडल खेलों की एजेंसियों से केवल 29 लाख का बिजनेस किया था।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों की अनियमितताओं की जांच के नाम पर 'राजनीतिक बदला' लिया जा रहा है। मित्तल ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों पर कुल 77 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए और इसमें से मेरी कंपनी ने केवल 29 लाख रुपये का व्यवसाय किया। अब मुझे भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत माना जा रहा है। क्या यह ठीक है? मित्तल ने कहा कि वह किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। दीपाली डिजाइन के साथ अपने संबंधों पर मित्तल ने कहा कि वह एक स्वतंत्र निदेशक के रूप में इस साल फरवरी में कंपनी से जुड़े थे और जुलाई में इस्तीफा दे दिया था। इसी कंपनी को 230 करोड़ रुपये के ठेके दिए गए थे।
मित्तल ने कहा कि दीपाली डिजाइन में मेरा एक भी शेयर नहीं है। न ही मेरे परिवार के किसी नजदीकी व्यक्ति का एक भी शेयर है। मुझसे बोर्ड में एक स्वतंत्र निदेशक के रूप में शामिल होने का अनुरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि दीपाली डिजाइन ने उनके निदेशक बनने से पहले ही राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बोली लगाई थी।
मित्तल ने अपने परिवार या खुद के भ्रष्टाचार में शामिल होने से इंकार किया। इससे पहले मित्तल के परिसरों पर आयकर विभाग ने छापे मारे थे। मित्तल को भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह और प्रमोद महाजन का नजदीकी माना जाता है। मित्तल ने कहा कि उनकी कंपनी दिल्ली टेंट एंड डेकोरेटिव ने राष्ट्रमंडल खेलों की एजेंसियों से केवल 29 लाख का बिजनेस किया था।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों की अनियमितताओं की जांच के नाम पर 'राजनीतिक बदला' लिया जा रहा है। मित्तल ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों पर कुल 77 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए और इसमें से मेरी कंपनी ने केवल 29 लाख रुपये का व्यवसाय किया। अब मुझे भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत माना जा रहा है। क्या यह ठीक है? मित्तल ने कहा कि वह किसी भी जांच के लिए तैयार हैं। दीपाली डिजाइन के साथ अपने संबंधों पर मित्तल ने कहा कि वह एक स्वतंत्र निदेशक के रूप में इस साल फरवरी में कंपनी से जुड़े थे और जुलाई में इस्तीफा दे दिया था। इसी कंपनी को 230 करोड़ रुपये के ठेके दिए गए थे।
मित्तल ने कहा कि दीपाली डिजाइन में मेरा एक भी शेयर नहीं है। न ही मेरे परिवार के किसी नजदीकी व्यक्ति का एक भी शेयर है। मुझसे बोर्ड में एक स्वतंत्र निदेशक के रूप में शामिल होने का अनुरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि दीपाली डिजाइन ने उनके निदेशक बनने से पहले ही राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बोली लगाई थी।
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
पाठशाला के बाहर लगे गंदगी के ढेर से लोग परेशान
सिरसा, 19 अक्टूबर,2010. जिला नगर परिषद की लापरवाही कम होने के बजाए दिनों दिन बढती ही नजर आ रही है. इसी का एक जीता जागता उदाहरण है अनाज मंडी रोड पर स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला के बाहर लगा कूड़े का ढेर. इस गंदगी के कारण कई बीमारियाँ फैल रही है लेकिन प्रशासन इस और कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार अनाज मंडी रोड पर स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला के बाहर पिछले डेढ़ वर्ष से कूड़े का द्गेर लगा हुआ है. इस गंदगी के कारण उस क्षेत्र का वातावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो गया है. पाठशाला के बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बदबू के कारण स्थानीय लोगों व आने-जाने वाले लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है. स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि इसकी सूचना कई बार नगर परिषद को दी गयी है लेकिन अधिकारियों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है.
राजकीय प्राथमिक पाठशाला की प्रधानाचार्य लक्ष्मी ने बताया कि नगर परिषद के उच्च अधिकारियों को इस बारे में कई बार शिकायत की जा चुकी है लेकिन अधिकारी इसके लिए कोई भी कदम नहीं उठा रहे है. बल्कि नगर परिषद के ही स्वीपर शहर से कूड़ा इक्कठा करके यहाँ फेंक जाते है ओर परेशानी का सामना हमें और स्थानीय लोगों को करना पड़ता है. खंड शिक्षा अधिकारी के दफ्तर में कार्यरत सहायक अधिकारी करमचंद ने बताया कि इस कूड़े की बदबू के कारण दफ्तर में बैठकर काम करना दूभर हो गया है. स्थानीय लोगों व पाठशाला के अध्यापकों की यही मांग है कि नगर परिषद इस ओर कोई ठोस कदम उठाये तथा उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करे जो यहाँ पर कूड़ा फेकते हैं चाहे वो नगर परषिद के लोग हों या स्थानीय लोग.
प्राप्त जानकारी के अनुसार अनाज मंडी रोड पर स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला के बाहर पिछले डेढ़ वर्ष से कूड़े का द्गेर लगा हुआ है. इस गंदगी के कारण उस क्षेत्र का वातावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो गया है. पाठशाला के बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बदबू के कारण स्थानीय लोगों व आने-जाने वाले लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है. स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि इसकी सूचना कई बार नगर परिषद को दी गयी है लेकिन अधिकारियों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है.
राजकीय प्राथमिक पाठशाला की प्रधानाचार्य लक्ष्मी ने बताया कि नगर परिषद के उच्च अधिकारियों को इस बारे में कई बार शिकायत की जा चुकी है लेकिन अधिकारी इसके लिए कोई भी कदम नहीं उठा रहे है. बल्कि नगर परिषद के ही स्वीपर शहर से कूड़ा इक्कठा करके यहाँ फेंक जाते है ओर परेशानी का सामना हमें और स्थानीय लोगों को करना पड़ता है. खंड शिक्षा अधिकारी के दफ्तर में कार्यरत सहायक अधिकारी करमचंद ने बताया कि इस कूड़े की बदबू के कारण दफ्तर में बैठकर काम करना दूभर हो गया है. स्थानीय लोगों व पाठशाला के अध्यापकों की यही मांग है कि नगर परिषद इस ओर कोई ठोस कदम उठाये तथा उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करे जो यहाँ पर कूड़ा फेकते हैं चाहे वो नगर परषिद के लोग हों या स्थानीय लोग.
सिरसा-ऐलनाबाद रोड पर एक बड़ा हादसा होते-होते टला
ऐलनाबाद, 19 अक्टूबर,2010 . गत सोमवार को सिरसा-ऐलनाबाद रोड पर एक कैंटर और एक सरकारी विभाग की जीप कि तकार होते-होते बच जाने से बड़ा हादसा टल गया. लेकिन अचानक ब्रेक लगाने पर बैलेंस बिगड़ जाने से कैंटर में सवार कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.
जानकारी के मुताबिक दोपहर 3 बजे डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं से भरा एक कैंटर राजस्थान स्थित गुरुसरमोड़ीया से सिरसा कि और जा रहा था. ऐलनाबाद के निकट एक जीप चालक कि लापरवाही के कारण उस जीप कि भिडंत कैंटर से होते बची लेकिन कैंटर चालक के अचानक नियंत्रण न कर पाने के कारण सवार कुछ लोग अचानक ब्रेक लगाने से गंभीर रूप से घायल हो गए. घायल लोगों को उसी समय ऐलनाबाद के सामान्य हस्पताल में दाखिल करवाया गया. वहां से बाद में उन्हें सिरसा के सामान्य हस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया.
घायल लोगों को बहुत गहरी चोटें आई है. घायल लोगों की पहचान लीलावती निवासी टोहाना, सरस्वती निवासी पानीपत, धर्मवती निवासी उत्तर प्रदेश व सतपाल निवासी सिरसा के रूप में की गई है. डेरे के लोगों द्वारा उनके परिवार वालों को सूचित कर दिया गया है. इस समय उनकी देखभाल का कार्य डेरे के लोगों द्वारा किया जा रहा है.
कैंटर में सवार अन्य लोगों का कहना है कि हादसे का कारण जीप चालक की लापरवाही है. उन्होंने बताया कि जीप किसी सरकारी विभाग की थी. जीप चालक जीप को लेकर मौके से फरार हो गया.
जानकारी के मुताबिक दोपहर 3 बजे डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं से भरा एक कैंटर राजस्थान स्थित गुरुसरमोड़ीया से सिरसा कि और जा रहा था. ऐलनाबाद के निकट एक जीप चालक कि लापरवाही के कारण उस जीप कि भिडंत कैंटर से होते बची लेकिन कैंटर चालक के अचानक नियंत्रण न कर पाने के कारण सवार कुछ लोग अचानक ब्रेक लगाने से गंभीर रूप से घायल हो गए. घायल लोगों को उसी समय ऐलनाबाद के सामान्य हस्पताल में दाखिल करवाया गया. वहां से बाद में उन्हें सिरसा के सामान्य हस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया.
घायल लोगों को बहुत गहरी चोटें आई है. घायल लोगों की पहचान लीलावती निवासी टोहाना, सरस्वती निवासी पानीपत, धर्मवती निवासी उत्तर प्रदेश व सतपाल निवासी सिरसा के रूप में की गई है. डेरे के लोगों द्वारा उनके परिवार वालों को सूचित कर दिया गया है. इस समय उनकी देखभाल का कार्य डेरे के लोगों द्वारा किया जा रहा है.
कैंटर में सवार अन्य लोगों का कहना है कि हादसे का कारण जीप चालक की लापरवाही है. उन्होंने बताया कि जीप किसी सरकारी विभाग की थी. जीप चालक जीप को लेकर मौके से फरार हो गया.
बाल भवन संस्था द्वारा जिला स्तरीय प्रतियोगिता का सफल आयोजन
सिरसा,19 अक्टूबर,2010. विद्यार्थी किसी भी देश का भविष्य होते हैं. अगर उन्हें अवसर दिया जाए तो उनके मन में हमेशा अपने देश और अपने माता-पिता का नाम रोशन करने की ललक होती है. उनकी इसी तमन्ना को पूरा करने में बाल भवन संस्था द्वारा गत 12 अक्टूबर से एक जिला स्तरीय प्रतियोगिता समारोह का आयोजन किया गया था जिसका आज बहुत ही अच्छे ढंग से समापन हुआ. इन प्रतियोगिताओं में जिले के विभिन्न स्कूलों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.बाल भवन संस्था द्वारा आयोजित इससमारोह में कई अलग-अलग प्रतियोगिताएं रखी गयी थीं जिनमें पेंटिंग, सोलो डांस, रंगोली, पोस्टर मेकिंग मुख्य आकर्षण का केंद्र रहीं. इस प्रतियोगिता समारोह में विभिन्न आयु वर्ग के विद्यार्थी शामिल हुए और अपनी कला का प्रदर्शन किया.
बाल भवन संस्था के सहायक अधिकारी प्रेम कुमार ने बताया कि इस प्रतियोगिता में जिले के खारिया पब्लिक स्कूल, द सिरसा स्कूल, आर.के.पी., डी.ऐ.वी., राजेंद्र पब्लिक स्कूल, एयर फोर्स स्कूल, जी.आर.जी., अग्रसेन व अन्य कई स्कूलों ने भाग लिया है. उन्होंने यह भी बताया कि इस संस्था द्वारा समय-समय पर इस प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि जुलाई और अगस्त में पेंटिंग प्रतियोगिता और बाल श्री अवार्डका आयोजन किया जाता है.
प्रेम कुमार ने बताया संस्था द्वारा 12-19 अक्टूबर तक आयोजित इस प्रतियोगिता में प्रथम आने वाले विद्यार्थी को राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए भेजा जायेगा. इसके बाद राष्ट्रीय स्टार पर प्रथम स्थान हासिल करने वाले प्रतिभागी को गवर्नर द्वारा सम्मानित किया जायेगा तथा उसे बाहरवीं कक्षा तक क्षात्रवृति दी जाएगी. बाल भवन संस्था द्वारा इस समय राज्य के कई शहरों करनाल, गुडगाँव, पानीपत, और कुरुक्षेत्र में भी कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है.
बाल भवन संस्था के सहायक अधिकारी प्रेम कुमार ने बताया कि इस प्रतियोगिता में जिले के खारिया पब्लिक स्कूल, द सिरसा स्कूल, आर.के.पी., डी.ऐ.वी., राजेंद्र पब्लिक स्कूल, एयर फोर्स स्कूल, जी.आर.जी., अग्रसेन व अन्य कई स्कूलों ने भाग लिया है. उन्होंने यह भी बताया कि इस संस्था द्वारा समय-समय पर इस प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि जुलाई और अगस्त में पेंटिंग प्रतियोगिता और बाल श्री अवार्डका आयोजन किया जाता है.
प्रेम कुमार ने बताया संस्था द्वारा 12-19 अक्टूबर तक आयोजित इस प्रतियोगिता में प्रथम आने वाले विद्यार्थी को राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए भेजा जायेगा. इसके बाद राष्ट्रीय स्टार पर प्रथम स्थान हासिल करने वाले प्रतिभागी को गवर्नर द्वारा सम्मानित किया जायेगा तथा उसे बाहरवीं कक्षा तक क्षात्रवृति दी जाएगी. बाल भवन संस्था द्वारा इस समय राज्य के कई शहरों करनाल, गुडगाँव, पानीपत, और कुरुक्षेत्र में भी कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है.
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
धान पर केंद्र ने माँगा बोनस : हुड्डा
18 अक्तूबर, रोहतक(निधि/रेखा)| राज्य में बाढ़ के कारण प्रभावित हुई धान की फसल को लेकर राज्य सरकार ने केंद्र से 100 रूपए प्रति किवंटल के हिसाब से बोनस की मांग की हैं | मुख्यमंत्री ने राज्य की जनता को दशहरे की शुभकामनाए देते हुए लोगो से वैर और अहंकार रुपी रावण के खात्मे की अपील की |
मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रविवार को कैनाल रेस्ट हाउस में लोगो की समस्याएं सुनी और आपसी सहयोग और भाईचारे की मांग की | केंद्र सरकार से 100 रुपये प्रति किवंटल बोनस की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि उनका हमेशा से यही प्रयास रहा है कि किसानो को उनकी फसलों का उचित दाम मिले | हुड्डा ने कहा कि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद लगातार किसानों की फसलों के दाम लगातार बढ़ रहें हैं | साथ ही साथ उन्होंने कहा कि धान उत्पादक किसानों को समर्थन मूल्य के अलावा 100 रुपये प्रति किवंटल अलग से बोनस दिया जायेगा | इसके लिए अधिकारीयों को निर्देश जारी कर कहा गया कि किसानों को फसल बेचने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े | 1 अक्तूबर से अब तक लगभग 10 लाख टन धान ख़रीदा जा चुका है |
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि किसानों को लाभ पहुचानें के उद्देश्य से विभिन्न फसलों के उन्नत बीजों पर उन्हें अनुदान भी दिया जा रहा हैं |
मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रविवार को कैनाल रेस्ट हाउस में लोगो की समस्याएं सुनी और आपसी सहयोग और भाईचारे की मांग की | केंद्र सरकार से 100 रुपये प्रति किवंटल बोनस की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि उनका हमेशा से यही प्रयास रहा है कि किसानो को उनकी फसलों का उचित दाम मिले | हुड्डा ने कहा कि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद लगातार किसानों की फसलों के दाम लगातार बढ़ रहें हैं | साथ ही साथ उन्होंने कहा कि धान उत्पादक किसानों को समर्थन मूल्य के अलावा 100 रुपये प्रति किवंटल अलग से बोनस दिया जायेगा | इसके लिए अधिकारीयों को निर्देश जारी कर कहा गया कि किसानों को फसल बेचने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े | 1 अक्तूबर से अब तक लगभग 10 लाख टन धान ख़रीदा जा चुका है |
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि किसानों को लाभ पहुचानें के उद्देश्य से विभिन्न फसलों के उन्नत बीजों पर उन्हें अनुदान भी दिया जा रहा हैं |
शनिवार, 16 अक्टूबर 2010
आस्ट्रेलियाई मीडिया ने की भारतीयों की तारीफ
मेलबर्न, 15 अक्टूबर| राष्ट्रमंडल खेलों की कामयाबी के अवसर पर आस्ट्रेलियाई मीडिया ने आज भारत और दिल्ली के लोगों को शानदार मेजबान करार देते हुए कहा कि इन खेलों को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा| मीडिया ने हालांकि देश के लोगों को शर्मसार करने के लिए आयोजन समिति पर हमला बोला है और कहा कि हम सब को भारत से प्यार है जो कि शानदार मेजबान रहा लेकिन खेलों कि आयोजन समिति माफ़ी के काबिल नहीं है| डेली टेलीग्राफ ने कहा कि दिल्ली के किसी भी निवासी से पूछो तो वो यही कहेगा कि इस स्वार्थी समिति ने उसे कितना लज्जित किया है | दिल्ली के लोगों ने खेलों को कामयाब बनाने के लिए दिन-रात सहयोग किया और इस काम को बखूबी अंजाम भी दिया | आस्ट्रेलियाई मीडिया ने बताया कि लोगों ने ऐसी बाधाओं को पार किया जिन्हें 'सैली पियरसन' भी पार नहीं कर सकती| साथ ही उन्होंने कहा कि सुरेश कलमाड़ी और उनके सहयोगी ललित भनोट की कमान वाली आयोजन समिति के नकारेपन के लिए दिल्ली या भारत के लोगों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अकेले वे दोनों ही मूल अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके न कि दिल्ली वाले |
नवमी पूजन के अवसर पर बड़ों के साथ-साथ बचों में भी उत्साह
सिरसा 16 अक्टूबर (दर्पण, रोहताश)| नवरात्रों में नवमी के अवसर पर सभी लोगों में भारी उत्साह था | जहाँ महिलाएं मंदिरों में जाकर माथा टेक रही थी, वहीं छोटे-छोटे बच्चों में भी काफी उत्साह नजर आ रहे थे | सिरसा में सी.एम.के. कॉलेज रोड पर स्थित माता दुर्गा मंदिर, लाल बत्ती चौंक पर स्थित सालासर धाम में लोगों की भीड़ देखी गई | महिलाओं व अन्य भक्तजनों के द्वारा विधिवत पूजन किया जा रहा था| लोगों ने छोटी-छोटी कन्याओं को कंजकों के रूप में पूजा और उन्हें प्रसाद के साथ साथ सूट भी दिए | छोटी छोटी बच्चियों आँचल, गीता, काजल ने भी आज कंजक का रूप धारण किया और माता के जयकारे लगाये| दुर्गा पूजन के समय कन्यायों की कमी महसूस होने लगती है और लगता है कि कन्या भ्रूण हत्या सचमुच एक जघन्य अपराध है |
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
सफलता का मूल मंत्र
अपने जीवन के उद्देश्य को जानना और उसे प्राप्त करने के लिए दृढ़ आत्मविशवास रखना, यही सफलता की ओर पहला कदम है । यह अदम्य विचार कि मै अवश्य सफल होऊंगा और उस पर पूरा विश्वास ही सफलता पाने का मूल मंत्र है । याद रखिए ! विचार संसार की सबसे महान शक्ति है यही कारण है कि सफलता पाने वाले लोग पूर्ण आत्मविशवास रखते हुए अपने कामों को पूरी कुशलता से करते हैं, दुसरो की सफलता के लिए भी वे सदा प्रयत्नशील रहते हैं ।
प्रत्येक विचार, प्रत्येक कर्म का फल अवश्य मिलता है अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा । यही प्रकृति का नियम है । इसमे देर हो सकती है पर अंधेर नही । इसलिए आप सफल होना चाहते हैं तो अच्छे विचार रखिए, सद्कर्म करिए और जरुरतमंदो की नि:स्वार्थ भाव से सहायता तथा सेवा करिए । मार्ग मे आने वाली कठिनाइयों, बाधाओं और दुसरो की कटुआलोचनाओं से अपने मन को अशांत न होने दीजिए।
जब अपनी समस्या न सुलझे
जब अपनी समस्या न सुलझे
जब कोइ अपनी समस्या को हल न कर सके तो उस के लिए सब से अच्छा तरीका एक ऎसे व्यक्ति की खोज करना है जिसके पास उससे भी अधिक समस्याएँ हों , और तब वह उन्हे हल करने मे उस की सहायता करे। आप की समस्या का हल आप को मिल जाएगा । चौकिए मत, इसे आजमाइए।
बीज और फल अलग अलग नही
बीज और फल अलग अलग नही
विश्व प्रसिद्ध विचारक इमर्सन ने ठीक ही कहा है कि - "प्रत्येक कर्म अपने मे एक पुरस्कार है। यदि कर्म भली प्रकार से किया गया होगा और शुभ होगा, तो निश्चय ही उस का फल भी शुभ होगा। इसी प्रकार गलत तरीके से किया गया अशुभ कर्म हानिकारक होगा"। आप इसे पुरातन पंथ नैतिकता कह सकते हैं, जो कि वास्तव मे यह है । लेकिन, साथ- साथ ही, यह आधुनिक नैतिकता भी है। यह उस समय भी प्रभावशाली थी , जब मनुष्य ने पहिए का अविष्कार किया था और भविष्य मे भी प्रभावशाली रहेगी, जब मनुष्य दूसरे ग्रहो पर निवास करने लगेगा । यह नैतिकता से अधिक प्रकृति का क्षतिपूर्ति नियम है, जो जैसा करेगा वैसा भरेगा। वैज्ञानिक दृष्टि से कर्म और फल के रुप मे दर्शाया जा सकता है । जैसे बीज बोएंगे वैसे फल पाएगे।
अंधविश्वास सफलता में सबसे बड़ी बाधक
मनुष्य जीवन भर इस अज्ञानपूर्ण अंधविश्वास से चिंतिंत रहते हैं कि कही उसे कोइ धोखा न दे जाए। उसे यह ज्ञान नही होता कि मनुष्य को स्वयं उस के सिवाए कोइ दूसरा धोखा नही दे सकता, वास्तव मे, वह अपने ही मोह और भय के कारण धोखे मे फंसता है। हम भूल जाते हैं कि एक परमशक्ति भी है जो सदैव हर व्यक्ति के साथ रहती है। जब कोइ व्यक्ति किसी से कोई समझौता या अनुबंध करता है, तो यह परमशक्ति अदृश्य और मौनरुप से एक साक्षी की तरह उपस्थित रहती है।
हम इस दुनियां को धोखा दे सकते है पर इस अदृश्य शक्ति को नही। इसलिए जो व्यक्ति दूसरो को धोखा दे कर या उस का शोषण करके जो व्यक्ति सफलता या धन प्राप्त करना चाहता है उसको अन्त मे भयानक परिणामों को भुगतना पडता है। यही कारण है कि संसार के सभी संतों और महापुरुषो ने नि:स्वार्थ कार्य करने पर बल दिया है।
भय सफलता का दुशमन
सफलता के मार्ग मे पड़ने वाली सबसे बड़ी बाधा हमारा भय ही है, वही हमारा दुशमन है अत: हमे भयभीत नही होना चाहिए। इसको दूर करने के लिए सर्वोत्त्म उपाय यह है कि हम जिस वस्तु, आदमी या परिस्थिति से भयभीत होते है, उसी का बुद्धिमानी पूर्ण साहस से सामना करें। भय के कारणो पर विचार कर उन्हे दूर करें और जिस सद्कार्य को करने से भय अनुभव होता हो उसे परमात्मा पर अटूट श्रद्धा और आत्मविश्वास रखते हुए कर डालें। स्मरण रखिए आप का भय कोई दूसरा दूर नही कर सकता, वह केवल आप को सलाह दे सकता है, उसे दूर तो आप को ही करना होगा ।
जलन से बचिए
हम इस दुनियां को धोखा दे सकते है पर इस अदृश्य शक्ति को नही। इसलिए जो व्यक्ति दूसरो को धोखा दे कर या उस का शोषण करके जो व्यक्ति सफलता या धन प्राप्त करना चाहता है उसको अन्त मे भयानक परिणामों को भुगतना पडता है। यही कारण है कि संसार के सभी संतों और महापुरुषो ने नि:स्वार्थ कार्य करने पर बल दिया है।
भय सफलता का दुशमन
सफलता के मार्ग मे पड़ने वाली सबसे बड़ी बाधा हमारा भय ही है, वही हमारा दुशमन है अत: हमे भयभीत नही होना चाहिए। इसको दूर करने के लिए सर्वोत्त्म उपाय यह है कि हम जिस वस्तु, आदमी या परिस्थिति से भयभीत होते है, उसी का बुद्धिमानी पूर्ण साहस से सामना करें। भय के कारणो पर विचार कर उन्हे दूर करें और जिस सद्कार्य को करने से भय अनुभव होता हो उसे परमात्मा पर अटूट श्रद्धा और आत्मविश्वास रखते हुए कर डालें। स्मरण रखिए आप का भय कोई दूसरा दूर नही कर सकता, वह केवल आप को सलाह दे सकता है, उसे दूर तो आप को ही करना होगा ।
जलन से बचिए
ईष्या या जलन से हमारी मानसिक शान्ति भंग होती है जिस के कारण हम अपने कार्यो को पूरी योग्यता से नही कर पाते। इस का परिणाम यह होता है कि कर्म मे न सफलता मिलती है और न ही मानसिक आनंद। हमें दूसरो की उन्नति या चमक दमक को देख कर ईष्या नही करनी चाहिए। सच मे यह ईष्या हमारी कार्यकुशलता, मानसिक शान्ति और संतुलन को जला डालती है। अत: यदि हम अपने जीवन मे सफलता पाना चाहते हैं, तो ईष्या से बचना चाहिए ।
वैज्ञानिक-सी सोच
वैज्ञानिक-सी सोच
हमारे मस्तिष्क के विचारों में संसार को बदल देने की शक्ति है। विचारों की शक्ति को एकाग्र करके आप अपने आप जीवन की समस्त बाधाओं और कठिनाईयों को दूर कर वांछित सफलता प्राप्त कर सकते हैं विचारों की शक्ति से पहाड़ को भी हटाया जा सकता है। मनुष्य एक विचारशील प्राणी है, किसी भी कार्य को करने से पहले हमारे मन मे उस को करने का विचार आता है।
यह मानव के विचारों की ही शक्ति है, जो आज वह अंतरिक्षयानो के द्धारा ऐसे महान व अदभुत कार्य कर रहा है जिस की पहले कलपना ही की जा सकती थी। ध्यान रहे, एक मूर्ख और वैज्ञानिक विचारो मे भौतिक अंतर होता है, जहां एक मूर्ख के विचार तर्कहीन और बेतुके होते हैं, वही वैज्ञानिक के विचार तर्कसंगत, व्यवस्थित, तथा प्राकृतिक नियमो पर आधारित होता है। जीवन मे सफल होने के लिए एक वैज्ञानिक के तरह विचार करना अवश्यक होता है ।
व्यक्तित्व को निखारें
किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके चरित्र की विशेषताओं व व्यवहार के मेल से बनता है, जो उस के सभी कामो मे झलकता है। इस व्यवहार मे चेतन और अवचेतन दोनो प्रकार के व्यवहार शामिल हैं। हमारा व्यवहार पूरे जीवन मे कई तथ्यो के प्रभाववश समय-समय पर बदलता रहता है। हमारे जीने और काम करने के तरीके मे लगातार बदलाव आता रहता है । यद्यपि इन बदलावो के बावजूद व्यवहार की जो छाप पहले- पहल पडती है वह आसानी से मिट नही पाती।
हमारा व्यक्तित्व, हमारा अस्तित्व, इसी जीवन का एक अंग है। हमारे विश्वास उन पत्तों की तरह है, जिनका जीव आकृति विज्ञान, संसाधन एकत्र करने व आत्म विचारों को सुधारते है। इन्ही से मिल्कर हमारा व्यक्तित्व बनता है। व्यक्तित्व को निखारने से व्यक्ति न केवल स्वंय बेहतर प्रदर्शन करता है अपितु अपनी टीम से भी बेहतर करबा सकता है। एक अच्छे व्यक्तित्व मे नेतृत्व की सभी विशेषताएं होती है जो आज के समय मे बहुत ज़रुरी है। व्यक्तित्व से ही झलक मिलती है कि सामने वाले व्यक्ति मे नेतृत्व की क्षमता है कि नही? इसी सीमा तक आकर व्यक्तित्व व नेतृत्व की क्षमताएं मिलकर किसी व्यक्ति को क्षेत्र विशेष मे सफल बनाती है। अपनी छिपी प्रतिभा को निखारने के लिए कुछ सुझाव दिए गए है लेकिन वे अंतिम सत्य नही है। आप अपनी इच्छाअनुसार इसमे कुछ भी घटा या बढा सकते हैं लेकिन एक वात तो निश्चित ही है, व्यक्तित्व विकास कोई एक दिन मे किया जाने वाला पाठय़क्रम नही है। इसमे आपके पूरे जीवन के रहने और काम करने का तौर- तरीका भी शामिल है ।
आप अपने व्यक्तित्व को कैसे निखार सकते है? जो भी कार्य करें, उस मे श्रेठ प्रदर्शन करें । एक सफल व संपूर्ण व्यक्तित्व का सफलता से गहरा संबंध होता है। यह सफलता पाने के अवसरों को बढा सकता है।
हम इस संसार मे आद्धितीय क्षमताओं के साथ आए है। हमारे जैसा कोई नही है। हमारे व्यवहार, आचरण और भाषा पर वर्षो से हमारे परिवार, स्कूल, मित्र, अध्यापकों व वातावरण की छाप होती है। आप बस इतना करे कि सहज व प्राकृतिक बने रहें। लोग दिखावटी चेहरों को आसानी से पहचान लेते हैं। हम सब के पास कोई न कोई प्राकृतिक हुनर है।
आप व्यक्तित्व को निखारना चाहते है तो अपने भीतर छिपे उस प्रतिभा, हुनर को पहचान कर उभारें। हर कोई एक अच्छा गायक या वक्ता नही बन सकता। यदि विंस्टन चर्चिल ने एक प्रेरणास्पद नेता बनने की बजाए गायक बनने की कोशिश की होती तो शायद वह कभी उसमे सफल नही हो पाते। इसी तरह महात्मा गाँधी एक अच्छे व्यवसायी नही बन सकते थे।
हम सब हालात के प्रति अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। किसी दूसरे की नकल करने की वजाए वही रहें, जो आप है हर कोई मिस्टर या मिस यूनिवर्स तो नही बन सकता लेकिन दूसरो के अनूभवो से सीखकर अपने में सुधार तो ला सकता है। जीवन मे थम कर बैठने के बजाए बेहतरी का कोई न कोई उपाय आज़माते रहना चाहिए ।
व्यक्तित्व का उपलब्धियो व प्रदर्शन से संबंध होता है, इस दिशा मे पहला कदम यही होगा कि आप तय करें कि आप क्या बनना चाहते है और आप उस के लिए क्या करने जा रहे हैं। आपकी योजना व्यवहारिक व स्पष्ट होनी चाहिए । सफलता की सभी योजनाए कल्पना से ही आरंभ होती है। योजना को हकीकत मे बदलने के लिए कल्पना शक्ति का प्रयोग करें। योजनाबद्ध कार्य, धैर्य, दृड संकल्प किसी भी सपने को साकार कर सकता है।
अवसर को पहचानें
कार्यो मे योग्य व्यक्तियो को कभी अवसरों का अभाव नही होता। ऎसे व्यक्ति छिपा नही रह सकता क्योकि ऎसे व्यक्ति की खोज मे अनेक लोग लगे रहते हैं। जो इस बात के लिए उत्सुक रहते हैं कि इस (व्यक्ति) से लाभ उठाया जाए। यदि योग्यता से सम्पन्न व्यक्ति अपने को छिपाने की कोशिश भी करे तो भी खोज लिया जाएगा और जिन्हें उस की अवश्यकता हो उनको कर्यो मे योग देने के लिए प्रेरित किया जाएगा। तो जीवन मे सफल होने का उपाय यह है कि मनुष्य अपने को कार्य करने के पूर्ण योग्य बनाये।
संसार मे अवसरों की कोई कमी नही है हर समय कोई न कोई अवसर आप के द्धार पर खडा आप का दरवाजा खट्खटा रहा होता है। परन्तु उस अवसर का लाभ उठाने के लिए अपने को पूर्ण रुप से तैयार करना होगा, प्रशिक्षित करना होगा। लेकिन उस के लिए अवसर को देखने मे सतर्कता, अवसर को पकडने मे व्यवहार कुशलता तथा साहस का होना अवश्यक है। अवसर के द्धारा पूर्ण सफ़लता प्राप्त करने के लिए अदम्य शक्ति और कार्य को पूर्ण किए बिना न छोडने का धैर्य - ये है ठोस गुण, जिस के द्धारा सफलता अवश्य प्राप्त किया जा सकता है।
डिजरेलि का कहना है ' जीवन मे मनुष्य के लिए सफ़लता का रहस्य यह है कि अवसर के लिए हमेशा तैयार खडे रहें, जब अवसर आये उसे पकड लें '। आलसी व्यक्ति को सुनहरे अवसर भी उन्हे हास्यपद बना देगा अगर उस को पकडने के लिए तैयार नही हो। जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे पद पर आसीन होता है उस का कारण यही होता है कि कई वर्षो से उस की तैयारी कर रहा था, केवल इस लिए नही कि उसे परिस्थितियों का लाभ मिला है। किस्मत हमेशा उस की सेवा मे हाजिर रहता है जो उस के योग्य हो ।
रस्किन का कहना है जवानो का सारा समय वस्तुत: निर्णय, ज्ञानवृधि तथा शिक्षण का समय है। जवानी का कोई भी क्षण ऎसा नही है भवितव्याताओ ( होनहारों, भाग्य, किस्मतों) से कम्पित न हो; एक भी क्षण ऎसा नही है के जब वह गुजर जाए तो उस का निर्धारित कार्य फिर कभी हो सके। जब लोहा ठंडा हो जाए तो उस पर चोट के क्या माने'।
अवसर तो मानव समाज की नीवों मे ही प्रस्तुत रुप से विधामान है। अवसर तो हमारे पास सब जगह है। हां इस का अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए अवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति इसे स्वंय देखें और उपयोग मे लाए। प्रत्येक वयक्ति को इसे अपने लिए बनाना होगा, खुद बनाना पडेगा वरना यह कभी नही बनेगा। सेंट बर्नार्ड का कहना है 'मुझे मेरे बिना और कोइ नही बना सकता'।
अवसर को बिगुल की आवाज कहा जा सकता है। यह सेना को लड्ने के लिए तो बुला सकता है परन्तु सेना को युद्ध जिताने का साधन नही बन सकती। यह स्मरण रखना चाहिए कि हम किसी भी क्षेत्र मे अपनी शक्तिओ का विकास करें, तथा जीवन मे विविध अवसरों के लिए अपने को प्रक्षिशित करें। प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि कुछ क्षण ऎसे होते हैं जिन पर वरसों का भाग्य निरर्भर होता है। हमे यह भी हमेशा ध्यान मे रखना चाहिए कि अनुकूल अवसर कुछ क्षणों के लिए ही आता है। यदि हम उस क्षण मे चुक जाते है तो हमने न जाने कितनी साल व महिने खो दिए। किसी काम को करना वैसे तो केवल बीज बोना है। यदि सही समय पर नही बोया गया तो अंकुर नही फुटेगें। जिस नौजवान का मन कर्मशील है उस के लिए अवसर पर अवसर है। कोई एक अवसर आखरी समय पर पकडने के लिए उसे दौडना नही पडता।
जीवन मे फैसला करने का क्षण अत्यन्त छोटा होता है, यदि हम सतर्क रहेंगे तो सफल अवश्य होगें। क्योकि सफलता और असफलता के मध्य अन्तर बहुत थोडा होता है और अन्तर करने वाली बात यही है।
रविवार, 10 अक्टूबर 2010
बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
हिंदी में अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग
रेखा
सारा साल चाहे हिन्दी की चिन्दी होती रहे लेकिन साल में कम से कम एक दिन के लिए तो उसकी पूछ हो ही जाती है। 14 सितम्बर के दिन दिखावे के लिए ही सही हम हिन्दी को रानी बना देते हैं। हिन्दी दिवस मनाया जाता है। कई कार्यालयों व विश्वविद्यालयों में हिन्दी से सम्बन्धित कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। वहां बडे़-बडे़ शासकीय अधिकारी अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में भाषण दिया करते हैं। भारत सरकार ने आखिर हिन्दी को राजभाषा का दर्जा जो दिया है। अब अगर बात करें हिन्दी में शब्दों का प्रयोग तो यह अंग्रेजी और हिन्दी के बीच का ऐसा खेल है जिसमें हिन्दी हारती ही जा रही है। इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन बढ़ते हुए बाजारीकरण के कारण आज हर कोई केवल हिन्दी या केवल अंग्रेजी न सीखकर हिंगलिश में हिन्दी का केवल एक अक्षर ही आया और शेष ढाई अक्षर ग्लिश अंग्रेजी भाषा के आते हैं, तो कहां रहेगा हिन्दी का प्रभुत्व। भारत सरकार ने हिन्दी को राजभाषा घोषित किया हुआ है। न राज रहे न राजा, रह गई तो सिर्फ राजभाषा। भारत एक राष्ट्र है न की राज । अब राज ही नहीं है तो यह बात समझ से परे है। संविधान सभा ने 14 सिंतम्बर, 1949 को हिन्दी को राजभाषा बनाने का फैंसला कैसे लिया ? इस प्रकार से तो राष्ट्रपिता के स्थान पर राजपिता होना चाहिए। भारत के पास अपना राष्ट्रीय ध्वज है, राष्ट्रीय गान है, राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह है -नहीं है तो बस राष्ट्रभाषा। आखिर क्यों हो एक राष्ट्रभाषा? भारत में अनेक भाषाऐं और बोलियां मौजूद हैं । संविधान के अनुच्छेद 344-1 और 351 के अनुसार उनमें से कुछ तो मुख्य रूप से बोली भी जाती हैं । अंग्रेजी , आसामी, बंगाली, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोंकणा, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू मुख्य बोली जाने वाली बोलियाँ हैं ।
अब भारत शासन हिन्दी को अगर राष्ट्रभाषा घोषित कर देता तो शेष भाषाओं को भी दोहरा दर्जा देना पड़ता। तो निश्चय किया गया कि भारत में राष्ट्रभाषा न होकर राजभाषा होनी चाहिए। इस प्रकार से सभी सन्तुष्ट रहेंगे। भारत में अधिकृत रूप से कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा नहीं है किन्तु देखा जाए तो आज भी परोक्ष रूप से अंग्रेजी ही इस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा है। शासकीय नियम के अनुसार हिन्दीभाषी क्षेत्र के कार्यालयों के नामपटल द्विभाषीय अर्थात हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में होने चाहिए। अर्थात अंग्रेजी का होना तो आवश्यक है चाहें क्षेत्र हिन्दीभाषी हो या नहीं। तो हुई न परोक्ष रूप से भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी | इस संकल्प को कितना पूरा किया जा रहा है जो संविधान में लिया गया था । यह तो इसी बात से पता चल जाता है कि हमारे बच्चे आज हमसे पूछते हैं कि चौंसठ का मतलब सिक्स्टी फॉर ही होता है ना ? उन्हें रैस्टोरेंट को रेस्टरां बोलना नहीं आता। बहुत लोगों को यह नहीं पता होता कि प्रतिपुष्ठि फीडबैक को कहते हैं। रेलगाड़ी शब्द जिसे हम ट्रेन के स्थान पर हिन्दी में प्रयोग करते है वो ही हमारी भाषा का शब्द नहीं है। हम लोहपथगामिनी तो कभी बोलते ही नहीं। किसे पता है कि लकड़म पकड़म भागम भाग गुत्थम प्रतियोगिता किस बला का नाम है। हम तो इसे क्रिकेट के नाम से ही जानतें है। बच्चों की बात छोडिये आज हम में से भी अधिकतर लोगों को यह नही पता कि अनुस्वार, चन्द्रबिन्दु और विसर्ग क्या होते हैं? हिन्दी के पूर्णविराम के स्थान पर अंग्रेजी के फुलस्टॉप का प्रयोग होने लगा है। अल्पविराम का दुरूपयोग तो यदा कदा देखने को मिल जाता है किन्तु अर्धविराम का प्रयोग तो लुप्त ही हो गया है। समस्या तो यह है कि परतंत्र में तो हिन्दी का विकास होता रहा किन्तु जब से देश स्वतन्त्र हुआ, इसके विकास की दुर्गति होनी शुरू हो गई। स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया। विदेश से प्रभावित शिक्षा नीति ने भी अग्रेंजी को अनिवार्य बना दिया गया। हिन्दी की शिक्षा दिनों दिन मात्र औपचारिकता बनते चली गई। दिनों दिन अंग्रेजी माध्यम वाले कान्वेंट स्कूलों के प्रति मोह बढता जा रहा है। हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए सिनेमा एक बढिया माध्यम है किन्तु भारतीय सिनेमा में हिन्दी फिल्मों की भाषा हिन्दी न होकर हिन्दुस्तानी है, जो कि हिन्दी व अन्य भाषाओं की खिचड़ी है। इसके कारण ही लोग हिन्दुस्तानी भाषा को हिन्दी समझने लगे और आज आलम यह है कि उन्हें हिन्दी भाषा ही मुश्किल लगने लगी। दूसरा प्रभावशाली माध्यम है मीडिया| किन्तु टीवी के निजी चैनलों ने हिन्दी में अग्रेंजी की मिलावट करके हिन्दी को ही गड्डे में डाल दिया प्रदशित होने वाले विज्ञापनों मे हिन्दी की चिन्दी करने में सोने पर सुहागे का काम किया। हिन्दी के समाचार पत्र जिन पर लोगों को आंख बन्द करके भी विश्वास करना कबूल है, ने भी हिन्दी को खत्म करने का बीड़ा ही उठा लिया है। व्याकरण की गल्तियों पर तो ध्यान देना ही बन्द हो गया है। पाठकों का हिन्दी ज्ञान अधिक से अधिक दूभर होता जा रहा है। अगर वक्त रहते हमने हिंदी की अशुद्धियों को खाने के साथ नहीं खाया तो अपने ही देश में अंग्रेज कहलाने लगेंगे।
सारा साल चाहे हिन्दी की चिन्दी होती रहे लेकिन साल में कम से कम एक दिन के लिए तो उसकी पूछ हो ही जाती है। 14 सितम्बर के दिन दिखावे के लिए ही सही हम हिन्दी को रानी बना देते हैं। हिन्दी दिवस मनाया जाता है। कई कार्यालयों व विश्वविद्यालयों में हिन्दी से सम्बन्धित कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। वहां बडे़-बडे़ शासकीय अधिकारी अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी में भाषण दिया करते हैं। भारत सरकार ने आखिर हिन्दी को राजभाषा का दर्जा जो दिया है। अब अगर बात करें हिन्दी में शब्दों का प्रयोग तो यह अंग्रेजी और हिन्दी के बीच का ऐसा खेल है जिसमें हिन्दी हारती ही जा रही है। इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन बढ़ते हुए बाजारीकरण के कारण आज हर कोई केवल हिन्दी या केवल अंग्रेजी न सीखकर हिंगलिश में हिन्दी का केवल एक अक्षर ही आया और शेष ढाई अक्षर ग्लिश अंग्रेजी भाषा के आते हैं, तो कहां रहेगा हिन्दी का प्रभुत्व। भारत सरकार ने हिन्दी को राजभाषा घोषित किया हुआ है। न राज रहे न राजा, रह गई तो सिर्फ राजभाषा। भारत एक राष्ट्र है न की राज । अब राज ही नहीं है तो यह बात समझ से परे है। संविधान सभा ने 14 सिंतम्बर, 1949 को हिन्दी को राजभाषा बनाने का फैंसला कैसे लिया ? इस प्रकार से तो राष्ट्रपिता के स्थान पर राजपिता होना चाहिए। भारत के पास अपना राष्ट्रीय ध्वज है, राष्ट्रीय गान है, राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह है -नहीं है तो बस राष्ट्रभाषा। आखिर क्यों हो एक राष्ट्रभाषा? भारत में अनेक भाषाऐं और बोलियां मौजूद हैं । संविधान के अनुच्छेद 344-1 और 351 के अनुसार उनमें से कुछ तो मुख्य रूप से बोली भी जाती हैं । अंग्रेजी , आसामी, बंगाली, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोंकणा, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू मुख्य बोली जाने वाली बोलियाँ हैं ।
अब भारत शासन हिन्दी को अगर राष्ट्रभाषा घोषित कर देता तो शेष भाषाओं को भी दोहरा दर्जा देना पड़ता। तो निश्चय किया गया कि भारत में राष्ट्रभाषा न होकर राजभाषा होनी चाहिए। इस प्रकार से सभी सन्तुष्ट रहेंगे। भारत में अधिकृत रूप से कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा नहीं है किन्तु देखा जाए तो आज भी परोक्ष रूप से अंग्रेजी ही इस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा है। शासकीय नियम के अनुसार हिन्दीभाषी क्षेत्र के कार्यालयों के नामपटल द्विभाषीय अर्थात हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में होने चाहिए। अर्थात अंग्रेजी का होना तो आवश्यक है चाहें क्षेत्र हिन्दीभाषी हो या नहीं। तो हुई न परोक्ष रूप से भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी | इस संकल्प को कितना पूरा किया जा रहा है जो संविधान में लिया गया था । यह तो इसी बात से पता चल जाता है कि हमारे बच्चे आज हमसे पूछते हैं कि चौंसठ का मतलब सिक्स्टी फॉर ही होता है ना ? उन्हें रैस्टोरेंट को रेस्टरां बोलना नहीं आता। बहुत लोगों को यह नहीं पता होता कि प्रतिपुष्ठि फीडबैक को कहते हैं। रेलगाड़ी शब्द जिसे हम ट्रेन के स्थान पर हिन्दी में प्रयोग करते है वो ही हमारी भाषा का शब्द नहीं है। हम लोहपथगामिनी तो कभी बोलते ही नहीं। किसे पता है कि लकड़म पकड़म भागम भाग गुत्थम प्रतियोगिता किस बला का नाम है। हम तो इसे क्रिकेट के नाम से ही जानतें है। बच्चों की बात छोडिये आज हम में से भी अधिकतर लोगों को यह नही पता कि अनुस्वार, चन्द्रबिन्दु और विसर्ग क्या होते हैं? हिन्दी के पूर्णविराम के स्थान पर अंग्रेजी के फुलस्टॉप का प्रयोग होने लगा है। अल्पविराम का दुरूपयोग तो यदा कदा देखने को मिल जाता है किन्तु अर्धविराम का प्रयोग तो लुप्त ही हो गया है। समस्या तो यह है कि परतंत्र में तो हिन्दी का विकास होता रहा किन्तु जब से देश स्वतन्त्र हुआ, इसके विकास की दुर्गति होनी शुरू हो गई। स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर राजभाषा का दर्जा दिया गया। विदेश से प्रभावित शिक्षा नीति ने भी अग्रेंजी को अनिवार्य बना दिया गया। हिन्दी की शिक्षा दिनों दिन मात्र औपचारिकता बनते चली गई। दिनों दिन अंग्रेजी माध्यम वाले कान्वेंट स्कूलों के प्रति मोह बढता जा रहा है। हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए सिनेमा एक बढिया माध्यम है किन्तु भारतीय सिनेमा में हिन्दी फिल्मों की भाषा हिन्दी न होकर हिन्दुस्तानी है, जो कि हिन्दी व अन्य भाषाओं की खिचड़ी है। इसके कारण ही लोग हिन्दुस्तानी भाषा को हिन्दी समझने लगे और आज आलम यह है कि उन्हें हिन्दी भाषा ही मुश्किल लगने लगी। दूसरा प्रभावशाली माध्यम है मीडिया| किन्तु टीवी के निजी चैनलों ने हिन्दी में अग्रेंजी की मिलावट करके हिन्दी को ही गड्डे में डाल दिया प्रदशित होने वाले विज्ञापनों मे हिन्दी की चिन्दी करने में सोने पर सुहागे का काम किया। हिन्दी के समाचार पत्र जिन पर लोगों को आंख बन्द करके भी विश्वास करना कबूल है, ने भी हिन्दी को खत्म करने का बीड़ा ही उठा लिया है। व्याकरण की गल्तियों पर तो ध्यान देना ही बन्द हो गया है। पाठकों का हिन्दी ज्ञान अधिक से अधिक दूभर होता जा रहा है। अगर वक्त रहते हमने हिंदी की अशुद्धियों को खाने के साथ नहीं खाया तो अपने ही देश में अंग्रेज कहलाने लगेंगे।
मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010
मंदिर और मस्जिद का दर्द
कहने को तो विद्यालयों में यही पढाया जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई आपस में सब भाई-भाई लेकिन वास्तव में तस्वीर कुछ और ही है. इसका जीता जागता उदाहरण है हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच कई वर्षो तक चला रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद. कुल 6 दशकों तक विवादित जमीन के लिए मंदिर-मस्जिद में चले मुक्काद्मे का आखिरकार फैसला हो ही गया. ये लड़ाई न तो हिन्दू भाइयों की थी न मुस्लिम भाइयों की और न ही हिन्दू-मुस्लिम लोगों की. ये लड़ाई थी मंदिर-मस्जिद के बीच में विवादित जमीन की. इस लड़ाई से जुडा दूसरा पहलु ये भी था कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है या नहीं. और आखिरकार कानून ने ये फैसला सुना ही दिया कि अयोध्या भगवान राम की ही जन्मभूमि है. सोचने वाली बात तो यह है कि अगर भगवान के जन्म स्थान का आस्तित्व ढूँढने में 60 वर्ष लग गए तो इन्सान के जन्म स्थान का आस्तित्व ढूँढने के लिए तो अगला जन्म ही लेना पड़ेगा. सभी जानते हैं कि प्राचीनकाल से ही हमारे ग्रंथों में यह बात विद्यमान है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है तो आज उस बात का प्रमाण ढूँढने की जरुरत क्यूँ. उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद के केंद्र में स्थित अयोध्या शहर , रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे वाली विवादित जमीन के मालिकाना हक़ को लेकर पिछले 60 वर्षों से सुर्ख़ियों में रहा है.
अयोध्या की पवित्र धरा पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का मुख्य कारण पुरातन ग्रंथों में पढने को मिल जाता है. कहा जाता है कि जब मुग़ल आक्रमणकारी बाबर काबुल से भारत आया तो उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हराया व उसके बाद चितौडगढ़ के राजपूतों व राणा संग्राम सिंह की घुड़सवार सेना पर फतह हासिल कर उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा अपने अधिकार में ले लिया. जब बाबर को अयोध्या में स्थित राम मंदिर का ज्ञान हुआ तो उन्होंने श्रद्धा भाव से मंदिर में जाने का निर्णय लिया किन्तु कुछ कट्टरपंथी हिन्दुओं को यह बात रास नहीं आई कि एक आक्रमणकारी मुस्लिम उनके मंदिर में आया. हिन्दुओं ने इसे अपने मंदिर का अपमान समझकर इसे अपवित्रता का प्रतीक समझा. उन कट्टरपंथी हिन्दुओं ने राम मंदिर को पवित्र करने के लिए 125 मण यानि 6000 किलोग्राम कच्ची लस्सी से धोया. यह बात जब मुग़ल प्रशासक बाबर तक पहुंची तो इस बात से उसकी श्रद्धा भावना आहत हुई और बाबर ने अपने सैनिकों को मंदिर तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया. उस मस्जिद का निर्माण बाबर द्वारा किये जाने के कारण मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया. इस मस्जिद का निर्माण 1528 में किया गया था.
उसके बाद ही अयोध्या में इस जगह पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद शुरू हो गया क्योंकि कुछ हिन्दुओं का कहना था कि इस जमीन पर पर भगवान राम का जन्म हुआ था और और उनका दावा था कि ये यह जगह केवल हिन्दुओं की है. कुछ इतिहासकारों का तो यह भी कहना था कि बाबर कभी अयोध्या आया ही नहीं तो उस मस्जिद का निर्माण उसके द्वारा कैसे किया गया. 1853 में मस्जिद के निर्माण के करीब तीन सौ साल बाद पहली बार इस स्थान के पास हिन्दू-मुस्लिम लोगों में दंगे हुए. वर्ष 1859 में ब्रिटिश सरकारने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दिया और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी. सन 1885 में अयोध्या का मामला सबसे पहले अदालत में आया. महंत रघुवरदास ने फैजाबाद के सब जज के सामने वाद संख्या 61 /280 ,1885 दायर किया. महंत ने अदालत से बाबरी ढांचे के पास राम चबूतरे के पास मंदिर बनाने की आज्ञा मांगी.
मुक्कद्मेबाजी का दूसरा चरण 23 दिसम्बर 1949 को शुरू हुआ जब भगवान राम की मूर्तियाँ कथित तौर पर मस्जिद में पाई गयीं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने यह मूर्तियाँ मस्जिद में रखवाई थी. मुसलामानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया. जिसके बाद मामला अदालत में गया. इसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया. फिर 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कि सामान्य अदालत में वाद संख्या 2 ,1950 दायर कर भगवान राम कि मूर्ती को न हटाने की मांग के साथ पूजा का अनन्य अधिकार भी माँगा. सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने इस विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया,जिसका नेतृत्त्व बाद में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने किया. उसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसम्बर , 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया. जिसके बाद पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच दंगे भड़क गए. दो हज़ार से भी अधिक लोगों की इसमें जान चली गयी. जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो उसी के साथ हज़ारों साल पुरानी हिन्दू-मुस्लिम एकता भी इसके साथ ही ढहा दी गयी. मस्जिद की जगह भगवान राम के मंदिर को लेकर शुरू हुए आन्दोलन का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस सरकार भी थी क्योंकि उस समय केंद्र की सत्ता में कांग्रेस सरकार थी और उसने बाबरी मस्जिद को टूटने से बचाने के लिए कोई ख़ास प्रयास नहीं किये. वर्ष 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया, जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने का अपना संकल्प दोहराया. इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच के तनाव ने फिर से तूल पकड़ लिया. 13 मार्च, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिला पूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. केंद्र सरकार ने भी अदालत के फैसले का पालन करने को कहा था. लगातार 60 वर्षों से चल रही अदालती कार्यवाही के बाद गिरते पड़ते आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर,2010 को अयोध्या विवाद पर दिए फैसले में विवादास्पद जमीन के तीन बराबर हिस्से कर वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा को देने का फैसला सुना ही दिया.
अदालत ने फैसला तो सुना दिया लेकिन इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों में भाईचारे की भावना कम हो गयी है. इस फैसले से न तो कोई जीता और न ही कोई हारा. मंदिर-मस्जिद की इस लड़ाई ने लोगों के दिलों में दूरियों को बढावा दिया है. हम तो सिर्फ यही प्रार्थना और दुआ करते हैं कि-
" संस्कार संस्कृति शान मिले
ऐसे हिन्दू-मुस्लिम और हिन्दुस्तान मिले,
रहे हम मिल जुल के ऐसे कि
मंदिर में मिले अल्लाह और मस्जिद में राम मिले"
अयोध्या की पवित्र धरा पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का मुख्य कारण पुरातन ग्रंथों में पढने को मिल जाता है. कहा जाता है कि जब मुग़ल आक्रमणकारी बाबर काबुल से भारत आया तो उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हराया व उसके बाद चितौडगढ़ के राजपूतों व राणा संग्राम सिंह की घुड़सवार सेना पर फतह हासिल कर उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा अपने अधिकार में ले लिया. जब बाबर को अयोध्या में स्थित राम मंदिर का ज्ञान हुआ तो उन्होंने श्रद्धा भाव से मंदिर में जाने का निर्णय लिया किन्तु कुछ कट्टरपंथी हिन्दुओं को यह बात रास नहीं आई कि एक आक्रमणकारी मुस्लिम उनके मंदिर में आया. हिन्दुओं ने इसे अपने मंदिर का अपमान समझकर इसे अपवित्रता का प्रतीक समझा. उन कट्टरपंथी हिन्दुओं ने राम मंदिर को पवित्र करने के लिए 125 मण यानि 6000 किलोग्राम कच्ची लस्सी से धोया. यह बात जब मुग़ल प्रशासक बाबर तक पहुंची तो इस बात से उसकी श्रद्धा भावना आहत हुई और बाबर ने अपने सैनिकों को मंदिर तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया. उस मस्जिद का निर्माण बाबर द्वारा किये जाने के कारण मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया. इस मस्जिद का निर्माण 1528 में किया गया था.
उसके बाद ही अयोध्या में इस जगह पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद शुरू हो गया क्योंकि कुछ हिन्दुओं का कहना था कि इस जमीन पर पर भगवान राम का जन्म हुआ था और और उनका दावा था कि ये यह जगह केवल हिन्दुओं की है. कुछ इतिहासकारों का तो यह भी कहना था कि बाबर कभी अयोध्या आया ही नहीं तो उस मस्जिद का निर्माण उसके द्वारा कैसे किया गया. 1853 में मस्जिद के निर्माण के करीब तीन सौ साल बाद पहली बार इस स्थान के पास हिन्दू-मुस्लिम लोगों में दंगे हुए. वर्ष 1859 में ब्रिटिश सरकारने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दिया और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी. सन 1885 में अयोध्या का मामला सबसे पहले अदालत में आया. महंत रघुवरदास ने फैजाबाद के सब जज के सामने वाद संख्या 61 /280 ,1885 दायर किया. महंत ने अदालत से बाबरी ढांचे के पास राम चबूतरे के पास मंदिर बनाने की आज्ञा मांगी.
मुक्कद्मेबाजी का दूसरा चरण 23 दिसम्बर 1949 को शुरू हुआ जब भगवान राम की मूर्तियाँ कथित तौर पर मस्जिद में पाई गयीं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने यह मूर्तियाँ मस्जिद में रखवाई थी. मुसलामानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया. जिसके बाद मामला अदालत में गया. इसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया. फिर 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कि सामान्य अदालत में वाद संख्या 2 ,1950 दायर कर भगवान राम कि मूर्ती को न हटाने की मांग के साथ पूजा का अनन्य अधिकार भी माँगा. सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने इस विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया,जिसका नेतृत्त्व बाद में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने किया. उसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसम्बर , 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया. जिसके बाद पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच दंगे भड़क गए. दो हज़ार से भी अधिक लोगों की इसमें जान चली गयी. जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो उसी के साथ हज़ारों साल पुरानी हिन्दू-मुस्लिम एकता भी इसके साथ ही ढहा दी गयी. मस्जिद की जगह भगवान राम के मंदिर को लेकर शुरू हुए आन्दोलन का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस सरकार भी थी क्योंकि उस समय केंद्र की सत्ता में कांग्रेस सरकार थी और उसने बाबरी मस्जिद को टूटने से बचाने के लिए कोई ख़ास प्रयास नहीं किये. वर्ष 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया, जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने का अपना संकल्प दोहराया. इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच के तनाव ने फिर से तूल पकड़ लिया. 13 मार्च, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिला पूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. केंद्र सरकार ने भी अदालत के फैसले का पालन करने को कहा था. लगातार 60 वर्षों से चल रही अदालती कार्यवाही के बाद गिरते पड़ते आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर,2010 को अयोध्या विवाद पर दिए फैसले में विवादास्पद जमीन के तीन बराबर हिस्से कर वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा को देने का फैसला सुना ही दिया.
अदालत ने फैसला तो सुना दिया लेकिन इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों में भाईचारे की भावना कम हो गयी है. इस फैसले से न तो कोई जीता और न ही कोई हारा. मंदिर-मस्जिद की इस लड़ाई ने लोगों के दिलों में दूरियों को बढावा दिया है. हम तो सिर्फ यही प्रार्थना और दुआ करते हैं कि-
" संस्कार संस्कृति शान मिले
ऐसे हिन्दू-मुस्लिम और हिन्दुस्तान मिले,
रहे हम मिल जुल के ऐसे कि
मंदिर में मिले अल्लाह और मस्जिद में राम मिले"
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
न अल्लाह न ईश्वर, जो नच ले वही सिकंदर... ये है अयोध्या का हल... एक पाकिस्तानी लोक गायक, सूफी गायक, देहाती गायक को सुनिए और नाचिए... इश्क बुल्ले नू नचावे यार तो नचना पैंदा है... देखिए, आपका अल्लाह और मेरा भगवान इसी तरह के लोगों में बैठा है... कहां ढूंढते हो अयोध्या में, कहां ढूंढते हो मंदिरों-मस्जिदों में... अल्लाह-ईश्वर जो हैं, जहां हैं, जैसे भी होंगे.... शायद इसी बंदे-से लोगों में होंगे
Today Thought
Two great days in human life:
"The day we were born & 2nd day we prove why we were born."
So, believe yourself & prove yourself.
"The day we were born & 2nd day we prove why we were born."
So, believe yourself & prove yourself.
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
Caste System In India
Institution of Caste means exclusivness of a social entity. Origin & Practice of caste system is quite obvious as much as it can be seen & perceived. Most of the caste entityes are directly linked with one's occupation. It is also apperent that it is out come of our old system of 'Warn'.
Through the ages in the past, it has rendered it services to the society.
As we can easily guess, at the enception of civilization, it was very difficult to manage the affairs of the society. Our wise ensesters divided the affairs of society in term of duties performed by the individual. A certain group was assigned with task of learning & teaching was known as Brahmins. Rolling class assigned with the duty of protecting the state was known as Khastriyas.
Trade,commerce & Agriculture were assigned to Vaishya & misllaneous services were rendered by Shudra. The division of labour of this sort has not only helped in better management but also ensured employment to all the sections of society. Members of a family were certain about their types of jobs and their skills got polished from generation to generation.
There is miscoonception that cast system devides the society but I want to make it clear with few practical examples whereby cast system binds the people together. The most glaring example is aggarwal community. They run innumerable cheritable institutions, hospitals, community kitchens and service centers, not only for the benefits of aggarwals and other communities also. Another example is that in democracy various cast groups also serve as pressure groups and they offer unifile struggle for their welfare and for securing social justice. A single rope is never need of a single fibre, different threads of fibre join together to give strength to th rope.
There are general blames like untouchability, Honour killing ,reservation discord , restriction of choice of proffesion often linked with caste system. I would like to clear it that these problems are proversed and distorted form of system and not failure of this system. It is we who is to be blamed for these proversion and distortion not system. During vedic period these evils were not heard of. During mediveal period ther errupted as any other menance and got wershand by colonial rulers who had a policy " To Divide And Rule". As far as honour killing is concerned caste system is not to be blamed for. Pakistan is aN Islamik country with no caste Entities but top in honpur killing.
Today we are quite free to choose our proffesion as per our capacity and academic quallifications. Caste comes no where.
Untouchability has been evolished by contitution given equality to all the citizens . It is time to learned from the past mistakes.
CONCLUSION
Through the ages in the past, it has rendered it services to the society.
As we can easily guess, at the enception of civilization, it was very difficult to manage the affairs of the society. Our wise ensesters divided the affairs of society in term of duties performed by the individual. A certain group was assigned with task of learning & teaching was known as Brahmins. Rolling class assigned with the duty of protecting the state was known as Khastriyas.
Trade,commerce & Agriculture were assigned to Vaishya & misllaneous services were rendered by Shudra. The division of labour of this sort has not only helped in better management but also ensured employment to all the sections of society. Members of a family were certain about their types of jobs and their skills got polished from generation to generation.
There is miscoonception that cast system devides the society but I want to make it clear with few practical examples whereby cast system binds the people together. The most glaring example is aggarwal community. They run innumerable cheritable institutions, hospitals, community kitchens and service centers, not only for the benefits of aggarwals and other communities also. Another example is that in democracy various cast groups also serve as pressure groups and they offer unifile struggle for their welfare and for securing social justice. A single rope is never need of a single fibre, different threads of fibre join together to give strength to th rope.
There are general blames like untouchability, Honour killing ,reservation discord , restriction of choice of proffesion often linked with caste system. I would like to clear it that these problems are proversed and distorted form of system and not failure of this system. It is we who is to be blamed for these proversion and distortion not system. During vedic period these evils were not heard of. During mediveal period ther errupted as any other menance and got wershand by colonial rulers who had a policy " To Divide And Rule". As far as honour killing is concerned caste system is not to be blamed for. Pakistan is aN Islamik country with no caste Entities but top in honpur killing.
Today we are quite free to choose our proffesion as per our capacity and academic quallifications. Caste comes no where.
Untouchability has been evolished by contitution given equality to all the citizens . It is time to learned from the past mistakes.
CONCLUSION
सोमवार, 20 सितंबर 2010
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का
छोड़ आये हम वो बेचैन लम्हा इंतज़ार का,घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
ज़िंदगी मानो नाराज़ थी हमसे अरसो से,
जी रहे थे बिना फ़िक्र किए अपनी हम बरसो से.
थी इतनी परेशानियाँ, दिल कितनी बार हारा,
खुशी बस ये थी कि बनते रहे औरों का सहारा.
चिंता थी कि बीत ना जाये ये दिन बहार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
थक गया था मन और शक्ति नही थी तन में,
साथी की ज़रूरत थी अब जिंदगी के रन में.
जिन पौधों को सींचा उन्हे ना थी अब हमारी ज़रूरत,
हर वादों को था निभाया, पर किसे थी अहमियत.
दिल मे बंद रखे थे ये सब आँसू असरार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
बिना आहट वो आये तो लगा प्यार कितना है ज़रूरी,
पर इकरार ना कर पाई, शायद चाहत थी ना पूरी.
मेरे दिल को बाँधे थी बरसो की जंग खाई बेड़ी,
टूटा उसका दिल पर उसने फिर भी आस ना छोडी.
उसकी कशिश ने लाया मेरे होठों पे बोल इज़हार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
पत्तों की नमी पर मेरे पायल की मादक झनक,
मेरे गुलाबी चूड़ियों की पागल कर देने वाली खनक.
उसके मीठे गीत मेरे दिल को दीवाना हैं बनाते,
रूठना आ गया मुझे, वो इतना अच्छा जो मनाते.
सुहाना सफ़र ये कुछ इनकार का कुछ इकरार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.
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