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Need create wants, Wants create tension, Tension creates action And Action creates SATISFACTION

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

मंदिर और मस्जिद का दर्द

कहने को तो विद्यालयों में यही पढाया जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई आपस में सब भाई-भाई लेकिन वास्तव में तस्वीर कुछ और ही है. इसका जीता जागता उदाहरण है हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच कई वर्षो तक चला रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद. कुल 6 दशकों तक विवादित जमीन के लिए मंदिर-मस्जिद में चले मुक्काद्मे का आखिरकार फैसला हो ही गया. ये लड़ाई न तो हिन्दू भाइयों की थी न मुस्लिम भाइयों की और न ही हिन्दू-मुस्लिम लोगों की. ये लड़ाई थी मंदिर-मस्जिद के बीच में विवादित जमीन की. इस लड़ाई से जुडा दूसरा पहलु ये भी था कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है या नहीं. और आखिरकार कानून ने ये फैसला सुना ही दिया कि अयोध्या भगवान राम की ही जन्मभूमि है. सोचने वाली बात तो यह है कि अगर भगवान के जन्म स्थान का आस्तित्व ढूँढने में 60 वर्ष लग गए तो इन्सान के जन्म स्थान का आस्तित्व ढूँढने के लिए तो अगला जन्म ही लेना पड़ेगा. सभी जानते हैं कि प्राचीनकाल से ही हमारे ग्रंथों  में यह बात विद्यमान है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है तो आज उस बात का प्रमाण ढूँढने की जरुरत क्यूँ. उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद के केंद्र में स्थित अयोध्या शहर , रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे वाली विवादित जमीन के मालिकाना हक़ को लेकर पिछले 60 वर्षों से सुर्ख़ियों में रहा है.
           अयोध्या की पवित्र धरा पर रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद का मुख्य कारण पुरातन ग्रंथों में पढने को मिल जाता है. कहा जाता है कि जब मुग़ल आक्रमणकारी बाबर काबुल से भारत आया तो उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हराया व उसके बाद चितौडगढ़ के राजपूतों व राणा संग्राम सिंह की घुड़सवार सेना पर फतह हासिल कर उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा अपने अधिकार में ले लिया. जब बाबर को अयोध्या में स्थित राम मंदिर का ज्ञान हुआ तो उन्होंने श्रद्धा भाव से मंदिर में जाने का निर्णय लिया किन्तु कुछ कट्टरपंथी हिन्दुओं को यह बात रास नहीं आई कि एक आक्रमणकारी मुस्लिम उनके मंदिर में आया. हिन्दुओं ने इसे अपने मंदिर का अपमान समझकर इसे अपवित्रता का प्रतीक समझा. उन कट्टरपंथी हिन्दुओं ने राम मंदिर को पवित्र करने के लिए 125 मण यानि 6000 किलोग्राम कच्ची लस्सी से धोया. यह बात जब मुग़ल प्रशासक बाबर तक पहुंची तो इस बात से उसकी श्रद्धा भावना आहत हुई और बाबर ने अपने सैनिकों को मंदिर तोड़कर उस स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया. उस मस्जिद का निर्माण बाबर द्वारा किये जाने के कारण मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा गया. इस मस्जिद का निर्माण 1528 में किया गया था.
          उसके बाद ही अयोध्या में इस जगह पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद शुरू हो गया क्योंकि कुछ हिन्दुओं का कहना था कि इस जमीन पर पर भगवान राम का जन्म हुआ था और और उनका दावा था कि ये यह जगह केवल हिन्दुओं की है. कुछ इतिहासकारों का तो यह भी कहना था कि बाबर कभी अयोध्या आया ही नहीं तो उस मस्जिद का निर्माण उसके द्वारा कैसे किया गया. 1853 में मस्जिद के निर्माण के करीब तीन सौ साल बाद पहली बार इस स्थान के पास हिन्दू-मुस्लिम लोगों में दंगे हुए. वर्ष  1859 में ब्रिटिश सरकारने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दिया और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी. सन 1885 में अयोध्या का मामला सबसे पहले अदालत में आया. महंत रघुवरदास ने फैजाबाद के सब जज के सामने वाद संख्या 61 /280 ,1885  दायर किया. महंत ने अदालत से बाबरी ढांचे के पास राम चबूतरे के पास मंदिर बनाने की आज्ञा मांगी.
            मुक्कद्मेबाजी का दूसरा चरण 23 दिसम्बर 1949 को शुरू हुआ जब भगवान राम की मूर्तियाँ कथित तौर पर मस्जिद में पाई गयीं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने यह मूर्तियाँ मस्जिद में रखवाई थी. मुसलामानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया. जिसके बाद मामला अदालत में गया. इसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया. फिर 16 जनवरी 1950  को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कि सामान्य अदालत में वाद संख्या 2 ,1950 दायर कर भगवान राम कि मूर्ती को न हटाने की मांग के साथ पूजा का अनन्य अधिकार भी माँगा. सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने इस विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया,जिसका नेतृत्त्व बाद में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने किया. उसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने 6  दिसम्बर , 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया. जिसके बाद पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच दंगे भड़क गए. दो हज़ार से भी अधिक लोगों की इसमें जान चली गयी. जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो उसी के साथ हज़ारों साल पुरानी हिन्दू-मुस्लिम एकता भी इसके साथ ही ढहा दी गयी. मस्जिद की जगह भगवान राम के मंदिर को लेकर शुरू हुए आन्दोलन का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस सरकार भी थी क्योंकि उस समय केंद्र की सत्ता में कांग्रेस सरकार थी और उसने बाबरी मस्जिद को टूटने से बचाने के लिए कोई ख़ास प्रयास नहीं किये. वर्ष 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया, जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने का अपना संकल्प दोहराया. इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच के तनाव ने फिर से तूल पकड़ लिया. 13  मार्च, 2002  को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिला पूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. केंद्र सरकार ने भी अदालत के फैसले का पालन करने को कहा था.  लगातार 60 वर्षों से चल रही अदालती कार्यवाही के बाद गिरते पड़ते आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर,2010 को अयोध्या विवाद पर दिए फैसले में विवादास्पद जमीन के तीन बराबर हिस्से कर वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा को देने का फैसला सुना ही दिया. 
           अदालत  ने फैसला तो सुना दिया लेकिन इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम लोगों में भाईचारे की भावना कम हो गयी है. इस फैसले से न तो कोई जीता और न ही कोई हारा. मंदिर-मस्जिद की इस लड़ाई ने लोगों के दिलों में दूरियों को बढावा दिया है. हम तो सिर्फ यही प्रार्थना और दुआ करते हैं कि-
                          "  संस्कार संस्कृति शान मिले 
                             ऐसे हिन्दू-मुस्लिम और हिन्दुस्तान मिले,
                             रहे हम मिल जुल के ऐसे कि   
                             मंदिर में मिले अल्लाह और मस्जिद में राम मिले"

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