भारत इस समय विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उसका लक्ष्य प्रति वर्ष स्थाई रूप से 9-10 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृ़द्धि दर हासिल करना है। एक युवा देश होने के कारण हमारी 60 प्रतिशत जनसंख्या 15 से 55 वर्ष के कार्यशील आयु समूह में है। सामाजिक व आर्थिक रूप से भारत की जनसंख्या का सबसे बड़ा भाग कृषि व कुटीर उद्योगों पर आधारित है।
जिनमें महिला कामगारों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। भारत के श्रम बल में महिलाओं का स्थान महत्वपूर्ण है। विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चला कि महिलाओं की कार्य सहभागिता में सुधार जरूर हुआ है लेकिन पुरूषों की तुलना में देखा जाए तो महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में लगातार कमी आती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं ज्यादातर कुटीर उद्योग, छोटे-छोटे व्यापार, खेतीहर श्रमिकों व अन्य सेवाओं के लिए कार्यरत हैं। सर्वेक्षणों के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2001 में शहरी क्षेत्रों में 11.88 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कार्य सहभागिता दर 30.79 प्रतिशत थी। जबकि शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर महिलाएं भवन निर्माण एंव व्यापार आदि क्षेत्रों में नियोजित हैं।
महिलाओं के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण
जहां वर्ष 2008 में देश के कुल संगठित क्षेत्र में 20 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं वहीं इस वर्ष इन आंकड़ों में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 55 लाख महिलाएं सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में तथा लगभग 29.80 लाख महिलाएं सामाजिक व सामुदायिक क्षेत्रों में कार्यरत हैं। सरकार द्वारा महिलाओं के उत्थान के लिए एक ’रोजगार एंव प्रशिक्षण महानिदेशालय’ नामक नोडल एजेंसी स्थापित की गई है जो समय-समय पर महिलाओं को लक्ष्य प्राप्ति व करियर से सम्बंधित जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान करती है। इसी के साथ प्रांतीय क्षेत्रों में राज्य सरकारों के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन महिलाओं को शिल्पकार स्तर का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसी प्रशिक्षण से लाभ उठा कर वर्तमान में सामान्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में लगभग 1397 महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान तथा महिला प्रकोष्ठ हैं।
इसके अतिरिक्त भारतीय श्रमिक संस्थान मुम्बई में महिला और बाल श्रम पर एक कक्ष की स्थापना की गई है जिसमें बाल श्रमिकों के उत्थान व कल्याण के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ताकि ग्रामीण महिलाओं तक अधिक से अधिक लाभ पहुंच सके। महिला श्रम को आगे बढ़ाने में रोजगार कार्यालयों का बहुत योगदान है। रोजगार कार्यालयों ने अपने पास मौजूद महिला सूची में महिलाओं की रोजगार आवश्यकताओं को पूरा करने की ओर विशेष ध्यान दिया है और वर्ष 2010 के जुलाई माह के अंत तक लगभग 29,800 महिलाओं को अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार भी दिलवाए हैं।
महिला कामगारों के हितों की सुरक्षाः
रोजगार के साथ-साथ महिला कामगारों के हितों की रक्षा की ओर भी कारगर कदम उठाए जा रहे हैं। कई ऐसे कानून भी बनाए गए हैं जिनसे महिलाएं अपने अधिकारों व हितों की रक्षा कर सकती हैं जैसे पहला है ’कारखाना अधिनियम ’ जिसके तहत सामान्यतः तीस से अधिक महिला कामगारों को नियोजित करने वाले हर कारखाने में शिशुग्रह का प्रावधान है और दूसरा है समान ’पारिश्रमिक अधिनियम’ जो कि 1961 में बनाया गया था इसके तहत एक ही कार्य या एक ही स्वरूप के कार्य के लिए पुरूष व महिलाओं को एक समान वेतन दिया जाना सुरक्षित है। इसी तरह भर्ती व सेवा शर्तों में भी कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। महिलाओं को रोजगार देने के साथ-साथ वर्तमान रोजगार अवसरों को दोगुना करने की तरफ भी सरकार द्वारा कारगर कदम उठाए जा रहे हैं।
आर्थिक उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के इस युग में महिलाओं के रोजगार की गुणवत्ता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। इनमें शिक्षा तक पहुंच और कौशल विकास प्रशिक्षण मुख्य हैं। इन सुरक्षात्मक उपायों के अतिरिक्त महिलाओं के बीच कौशल विकास तथा प्रशिक्षण को बढ़ावा देने की नीतियों को भी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। महिला रोजगार परक कार्यक्रमों से यह लाभ होगा कि देश में कुटीर व सकल उद्योगों को सफल बनाया जा सकेगा और देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत बनेगी और राष्ट्र की प्रगति में महिलाओं की सहभागिता भी बढ़ेगी।
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