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Need create wants, Wants create tension, Tension creates action And Action creates SATISFACTION

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

सैयद अली गिलानी ने किया सारे देश को शर्मसार

वाह भई वाह आज मेरा मन उस पंक्ति के सत्य होने पर ख़ुशी से भर गया है जिसमें लिखा है " मेरा भारत महान ". मेरा भारत महान हो भी क्यूँ न इस देश में सैयद अली गिलानी जैसे नेता ओर अरुंधती राय जैसे सामाजिक कार्यकर्त्ता जो हैं.  इस से भी महान बात हमारे देश के उन नेताओं को सलाम करने की है जो गिलानी ओर अरुंधती जैसे देश विरोधियों की बातें सुनने के बाद भी विनम्रता दर्शातें हैं. पर हमारे देश की सरकार करे भी ओ क्या, वो तो हमेशा ही ऐसे नेताओं ओर हिंसा प्रेमी लोगों के आगे लाचार रही है. ऐसे ही किस्सों पर गौर फरमाते हैं जिसमें देश विरोध की कामना करने वाले नेता अपने हिंसात्मक कार्यो को बढावा दे रहे हैं.


गौरतलब है कि भारत प्रशासित कश्मीर के सबसे अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने कहा था कि भारत सरकार के साथ राजनीतिक चर्चा तभी होगी जब सरकार उनकी पांच शर्तों को मानेगी. उन्होंने यह भी कहा कि शर्तों को मानने के बाद ही कश्मीर में हो रही हिंसात्मक घटनाओं को रोकने पर विचार होगा नहीं तो ये हिंसात्मक कार्यवाही ओर भी तेज कर दी जाएगी. सैयद गिलानी भारत प्रशासित कश्मीर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे हैं.  इन्हीं विरोध प्रदर्शनों की वजह से सरकार ने जम्मू-कश्मीर मसले के लिए राजनीतिक चर्चा की बात कही थी. इसके लिए केंद्र सरकार ने तीन वार्ताकार नियुक्त किये थे. लेकिन देश की अशांति ओर देश में हिंसा की कामना करने वाले सैयद अली को यह शांतिपूर्वक वार्तालाप कहाँ रास आने वाला था ओर उसने सरकार की इस बात का बहिष्कार करते हुए रख डाली अपनी पांच शर्तें.


उन्होंने कहा कि इन शर्तों के पूरा होने के बाद ही बातचीत के लिए माहौल तैयार हो सकेगा. अपने निवास पर पत्रकारों से उन्होंने कहा कि वे सरकार की ओर से राजनीतिक बातचीत के प्रस्ताव में ये शर्तें रख रहे हैं.  हुर्रियत नेता गिलानी ने कश्मीर को अन्तराष्ट्रीय समस्या के रूप में स्वीकार करने की शर्त तो रखी लेकिन इस बार उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने और पकिस्तान को बातचीत में शामिल करने की अपनी पुरानी मांग भी दोहराई.


उल्लेखनीय है कि भारत प्रशासित कश्मीर में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अलगाववादी नेताओं से राजनीतिक चर्चा की अपील की थी. अपनी शर्तें गिनाते हुए कि वार्ता शुरू करने के लिए भारत को पहले यह स्वीकार करना होगा कि कश्मीर कि समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है. उनकी दूसरी शर्त है कि भारत को कश्मीर से सेना को हटाना होगा और इस प्रक्रिया की निगरानी का काम किसी विश्वसनीय एजेंसी को सौंपना चाहिए. गिलानी की तीसरी शर्त है कि भारत के प्रधानमंत्री को सार्वजानिक रूप से आश्वासन देना होगा कि इसके बाद कश्मीर में न तो किसी की गिरफ्तारी होगी और न ही किसी की जान ली जाएगी. अलगाववादी नेता ने चौथी शर्त यह रखी कि सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जायेगा और उनके खिलाफ सारे मुक्क्द्मे वापिस लिए जाएँगे. राजनीतिक बंदियों में उन्होंने मोह्हमद अफजल गुरु, मिर्जा नासिर हुसैन, और मोह्हमद अली भट का नाम लिया है. इन तीनो को ही भारतीय अदालतों ने मौत की सजा सुनाई है. उनकी अंतिम शर्त यह है कि राज्य में हिंसा के लिए दोषी सभी लोगों को सजा डी जाएगी. उनका कहना है, "इसकी शुरुआत पिछले जून से अब तक मारे गए 65 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को इस अपराध के लिए सजा देने से की जा सकती है."


सैयद गिलानी ने कहा कि ये कदम उठाने के बाद ही ऐसा माहौल तैयार हो सकेगा जिसमें कश्मीर के नेता मिलकर चर्चा कर सकेंगे और कश्मीर के शांतिपूर्ण हल के लिए जनमत तैयार कर सकेंगे. उन्होंने कहा कि यदि भारत सरकार ये कदम तत्काल उठाती है तो वे घटी में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को ख़त्म करने पर विचार करेंगे. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इन न्यूनतम आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करती है तो विरोध प्रदर्शन तेज कर दिए जायेंगे. उन्होंने राजनीतिक बंदियों को ईद से पहले रिहा करने की भी मांग की थी. गिलानी ने ही कश्मीर छोडो अभियान शुरू किया था, उसके बाद दो महीनों से अधिक समय से कश्मीर घाटी बंद ही रही है. या तो विरोध प्रदर्शनों की वजह से या फिर राज्य सरकार की और से लगाए गए कर्फ्यू की वजह से. गिलानी ने 28 अक्तूबर से शुरू होने वाले विरोध प्रदर्शन का कैलेंडर भी जरी किया. इस कैलेंडर के अनुसार 28,29 अक्तूबर और 2 व 4 नवम्बर को छोड़कर बाकी 8 नवम्बर तक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.    


देशप्रेम की भावना मन में होने के नाते और अपने देश की नागरिक होने के नाते यदि मुझे गिलानी के इन शर्मनाक कार्यों पर कुछ कहना पड़े तो में यही कहूँगी कि ऐसे नेता को हमारे देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को ऐसे नेता के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए और ऐसे नेताओं को देश से बाहर कर देना चाहिए जो देश में अशांति और हिंसा को बढावा देते है. में कश्मीर के उन लोगों से भी पूछना चाहूँगा कि उनकी अकल क्या कहीं घास चरने गई है जो इस देश विरोधी नेताओं की बैटन में आकर इस तरह की हिंसक घटनाओं के अंजाम दे रहे हैं. इन घटनाओं में न तो इन नेताओं को कुछ होगा और न ही इनके सगे सम्बन्धियों को, मारे जाते हैं तो वो आम लोग जो इन नेताओं के बहकावे में आकर अपने ही देश में खून खराबे को अंजाम देते है. उन सभी लोगों को सच्चाई को पहचानना भी चाहिए और समझना भी चाहिए कि ये नेता उन्हें इस्तेमाल करके केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं न कि उन्हें शांति और अमन दिला रहे हैं.

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

लोगों को सच्चाई को पहचानना भी चाहिए और समझना भी चाहिए कि ये नेता उन्हें इस्तेमाल करके केवल अपना उल्लू सीधा करते हैं न कि उन्हें शांति और अमन दिला रहे हैं. sahmat