ग्रामीण महिलाओं को विशेषकर हाशिए पर चले गए समूहों को अवसर की समानता उपलब्ध कराना किसी भी विकासात्मक पहल का अनिवार्य घटक है। और ग्रामीण विकास मंत्रालय इस ध्येय के लिए प्रतिबद्ध है। हमारे सामाजिक ढांचें में महिलाओं के अधिकारों के लिए विभिन्न स्तरों पर किए गए ठोस उपायों के माध्यम से विकास प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गई है, ताकि महिलाओं को वास्तव में अधिकार सम्पन्न बनाया जा सकता है। सरकार ने अपनी नीतियों अैर कार्यक्रमों में पर्याप्त प्रावधान करने का विशेष रूप से ध्यान रखा है, जिसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि देश की सभी महिलाएं न केवल अधिकार सम्पन्न हों बल्कि विकास प्रक्रिया में भागीदार बन कर आर्थिक रूप से भी सशक्त होकर अपने पांव पर खड़ी भी हो सकें। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा विभिन्न कार्यक्रम बनाए जाते है।
सरकार द्वारा संचालित गरीबी उपशमन और ग्रामीण विकास संबंधी निम्न कार्यक्रम कार्यान्वित है:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी मनरेगा):
स्वर्णजयंती ग्राम स्व-रोजगार योजनाः
यह योजना 1 अप्रैल 1999 में शुरू की गई। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें ग्रामीण गरीबों को स्वंय सहायता समूह में संगठित करना, प्रशिक्षण, ऋण, प्रौद्योगिकी, अवसरंचना तथा विपणन जैसे कार्यों के विभिन्न पहलू शामिल हैं। दिशा-निर्देशों में ऐसी व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक ब्लॉक में निर्मित समूहों का 50 प्रतिशत केवल महिलाओं के लिए होना चाहिए जो स्वंय-रोजगारियों की कुल संख्या का कम-से-कम 40 प्रतिशत हो। इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को धन राशि की बचत तथा संचय के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे आर्थिक तौर पर पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बन सकें। कार्यक्रम के तहत परिक्रामी निधि, बैंक ऋण तथा सब्सिडी के रूप में सहायता देकर महिलाओं को स्वंयरोजगार के बढ़े हुए अवसर उपलब्ध करवा कर उन्हें विकास प्रक्रिया में शामिल करने का ऐसा प्रयास किया गया है जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया जा सके।
मनरेगा योजना की तरह ही इस योजना में भी वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसम्बर 2010 तक) सहायता प्राप्त स्वयं रोजगारियों की कुल संख्या 12,81,221 है जिसमें स्वयं सहायता समूहों के सदस्य व व्यक्तिगत स्वयं रोजगारी शामिल हैं। इसमें सहायता प्राप्त महिला स्वयं रोजगारियों की संख्या 85,00,67 बताई गई है, जो कि इस योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त कुल स्वयं रोजगारियों का लगभग 66.35 प्रतिशत है। इस योजना को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के रूप में पुनर्गठित किया जा रहा है जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निर्धारित किए गए प्रत्येक ग्रामीण निर्धन परिवार से कम-से-कम एक सदस्य, विशेष रूप से किसी एक महिला को समयबद्ध ढंग से स्वयं सहायता समूह नेटवर्क में डाला गया है। बाद में इन महिलाओं को कृषकों के संगठन, दुग्ध उत्पादक व सहकारी बुनकर संस्थानों जैसे संगठनों में शामिल किया जाता है ताकि उन महिलाओं के आजीविका संबंधी मुददों को सुलझाया जा सके।
इंदिरा आवास योजना:-
इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को मकानों का निर्माण करने के लिए सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत विधवाओं और अविवाहित महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। इंदिरा आवास योजना के तहत यह भी प्रावधान है कि इंदिरा आवास योजना के मकान परिवार की महिला सदस्यों के नाम अथवा वैकल्पिक तौर पर पति या पत्नी दोनों के नाम पर हों। वर्ष 2010-11 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कुल 26,86,117 आवासीय इकाइयां स्वीकृत की गई, जिसमें से 15,99,869 (59.56 %) आवास महिलाओं के नाम और 70,7,306 (86.33 %) संयुक्त रूप से पति व पत्नी दोनों के नाम किए गए।
उपरोक्त इन सभी योजनाओं के अतिरिक्त पुनर्गठित केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम तथा ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रमों में भी महिला घटक शामिल हैं। इन सभी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में निगरानी की जाती है। इन ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का ग्रामीण महिलाओं के रहन-सहनद पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के अंतर्गत सड़कों के विकास के बाद गावों की बालिकाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर भी बढ़ गए हैं। बेहतर सड़को के कारण महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधाएं भी आसानी से पहुंच रही हैं। इससे न केवल ग्रामीण स्रोतों की उत्पादकता बढ़ी है बल्कि महिलाओं की जागरूकता में भी काफी सुधार देखने को मिला है, जो पिछड़े पारम्परिक सामाजिक स्वरूप को बदलने में बहुत लाभपगद साबित होगा। ग्रामीण विकास की इन कल्याणकारी योजनाओं से महिलाओं की स्थिति में सुधार होने के साथ-साथ विकास कार्यक्रमों को भी गतिशीलता मिली है।
सरकार द्वारा संचालित गरीबी उपशमन और ग्रामीण विकास संबंधी निम्न कार्यक्रम कार्यान्वित है:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी मनरेगा):
मनरेगा की परिकल्पना गरीब ग्रामीणों को गांव में ही एक सुनिश्चित रोजगार देने का एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके फलस्वरूप आज देश के अनेक पिछड़े राज्यों के गरीब लोगों को दो वक्त की रोटी का प्रावधान किया गया है और ये गाँव के विकास के साथ-साथ गरीब लोगों के लिए वरदान भी साबित हुआ है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार रोजगार उपलब्ध करवाते समय महिलाओं को प्राथमिकता देनी है तथा इस योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने वालों में कम से कम एक तिहाई महिलाएं शामिल हों। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसम्बर 2010 तक) कुल 145.00 करोड़ श्रमदिवसों का रोजगार सृजित किया गया है, जिसमें से महिलाओं के लिए 72.93 करोड़ श्रमदिवस सृजित किए गए, जो कि इस कार्यक्रम में सृजित कुल रोजगार का 50 प्रतिशत है।
स्वर्णजयंती ग्राम स्व-रोजगार योजनाः
यह योजना 1 अप्रैल 1999 में शुरू की गई। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें ग्रामीण गरीबों को स्वंय सहायता समूह में संगठित करना, प्रशिक्षण, ऋण, प्रौद्योगिकी, अवसरंचना तथा विपणन जैसे कार्यों के विभिन्न पहलू शामिल हैं। दिशा-निर्देशों में ऐसी व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक ब्लॉक में निर्मित समूहों का 50 प्रतिशत केवल महिलाओं के लिए होना चाहिए जो स्वंय-रोजगारियों की कुल संख्या का कम-से-कम 40 प्रतिशत हो। इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को धन राशि की बचत तथा संचय के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे आर्थिक तौर पर पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बन सकें। कार्यक्रम के तहत परिक्रामी निधि, बैंक ऋण तथा सब्सिडी के रूप में सहायता देकर महिलाओं को स्वंयरोजगार के बढ़े हुए अवसर उपलब्ध करवा कर उन्हें विकास प्रक्रिया में शामिल करने का ऐसा प्रयास किया गया है जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया जा सके।
मनरेगा योजना की तरह ही इस योजना में भी वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसम्बर 2010 तक) सहायता प्राप्त स्वयं रोजगारियों की कुल संख्या 12,81,221 है जिसमें स्वयं सहायता समूहों के सदस्य व व्यक्तिगत स्वयं रोजगारी शामिल हैं। इसमें सहायता प्राप्त महिला स्वयं रोजगारियों की संख्या 85,00,67 बताई गई है, जो कि इस योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त कुल स्वयं रोजगारियों का लगभग 66.35 प्रतिशत है। इस योजना को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के रूप में पुनर्गठित किया जा रहा है जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निर्धारित किए गए प्रत्येक ग्रामीण निर्धन परिवार से कम-से-कम एक सदस्य, विशेष रूप से किसी एक महिला को समयबद्ध ढंग से स्वयं सहायता समूह नेटवर्क में डाला गया है। बाद में इन महिलाओं को कृषकों के संगठन, दुग्ध उत्पादक व सहकारी बुनकर संस्थानों जैसे संगठनों में शामिल किया जाता है ताकि उन महिलाओं के आजीविका संबंधी मुददों को सुलझाया जा सके।
इंदिरा आवास योजना:-
इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को मकानों का निर्माण करने के लिए सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत विधवाओं और अविवाहित महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। इंदिरा आवास योजना के तहत यह भी प्रावधान है कि इंदिरा आवास योजना के मकान परिवार की महिला सदस्यों के नाम अथवा वैकल्पिक तौर पर पति या पत्नी दोनों के नाम पर हों। वर्ष 2010-11 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कुल 26,86,117 आवासीय इकाइयां स्वीकृत की गई, जिसमें से 15,99,869 (59.56 %) आवास महिलाओं के नाम और 70,7,306 (86.33 %) संयुक्त रूप से पति व पत्नी दोनों के नाम किए गए।
उपरोक्त इन सभी योजनाओं के अतिरिक्त पुनर्गठित केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम तथा ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रमों में भी महिला घटक शामिल हैं। इन सभी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में निगरानी की जाती है। इन ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का ग्रामीण महिलाओं के रहन-सहनद पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के अंतर्गत सड़कों के विकास के बाद गावों की बालिकाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर भी बढ़ गए हैं। बेहतर सड़को के कारण महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधाएं भी आसानी से पहुंच रही हैं। इससे न केवल ग्रामीण स्रोतों की उत्पादकता बढ़ी है बल्कि महिलाओं की जागरूकता में भी काफी सुधार देखने को मिला है, जो पिछड़े पारम्परिक सामाजिक स्वरूप को बदलने में बहुत लाभपगद साबित होगा। ग्रामीण विकास की इन कल्याणकारी योजनाओं से महिलाओं की स्थिति में सुधार होने के साथ-साथ विकास कार्यक्रमों को भी गतिशीलता मिली है।
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