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Need create wants, Wants create tension, Tension creates action And Action creates SATISFACTION

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

न अल्लाह न ईश्वर, जो नच ले वही सिकंदर... ये है अयोध्या का हल... एक पाकिस्तानी लोक गायक, सूफी गायक, देहाती गायक को सुनिए और नाचिए... इश्क बुल्ले नू नचावे यार तो नचना पैंदा है... देखिए, आपका अल्लाह और मेरा भगवान इसी तरह के लोगों में बैठा है... कहां ढूंढते हो अयोध्या में, कहां ढूंढते हो मंदिरों-मस्जिदों में... अल्लाह-ईश्वर जो हैं, जहां हैं, जैसे भी होंगे.... शायद इसी बंदे-से लोगों में होंगे

Today Thought

Two great days in human life:
"The day we were born & 2nd day we prove why we were born."
So, believe yourself & prove yourself.

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

Caste System In India

Institution of Caste means exclusivness of a social entity. Origin & Practice of caste system is quite obvious as  much as it can be seen & perceived. Most of the caste entityes are directly linked  with one's occupation. It is also apperent that it is out come of our old system of  'Warn'.
Through the ages in the past, it has rendered it services to the society.
As we can easily guess, at the enception of civilization, it was very difficult  to manage the affairs of the society. Our wise ensesters divided the affairs of  society in term of duties performed by the individual. A certain group was assigned with task of learning & teaching was known as Brahmins. Rolling class assigned with the duty of protecting the state was known as Khastriyas.
Trade,commerce & Agriculture were assigned to Vaishya & misllaneous services were rendered by Shudra. The division of labour of this sort has not only helped in better management but also ensured employment to all the sections of society. Members of a family were certain about their types of jobs and their skills got polished from generation to generation.
        There is miscoonception that cast system devides the society but I want to make it clear with few practical examples whereby cast system binds the people together. The most glaring example is aggarwal community. They run innumerable cheritable institutions, hospitals, community kitchens and service centers, not only for the benefits of aggarwals and other communities also. Another example is that in democracy various cast groups also serve as pressure groups and they offer unifile struggle for their welfare and for securing social justice. A single rope is never need of a single fibre, different threads of fibre join together to give strength to th rope.
      There are general blames like untouchability, Honour killing ,reservation discord , restriction of choice of proffesion often linked with caste system. I would like to clear it that these problems are proversed and distorted form of system and not failure of this system. It is we who is to be blamed for these proversion and distortion not system. During vedic period these evils were not heard of. During mediveal period ther errupted as any other menance and got wershand by colonial rulers who had a policy " To  Divide And Rule". As far as honour killing is concerned  caste system is not to be blamed for. Pakistan is aN Islamik country with no caste Entities but top in honpur killing.
      Today we are quite free to choose our proffesion as per our capacity and academic quallifications. Caste comes no where.
      Untouchability has been evolished by contitution given equality to all the citizens . It is time to learned from the past mistakes.
CONCLUSION

सोमवार, 20 सितंबर 2010

घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का

छोड़ आये हम वो बेचैन लम्हा इंतज़ार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.

ज़िंदगी मानो नाराज़ थी हमसे अरसो से,
जी रहे थे बिना फ़िक्र किए अपनी हम बरसो से.

थी इतनी परेशानियाँ, दिल कितनी बार हारा,
खुशी बस ये थी कि बनते रहे औरों का सहारा.

चिंता थी कि बीत ना जाये ये दिन बहार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.

थक गया था मन और शक्ति नही थी तन में,
साथी की ज़रूरत थी अब जिंदगी के रन में.

जिन पौधों को सींचा उन्हे ना थी अब हमारी ज़रूरत,
हर वादों को था निभाया, पर किसे थी अहमियत.

दिल मे बंद रखे थे ये सब आँसू असरार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.

बिना आहट वो आये तो लगा प्यार कितना है ज़रूरी,
पर इकरार ना कर पाई, शायद चाहत थी ना पूरी.

मेरे दिल को बाँधे थी बरसो की जंग खाई बेड़ी,
टूटा उसका दिल पर उसने फिर भी आस ना छोडी.

उसकी कशिश ने लाया मेरे होठों पे बोल इज़हार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.

पत्तों की नमी पर मेरे पायल की मादक झनक,
मेरे गुलाबी चूड़ियों की पागल कर देने वाली खनक.

उसके मीठे गीत मेरे दिल को दीवाना हैं बनाते,
रूठना आ गया मुझे, वो इतना अच्छा जो मनाते.

सुहाना सफ़र ये कुछ इनकार का कुछ इकरार का,
घर ले आये अपने हम मौसम जो प्यार का.

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

TODAY'S THOUGHT

Don't be depressed by the barriers on the way,
Just concentrate on your goal.

अमरीका को जोर का झटका धीरे से

वाशिंगटन, १६ सितम्बरअमरीका के लिए ये बात किसी झटके  से कम नहीं थी जब उसे ताज़ा जनगणना से पता चला कि उनके देश में . करोड़ लोग आधिकारिक तौर पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत रहे हैंयही नहीं वहां के लोगों के रहन-सहन में भी गिरावट आई हैवहां बच्चों में गरीबी काफी देखने को मिल रही हैहर में बछा गरीब है जबकि अफ्रीका में में से बच्चा गरीब है
     अमरीका में गरीबी को मापने के लिए सदस्यों वाले एक परिवार के लिए सालाना १०.०८ लाख रूपए से कम कमाने वाले लोगों को गरीबी रेखा से नीचे रखा जाता है।  जाहिर है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए ये आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं
    इन  आंकड़ों को जारी करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि इस तरह के हालात से निपटने के लिए अमरीका को तेज आर्थिक विकास और नई-नई नौकरियों के सृजन कि जरूरत है

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

Always think Positive

 
सभी की जिन्दगी में उतार चढ़ाव आते हैं। कदम-कदम पर मुश्किलें आती हैं। हम सब जानते हैं, मुश्किलों की सबसे बुरी आदत ये ही की वे बिना बुलाए आ जाती है और उससे भी बुरी हमारी आदत नेगेटीव सोचने की। कई बार छोटी सी मुसीबत या परेशानी को हम इतनी बड़ी मान लेते हैं कि परिस्थिति का सामना करने से पहले ही हम हार मान बैठते हैं। ऐसे में जिन्दगी एक बोझ सी बन जाती है और बेमकसद हो जाती है। हम अपने आप को दुनिया का सबसे परेशान और बदकिस्मत व्यक्ति मान लेते हैं। ऐसे में खुद को तो तनावग्रस्त कर ही लेते हैं साथ ही हमसे जुड़े लोगों की जिन्दगी को भी तनाव से भर देते हैं।
एक बच्चे से उसके माता पिता बहुत प्यार करते थे। जैसे की सभी के माता-पिता करते हैं लेकिन उसकी कहानी कुछ अलग थी। उसके पेरेन्टस का प्यार सामान्य नहीं था। असामान्य था क्योंकि वो चाहते थे कि उनके बच्चे को इस बुरी दुनिया का सामना ना करना पड़े। वो चाहते थे कि वह बड़ा होकर बहुत बड़ी शख्सियत बने।इसीलिए उन्होंने अपने बच्चे को बाहरी माहौल से दूर रखा। उसे बाहर के बच्चों के साथ खेलने नहीं देते। बाहर के लोगों से बात नहीं करने देते। किसी रिश्तेदार से उसे मिलने भी नहीं देते। स्कुल भेजने की बजाय घर पर ही उसकी पढ़ाई की व्यवस्था कर दी। अब उस बच्चे की उम्र बड़ी तो माता-पिता दोनों ने सोचा कि अब हमारा बेटा अठारह साल का हो गया है। अब हमारा सपना पूरा होने का समय आ गया है। उन्होंने उसका एडमिशन एक बड़े मेडिकल कालेज में करवा दिया।
अब वह पहली बार कालेज गया उसने अपने आप को बाहरी माहौल में बड़ा असहज महसुस किया। वह दो दिनों में ही बाहरी दुनिया और उसके लोगों से परेशान हो गया। नतीजा ये हुआ कि उसने अपने माता-पिता से कहा कि वो उसे आकर यहां से ले जाए वरना वह होस्टल की बिल्डिंग से कूद कर अपनी जान दे देगा। माता-पिता घबरा गए और उसे घर ले आए।दरअसल उस लड़के को बाहर की दुनिया और आजादी रास नहीं आ रही थी क्योंकि वह तो कैद में रहने का आदी हो चुका था। उसे अपने फैसले खुद लेने की आदत नहीं थी। वह बाहरी दुनिया का तनाव बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसके माता- पिता को आज अपनी भूल का एहसास हुआ लेकिन अब वक्त गुजर चुका था।

अगर हमारा नजरिया नकारात्मक होगा तो हमारी जिन्दगी सिमाओं में कैद हो जाएगी। हमारे दोस्तों की तादाद कम होगी। हम जिन्दगी का कम आनंद उठा पाएंगे। हो सकता है सकारात्मक नजरिया विकसित करने के लिए हमें थोड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़े और बदलाव के कारण अनिश्चितता महसूस हो लेकिन ये निश्चित है कि जब हम हर परिस्थिति को सकारात्मक ढंग से लेने के आदी हो जाएंगे तो एक दिन हम सफल जरुर होंगे।