छू कर मेरे मन को........
मन की आवाज
रविवार, 18 दिसंबर 2011
गुरुवार, 30 जून 2011
जनशिक्षण संस्थान द्वारा गरीब व पिछड़े वर्ग के लिए एक पहल
भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत चण्डीगढ़ स्थित जनशिक्षण संस्थान पिछड़ी कॉलोनियों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले अनपढ़ व कम पढ़े लिखे बेरोजगारों व युवक-युवतियों को अपने पैरों पर खड़े होने के भरपूर अवसर प्रदान कर रहा है। इसी के साथ-साथ इस संस्थान द्वारा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के अंतर्गत भी विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है।
जनशिक्षण संस्थान द्वारा मॉडल जेल बुडै़ल में भी जेल के कैदियों को स्वरोजगार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है। इस संस्थान द्वारा कैदियों के रूझान को देखते हुए उन्हें उनकी रूचि के अनुसार कार्यों में निपुण किया जाता है। जिससे वे अपने कारावास काल के बाद आत्मनिर्भर बन कर एक नया जीवन शुरू कर सके। उन्हें दिए जाने वाले पाठ्यक्रम हैं-जैविक खाद्य बनाना, सॉफ्ट टॉय बनाना, हेल्थ केयर, स्कूटर/मोटर साईकिल मुरम्मत आदि पाठ्यक्रम हैं।
शॉर्ट हैंड व टाईपिंग का अभ्यास करते प्रशिक्षणार्थी |
इस संस्था द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जैसे सिलाई, कढाई, टाईपिंग, सटैनॉग्राफी, शॉर्ट हैंड, कम्पयूटर एप्लीकेशन और ब्यूटीकल्चर आदि। कम समय में उच्च कोटि का प्रशिक्षण प्राप्त कर पिछड़ी जातियों के लोग सक्षमता से समाज में समान रूप से अपना योगदान दे रहे हैं। यह संस्था स्वंय भी जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय निर्माण में अपनी भूमिका अदा कर रही है।
इनके अतिरिक्त जनशिक्षण संस्थान चण्डीगढ़ ने एक प्लेसमैंट सैल का गठन भी किया है। जिसकी सहायता से संस्थान द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके लोग रोजगार आसानी से ढूंढ सकते हैं। समाज के पिछड़े वर्ग, निरक्षर, अनुसूचित जाति, अल्प संख्यक, महिलाओं व श्रमिकों के साथ-साथ उनके परिवार के लोगों को अपनी आजीविका कमाने के लिए तथा आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने में जनशिक्षण संस्थान बेहतर प्रशिक्षण देने की ओर कार्यरत है।
संस्थान की प्रशिक्षार्थी शांति देवी ने बताया कि बहुत कम व्यय के बाद उन्होंने सिलाई का काम इतने बेहतर ढंग से सीख लिया कि अब वे न केवल अपने घर के कपड़े स्वंय ही सिलती हैं बल्कि इसके द्वारा बाहर से काम मिलने के कारण उनकी आमदनी के स्रोत भी बढ़ गए हैं। इस संस्था का मुख्य लक्ष्य वे सैक्टर हैं जहां पर पिछड़ी जातियों के लोग अधिक हैं जैसे चण्डीगढ़ के सैक्टर 37, 38, 22, 25 के अतिरिक्त बापू धाम कॉलौनी, मलोया में भी समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन किया जाता है जिससे अनेक लोगों को लाभ पहुंचा है। शिक्षा के ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ यह संस्थान न केवल इन लोगों को अपने कार्य में निपुणता हासिल करने में सहायता करता है अपितु उच्च कोटि की समाज सेवा की भावना के लिए भी प्रेरित करता है।
शुक्रवार, 17 जून 2011
राष्ट्र की प्रगति में महिला कामगारों की सहभागिता
भारत इस समय विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उसका लक्ष्य प्रति वर्ष स्थाई रूप से 9-10 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृ़द्धि दर हासिल करना है। एक युवा देश होने के कारण हमारी 60 प्रतिशत जनसंख्या 15 से 55 वर्ष के कार्यशील आयु समूह में है। सामाजिक व आर्थिक रूप से भारत की जनसंख्या का सबसे बड़ा भाग कृषि व कुटीर उद्योगों पर आधारित है।
जिनमें महिला कामगारों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। भारत के श्रम बल में महिलाओं का स्थान महत्वपूर्ण है। विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चला कि महिलाओं की कार्य सहभागिता में सुधार जरूर हुआ है लेकिन पुरूषों की तुलना में देखा जाए तो महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में लगातार कमी आती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं ज्यादातर कुटीर उद्योग, छोटे-छोटे व्यापार, खेतीहर श्रमिकों व अन्य सेवाओं के लिए कार्यरत हैं। सर्वेक्षणों के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2001 में शहरी क्षेत्रों में 11.88 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कार्य सहभागिता दर 30.79 प्रतिशत थी। जबकि शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर महिलाएं भवन निर्माण एंव व्यापार आदि क्षेत्रों में नियोजित हैं।
महिलाओं के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण
जहां वर्ष 2008 में देश के कुल संगठित क्षेत्र में 20 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं वहीं इस वर्ष इन आंकड़ों में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 55 लाख महिलाएं सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में तथा लगभग 29.80 लाख महिलाएं सामाजिक व सामुदायिक क्षेत्रों में कार्यरत हैं। सरकार द्वारा महिलाओं के उत्थान के लिए एक ’रोजगार एंव प्रशिक्षण महानिदेशालय’ नामक नोडल एजेंसी स्थापित की गई है जो समय-समय पर महिलाओं को लक्ष्य प्राप्ति व करियर से सम्बंधित जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान करती है। इसी के साथ प्रांतीय क्षेत्रों में राज्य सरकारों के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन महिलाओं को शिल्पकार स्तर का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसी प्रशिक्षण से लाभ उठा कर वर्तमान में सामान्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में लगभग 1397 महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान तथा महिला प्रकोष्ठ हैं।
इसके अतिरिक्त भारतीय श्रमिक संस्थान मुम्बई में महिला और बाल श्रम पर एक कक्ष की स्थापना की गई है जिसमें बाल श्रमिकों के उत्थान व कल्याण के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ताकि ग्रामीण महिलाओं तक अधिक से अधिक लाभ पहुंच सके। महिला श्रम को आगे बढ़ाने में रोजगार कार्यालयों का बहुत योगदान है। रोजगार कार्यालयों ने अपने पास मौजूद महिला सूची में महिलाओं की रोजगार आवश्यकताओं को पूरा करने की ओर विशेष ध्यान दिया है और वर्ष 2010 के जुलाई माह के अंत तक लगभग 29,800 महिलाओं को अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार भी दिलवाए हैं।
महिला कामगारों के हितों की सुरक्षाः
रोजगार के साथ-साथ महिला कामगारों के हितों की रक्षा की ओर भी कारगर कदम उठाए जा रहे हैं। कई ऐसे कानून भी बनाए गए हैं जिनसे महिलाएं अपने अधिकारों व हितों की रक्षा कर सकती हैं जैसे पहला है ’कारखाना अधिनियम ’ जिसके तहत सामान्यतः तीस से अधिक महिला कामगारों को नियोजित करने वाले हर कारखाने में शिशुग्रह का प्रावधान है और दूसरा है समान ’पारिश्रमिक अधिनियम’ जो कि 1961 में बनाया गया था इसके तहत एक ही कार्य या एक ही स्वरूप के कार्य के लिए पुरूष व महिलाओं को एक समान वेतन दिया जाना सुरक्षित है। इसी तरह भर्ती व सेवा शर्तों में भी कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। महिलाओं को रोजगार देने के साथ-साथ वर्तमान रोजगार अवसरों को दोगुना करने की तरफ भी सरकार द्वारा कारगर कदम उठाए जा रहे हैं।
आर्थिक उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के इस युग में महिलाओं के रोजगार की गुणवत्ता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। इनमें शिक्षा तक पहुंच और कौशल विकास प्रशिक्षण मुख्य हैं। इन सुरक्षात्मक उपायों के अतिरिक्त महिलाओं के बीच कौशल विकास तथा प्रशिक्षण को बढ़ावा देने की नीतियों को भी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। महिला रोजगार परक कार्यक्रमों से यह लाभ होगा कि देश में कुटीर व सकल उद्योगों को सफल बनाया जा सकेगा और देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत बनेगी और राष्ट्र की प्रगति में महिलाओं की सहभागिता भी बढ़ेगी।
ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए योजनाएं
ग्रामीण महिलाओं को विशेषकर हाशिए पर चले गए समूहों को अवसर की समानता उपलब्ध कराना किसी भी विकासात्मक पहल का अनिवार्य घटक है। और ग्रामीण विकास मंत्रालय इस ध्येय के लिए प्रतिबद्ध है। हमारे सामाजिक ढांचें में महिलाओं के अधिकारों के लिए विभिन्न स्तरों पर किए गए ठोस उपायों के माध्यम से विकास प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गई है, ताकि महिलाओं को वास्तव में अधिकार सम्पन्न बनाया जा सकता है। सरकार ने अपनी नीतियों अैर कार्यक्रमों में पर्याप्त प्रावधान करने का विशेष रूप से ध्यान रखा है, जिसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि देश की सभी महिलाएं न केवल अधिकार सम्पन्न हों बल्कि विकास प्रक्रिया में भागीदार बन कर आर्थिक रूप से भी सशक्त होकर अपने पांव पर खड़ी भी हो सकें। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा विभिन्न कार्यक्रम बनाए जाते है।
सरकार द्वारा संचालित गरीबी उपशमन और ग्रामीण विकास संबंधी निम्न कार्यक्रम कार्यान्वित है:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी मनरेगा):
स्वर्णजयंती ग्राम स्व-रोजगार योजनाः
यह योजना 1 अप्रैल 1999 में शुरू की गई। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें ग्रामीण गरीबों को स्वंय सहायता समूह में संगठित करना, प्रशिक्षण, ऋण, प्रौद्योगिकी, अवसरंचना तथा विपणन जैसे कार्यों के विभिन्न पहलू शामिल हैं। दिशा-निर्देशों में ऐसी व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक ब्लॉक में निर्मित समूहों का 50 प्रतिशत केवल महिलाओं के लिए होना चाहिए जो स्वंय-रोजगारियों की कुल संख्या का कम-से-कम 40 प्रतिशत हो। इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को धन राशि की बचत तथा संचय के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे आर्थिक तौर पर पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बन सकें। कार्यक्रम के तहत परिक्रामी निधि, बैंक ऋण तथा सब्सिडी के रूप में सहायता देकर महिलाओं को स्वंयरोजगार के बढ़े हुए अवसर उपलब्ध करवा कर उन्हें विकास प्रक्रिया में शामिल करने का ऐसा प्रयास किया गया है जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया जा सके।
मनरेगा योजना की तरह ही इस योजना में भी वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसम्बर 2010 तक) सहायता प्राप्त स्वयं रोजगारियों की कुल संख्या 12,81,221 है जिसमें स्वयं सहायता समूहों के सदस्य व व्यक्तिगत स्वयं रोजगारी शामिल हैं। इसमें सहायता प्राप्त महिला स्वयं रोजगारियों की संख्या 85,00,67 बताई गई है, जो कि इस योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त कुल स्वयं रोजगारियों का लगभग 66.35 प्रतिशत है। इस योजना को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के रूप में पुनर्गठित किया जा रहा है जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निर्धारित किए गए प्रत्येक ग्रामीण निर्धन परिवार से कम-से-कम एक सदस्य, विशेष रूप से किसी एक महिला को समयबद्ध ढंग से स्वयं सहायता समूह नेटवर्क में डाला गया है। बाद में इन महिलाओं को कृषकों के संगठन, दुग्ध उत्पादक व सहकारी बुनकर संस्थानों जैसे संगठनों में शामिल किया जाता है ताकि उन महिलाओं के आजीविका संबंधी मुददों को सुलझाया जा सके।
इंदिरा आवास योजना:-
इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को मकानों का निर्माण करने के लिए सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत विधवाओं और अविवाहित महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। इंदिरा आवास योजना के तहत यह भी प्रावधान है कि इंदिरा आवास योजना के मकान परिवार की महिला सदस्यों के नाम अथवा वैकल्पिक तौर पर पति या पत्नी दोनों के नाम पर हों। वर्ष 2010-11 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कुल 26,86,117 आवासीय इकाइयां स्वीकृत की गई, जिसमें से 15,99,869 (59.56 %) आवास महिलाओं के नाम और 70,7,306 (86.33 %) संयुक्त रूप से पति व पत्नी दोनों के नाम किए गए।
उपरोक्त इन सभी योजनाओं के अतिरिक्त पुनर्गठित केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम तथा ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रमों में भी महिला घटक शामिल हैं। इन सभी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में निगरानी की जाती है। इन ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का ग्रामीण महिलाओं के रहन-सहनद पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के अंतर्गत सड़कों के विकास के बाद गावों की बालिकाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर भी बढ़ गए हैं। बेहतर सड़को के कारण महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधाएं भी आसानी से पहुंच रही हैं। इससे न केवल ग्रामीण स्रोतों की उत्पादकता बढ़ी है बल्कि महिलाओं की जागरूकता में भी काफी सुधार देखने को मिला है, जो पिछड़े पारम्परिक सामाजिक स्वरूप को बदलने में बहुत लाभपगद साबित होगा। ग्रामीण विकास की इन कल्याणकारी योजनाओं से महिलाओं की स्थिति में सुधार होने के साथ-साथ विकास कार्यक्रमों को भी गतिशीलता मिली है।
सरकार द्वारा संचालित गरीबी उपशमन और ग्रामीण विकास संबंधी निम्न कार्यक्रम कार्यान्वित है:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी मनरेगा):
मनरेगा की परिकल्पना गरीब ग्रामीणों को गांव में ही एक सुनिश्चित रोजगार देने का एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके फलस्वरूप आज देश के अनेक पिछड़े राज्यों के गरीब लोगों को दो वक्त की रोटी का प्रावधान किया गया है और ये गाँव के विकास के साथ-साथ गरीब लोगों के लिए वरदान भी साबित हुआ है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार रोजगार उपलब्ध करवाते समय महिलाओं को प्राथमिकता देनी है तथा इस योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने वालों में कम से कम एक तिहाई महिलाएं शामिल हों। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसम्बर 2010 तक) कुल 145.00 करोड़ श्रमदिवसों का रोजगार सृजित किया गया है, जिसमें से महिलाओं के लिए 72.93 करोड़ श्रमदिवस सृजित किए गए, जो कि इस कार्यक्रम में सृजित कुल रोजगार का 50 प्रतिशत है।
स्वर्णजयंती ग्राम स्व-रोजगार योजनाः
यह योजना 1 अप्रैल 1999 में शुरू की गई। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें ग्रामीण गरीबों को स्वंय सहायता समूह में संगठित करना, प्रशिक्षण, ऋण, प्रौद्योगिकी, अवसरंचना तथा विपणन जैसे कार्यों के विभिन्न पहलू शामिल हैं। दिशा-निर्देशों में ऐसी व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक ब्लॉक में निर्मित समूहों का 50 प्रतिशत केवल महिलाओं के लिए होना चाहिए जो स्वंय-रोजगारियों की कुल संख्या का कम-से-कम 40 प्रतिशत हो। इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को धन राशि की बचत तथा संचय के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वे आर्थिक तौर पर पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बन सकें। कार्यक्रम के तहत परिक्रामी निधि, बैंक ऋण तथा सब्सिडी के रूप में सहायता देकर महिलाओं को स्वंयरोजगार के बढ़े हुए अवसर उपलब्ध करवा कर उन्हें विकास प्रक्रिया में शामिल करने का ऐसा प्रयास किया गया है जिससे उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया जा सके।
मनरेगा योजना की तरह ही इस योजना में भी वर्ष 2010-11 के दौरान (दिसम्बर 2010 तक) सहायता प्राप्त स्वयं रोजगारियों की कुल संख्या 12,81,221 है जिसमें स्वयं सहायता समूहों के सदस्य व व्यक्तिगत स्वयं रोजगारी शामिल हैं। इसमें सहायता प्राप्त महिला स्वयं रोजगारियों की संख्या 85,00,67 बताई गई है, जो कि इस योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त कुल स्वयं रोजगारियों का लगभग 66.35 प्रतिशत है। इस योजना को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के रूप में पुनर्गठित किया जा रहा है जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि निर्धारित किए गए प्रत्येक ग्रामीण निर्धन परिवार से कम-से-कम एक सदस्य, विशेष रूप से किसी एक महिला को समयबद्ध ढंग से स्वयं सहायता समूह नेटवर्क में डाला गया है। बाद में इन महिलाओं को कृषकों के संगठन, दुग्ध उत्पादक व सहकारी बुनकर संस्थानों जैसे संगठनों में शामिल किया जाता है ताकि उन महिलाओं के आजीविका संबंधी मुददों को सुलझाया जा सके।
इंदिरा आवास योजना:-
इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को मकानों का निर्माण करने के लिए सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत विधवाओं और अविवाहित महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। इंदिरा आवास योजना के तहत यह भी प्रावधान है कि इंदिरा आवास योजना के मकान परिवार की महिला सदस्यों के नाम अथवा वैकल्पिक तौर पर पति या पत्नी दोनों के नाम पर हों। वर्ष 2010-11 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कुल 26,86,117 आवासीय इकाइयां स्वीकृत की गई, जिसमें से 15,99,869 (59.56 %) आवास महिलाओं के नाम और 70,7,306 (86.33 %) संयुक्त रूप से पति व पत्नी दोनों के नाम किए गए।
उपरोक्त इन सभी योजनाओं के अतिरिक्त पुनर्गठित केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम तथा ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रमों में भी महिला घटक शामिल हैं। इन सभी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में निगरानी की जाती है। इन ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का ग्रामीण महिलाओं के रहन-सहनद पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के अंतर्गत सड़कों के विकास के बाद गावों की बालिकाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर भी बढ़ गए हैं। बेहतर सड़को के कारण महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधाएं भी आसानी से पहुंच रही हैं। इससे न केवल ग्रामीण स्रोतों की उत्पादकता बढ़ी है बल्कि महिलाओं की जागरूकता में भी काफी सुधार देखने को मिला है, जो पिछड़े पारम्परिक सामाजिक स्वरूप को बदलने में बहुत लाभपगद साबित होगा। ग्रामीण विकास की इन कल्याणकारी योजनाओं से महिलाओं की स्थिति में सुधार होने के साथ-साथ विकास कार्यक्रमों को भी गतिशीलता मिली है।
मंगलवार, 14 जून 2011
बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन के लिए सरकार के प्रयास
भारत में बढ़ती जनसंख्या के बाद दूसरी बड़ी समस्या बंधुआ मजदूरी की है। ये वो बंधुआ मजदूर है जो अपनी दो वक्त की रोटी के लिए गुलामी के भंवर में इस कदर फंस जाते हैं और इसे अपनी नियति मान लेते हैं। ये गरीब, कमजोर और लाचार बंधुआ लोग जमींदारों और साहूकारों के हाथों सालों साल शोषण का शिकार होते रहते हैं ।
इस समस्या से निपटने के लिए 25 अक्टूबर, 1975 में एक कानून बनाया गया जिसके बाद पूरे देश में बंधुआ मजदूरी प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के ठोस कदम उठाए गए और मजदूरों के़़ ऋणों को भी माफ कर दिया गया। इस कानून के बाद बंधुआ मजदूरी को एक दंडनीय अपराध माना जाने लगा। इस अधिनियम के लागू होने पर प्रत्येक श्रमिक को जबरन श्रम करने की बाध्यता से मुक्त कर दिया गया था। इस अधिनियम को राज्य सरकार द्वारा सभी राज्यों में भी लागू किया जा रहा है। यह कानून उन सभी बातों को अमान्य साबित करता है जिनके अनुसार किसी व्यक्ति को बंधुआ श्रम के रूप में अपनी सेवाएं देने के लिए बाध्य किया जा रहा हो।
बंधित श्रम पद्धति अधिनियम के द्वारा श्रमिकों को उनकी जमीन लौटा दी गई और उन्हें कारावास, जुर्माना आदि से भी मुक्त कर दिया गया और साथ ही साथ ऋण चुकाने की अवधि को भी बढाया गया। इन सभी विशेषताओं के साथ देश में बंधुआ मजदूरी को लेकर लोगों में जागरूकता बढी और बंधित श्रमिकों ने अपने अधिकार व कर्तव्य जाने।
बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए लागू की गई कुछ योजनाएं-
राज्य सरकारों द्वारा बंधुआ मजदूरों के लिए कुछ योजनाएं भी प्रारम्भ की गई। श्रम एंव रोजगार मंत्रालय द्वारा बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए मई,1978 में केन्द्रीयकृत रूप से प्रायोजित प्लान योजना आरम्भ की गई जिसके अंतर्गत इन श्रमिकों के पुनर्वास के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। बंधुआ श्रमिकों की पहचान करने के लिए जिले-वार सर्वे भी किया जाता है ताकि उन्हें शत-प्रतिशत सहायता मुहैया करवाई जा सके और अब तो इन श्रमिकों को दिए जाने वाला अनुदान 10,000 रूपए से बढा कर 20,000 रूपए कर दिया गया है । इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों को यह भी सलाह दी गई कि बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए प्रायोजित योजना को अन्य योजनाओं जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्व-रोजगार योजना, अनुसूचित जातियों के लिए विशेष संघटक योजना व जनजाति उप-योजनाओं के साथ जोडें ताकि श्रमिकों को दोगुना लाभ प्राप्त हो सके। सरकार द्वारा पुनर्वास पैकेज में कुछ बडे संघटक भी शामिल किए गए जैसे:
* भूमि विकास
* कम लागत वाली आवासीय इकाईयों का प्रावधान
* पशु पालन
* डेयरी व मुर्गी पालन
* वर्तमान कौशल विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण
* आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति
* बच्चों को शिक्षित करना व
* उनके अधिकारों की रक्षा करना।
हरियाणा, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, दिल्ली, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, उतराखण्ड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व मणिपुर राज्यों को बंधुआ श्रमिकों के सर्वेक्षण व जागरूकता सृजन कार्यक्रमों के लिए लगभग 676.00 लाख रूपए की राशि दी गई है। श्रम व रोजगार मंत्रालय के आंकडों से पता चला है कि 1997-98 के बाद ठोस प्रयासों के कारण बंधुआ मजदूरों की संख्या में भारी कमी आई है।
इन ठोस प्रयासों के माध्यम से बंधुआ श्रम की लोचनीयता कम करने के लिए अंतर्राष्टीय श्रम संस्था के साथ तमिलनाडु में पायलट योजना शुरू की गई थी जिसके आशाजनक परिणाम हासिल हुए इन प्रोत्साहक परिणामों को देखते हुए उपरोक्त परियोजनाओं को आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा व उड़ीसा में चलाए जाने का प्रयास किया जा रहा है।
सरकार राज्य सरकार के सहयोग से देश में बंधुआ मजदूरी के अभिशाप से गरीबों को मुक्त करने के लिए अनेकों रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम बना कर लागू कर रही है। अब इन बंधित श्रमिकों का भी दायित्व बनाता है कि वे जागरूक होकर और किसी प्रकार के दबाव में न आकर इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाएं और समाज की मुख्यधारा में लौटने की ओर कदम बढाए ।
इस समस्या से निपटने के लिए 25 अक्टूबर, 1975 में एक कानून बनाया गया जिसके बाद पूरे देश में बंधुआ मजदूरी प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के ठोस कदम उठाए गए और मजदूरों के़़ ऋणों को भी माफ कर दिया गया। इस कानून के बाद बंधुआ मजदूरी को एक दंडनीय अपराध माना जाने लगा। इस अधिनियम के लागू होने पर प्रत्येक श्रमिक को जबरन श्रम करने की बाध्यता से मुक्त कर दिया गया था। इस अधिनियम को राज्य सरकार द्वारा सभी राज्यों में भी लागू किया जा रहा है। यह कानून उन सभी बातों को अमान्य साबित करता है जिनके अनुसार किसी व्यक्ति को बंधुआ श्रम के रूप में अपनी सेवाएं देने के लिए बाध्य किया जा रहा हो।
बंधित श्रम पद्धति अधिनियम के द्वारा श्रमिकों को उनकी जमीन लौटा दी गई और उन्हें कारावास, जुर्माना आदि से भी मुक्त कर दिया गया और साथ ही साथ ऋण चुकाने की अवधि को भी बढाया गया। इन सभी विशेषताओं के साथ देश में बंधुआ मजदूरी को लेकर लोगों में जागरूकता बढी और बंधित श्रमिकों ने अपने अधिकार व कर्तव्य जाने।
बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए लागू की गई कुछ योजनाएं-
राज्य सरकारों द्वारा बंधुआ मजदूरों के लिए कुछ योजनाएं भी प्रारम्भ की गई। श्रम एंव रोजगार मंत्रालय द्वारा बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए मई,1978 में केन्द्रीयकृत रूप से प्रायोजित प्लान योजना आरम्भ की गई जिसके अंतर्गत इन श्रमिकों के पुनर्वास के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। बंधुआ श्रमिकों की पहचान करने के लिए जिले-वार सर्वे भी किया जाता है ताकि उन्हें शत-प्रतिशत सहायता मुहैया करवाई जा सके और अब तो इन श्रमिकों को दिए जाने वाला अनुदान 10,000 रूपए से बढा कर 20,000 रूपए कर दिया गया है । इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों को यह भी सलाह दी गई कि बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए प्रायोजित योजना को अन्य योजनाओं जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्व-रोजगार योजना, अनुसूचित जातियों के लिए विशेष संघटक योजना व जनजाति उप-योजनाओं के साथ जोडें ताकि श्रमिकों को दोगुना लाभ प्राप्त हो सके। सरकार द्वारा पुनर्वास पैकेज में कुछ बडे संघटक भी शामिल किए गए जैसे:
* भूमि विकास
* कम लागत वाली आवासीय इकाईयों का प्रावधान
* पशु पालन
* डेयरी व मुर्गी पालन
* वर्तमान कौशल विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण
* आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति
* बच्चों को शिक्षित करना व
* उनके अधिकारों की रक्षा करना।
हरियाणा, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, दिल्ली, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, उतराखण्ड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व मणिपुर राज्यों को बंधुआ श्रमिकों के सर्वेक्षण व जागरूकता सृजन कार्यक्रमों के लिए लगभग 676.00 लाख रूपए की राशि दी गई है। श्रम व रोजगार मंत्रालय के आंकडों से पता चला है कि 1997-98 के बाद ठोस प्रयासों के कारण बंधुआ मजदूरों की संख्या में भारी कमी आई है।
इन ठोस प्रयासों के माध्यम से बंधुआ श्रम की लोचनीयता कम करने के लिए अंतर्राष्टीय श्रम संस्था के साथ तमिलनाडु में पायलट योजना शुरू की गई थी जिसके आशाजनक परिणाम हासिल हुए इन प्रोत्साहक परिणामों को देखते हुए उपरोक्त परियोजनाओं को आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा व उड़ीसा में चलाए जाने का प्रयास किया जा रहा है।
सरकार राज्य सरकार के सहयोग से देश में बंधुआ मजदूरी के अभिशाप से गरीबों को मुक्त करने के लिए अनेकों रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम बना कर लागू कर रही है। अब इन बंधित श्रमिकों का भी दायित्व बनाता है कि वे जागरूक होकर और किसी प्रकार के दबाव में न आकर इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाएं और समाज की मुख्यधारा में लौटने की ओर कदम बढाए ।
बुधवार, 30 मार्च 2011
जिला कष्ट निवारण समिति की बैठक में शिकायतें सुनते श्री प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा
सिरसा, 29 मार्च। हरियाणा के मुख्य संसदीय सचिव श्री प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा ने कहा कि जिला कष्ट निवारण समिति की बैठक में झूठी शिकायतें दर्ज करवाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस में पर्चा दर्ज करवाया जाएगा। इसलिए आम जन को चाहिए कि वे समिति के एजेंडे में सही शिकायतें ही दर्ज करवाए। श्री गिल्लांखेड़ा आज स्थानीय कृषि ज्ञान केंद्र के सभागार में जिला लोक संपर्क एवं कष्ट निवारण समिति की बैठक में शिकायतें सुन रहे थे।
उन्होंने कहा कि किसी भी शिकायत की जांच पड़ताल के लिए जांच अधिकारी स्वयं मौके पर जाकर तथ्यों की रिपोर्ट प्रस्तुत करे ताकि तथ्यों के आधार पर ही शिकायत का निपटारा हो सके जिससे दोनों पक्षों की संतुष्टि भी हो। उन्होंने सुभाष चंद्र पुत्र श्रवण कुमार केहरवाला निवासी की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि जिला में कोई भी मैडीकल हाल या दवाईयों की दुकान बिना लाइसेंस के नहीं चलनी चाहिए। साथ ही इन दुकानों पर योग्य प्रमाण पत्र वाले फार्मासिस्ट व्यक्ति ही बैठे। यदि कोई अन्य व्यक्ति दुकान पर दवाई बेचता हुआ पाया जाये है तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए। श्री गिल्लांखेड़ा ने बिज्जूवाली गांव के सरपंच श्री राजाराम की शिकायत सुनते हुए आबकारी विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि किसी भी गांव में शराब का ठेका आबादी के आसपास नहीं होना चाहिए| इसके साथ-साथ ओढ़ां निवासी तेजा सिंह पुत्र रुलदू सिंह की बैंक ऋण स्वीकृत न किए जाने की शिकायत पर प्रबंधक अग्रणी बैंक को निर्देश दिए कि वे डीआरडीए व अन्य ऋण प्रायोजित एजेंसियों की सब्सिडी की राशि प्राप्त कर ऋण प्राप्तकर्ताओं को ऋण प्रदान करे ताकि ये लोग अपना रोजगार शुरु कर सके।
सिंह ने राधेश्याम पुत्र बृजलाल मंगालिया निवासी द्वारा मैसर्ज राधाकिशन बलदेव कुमार करियाणा व बीज विक्रेता मेन बाजार रानियां के खिलाफ की गई शिकायत की सुनवाई करते हुए अधिकारियों को आदेश दिए कि वे नकली बीज विक्रेताओं के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही करे और समय-समय पर किसानों को साथ लेकर विक्रेताओं के प्रस्थानों पर छापामारी करे और किसानों से भी आग्रह किया कि वे विभाग द्वारा अधिकृत बीज विक्रेताओं से ही बीज खरीदे व बीज खरीदते वक्त खरीदे गए बीज की रसीद अवश्य ले। बैठक के एजेंडे में 14 शिकायतें रखी गई थी जिनमें से अधिकतर का निपटारा कर दिया गया।
बैठक में उपायुक्त श्री युद्धबीर सिंह यालिया ने अधिकारियों से कहा कि वे कष्ट निवारण समिति के एजेंडे में शामिल सभी शिकायतों की गंभीरता से जांच कर तथ्यों की रिपोर्ट प्रस्तुत करे। उन्होंन कहा कि शिकायतकर्ता भी जिला कष्ट निवारण समिति की बैठक में स्वयं उपस्थित हो। यदि शिकायतकर्ता ही बैठक में नहीं पहुंचेंगे तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। बैठक में नगराधीश श्री एच.सी. भाटिया, जिला कांग्रेस प्रधान श्री मलकीत सिंह खोसा, कांग्रेस नेता होशियारी लाल शर्मा, सुरेश मेहता व अनिल खोड़ सहित समिति के सरकारी व गैर-सरकारी सदस्य उपस्थित थे।
रविवार, 27 मार्च 2011
कानून की सही समझ बेहद जरूरी
सिरसा, 25 मार्च| चौ. देवीलाल विश्वविध्यालय के पत्रकारिता एवम जनसंचार विभाग में चल रही 15 दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन डॉ. बी. पी. सिंह विधार्थियों से रू-ब-रू हुए| इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में प्रिंट व साइबर मीडिया के लिए गुण विकसित करना है| विद्यार्थी भी इस कार्यशाला का लाभ उठाते हुए अपने करियर के प्रति जागरूक हुए|
डॉ. बी. पी. सिंह देवीलाल विश्वविध्यालय में ला विभाग के डीन व सेक्रेटरी हैं| कार्यशाला में उन्होंने कानून व्यवस्था व विभिन्न प्रकार के कानूनों की जानकारी दी और बताया की कानून की सही समझ होना बेहद जरूरी है अन्यथा अधूरी जानकारी के कारण आप कानून के चक्रव्यूह में फंस सकते हैं| उन्होंने संवैधानिक कानून को सबसे पहला और मुख्य कानून बताया| डॉ. सिंह ने कहा की समाज में दो तरह के कानून होते हैं | जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए सज़ा निर्धारित की गई है| पहला कानून substaintive कानून जो अधिकारों - कर्तव्यों की रक्षा के लिए व नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए बनाया गया है| अलग-अलग तरह के अपराधों के लिए क्या-क्या सज़ा दी जाती है और कौन सी धरा लगाई जाती है के बारे में कार्यशाला में मौजूद विद्यार्थियों को विस्तार से जानकारी दी|
कार्यशाला के दूसरे भाग में प्रतिभागियों ने सवाल-जवाब पूछने आरम्भ किये| विद्यार्थियों की जिज्ञासा को शांत करते हुए उन्होंने अंत में कहा की भविष्य में किसी भी क्षेत्र में करियर बनाने से पहले पूर्ण रूप से मुख्य कानूनों की जानकारी होना आवश्यक है | जिस तरह आधा सच पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है उसी तरह कानून की या किसी भी विषय के बारे में आधी-अधूरी जानकारी भी आपके व्यक्तित्व पर बुरा प्रभाव डालती है | कार्यशाला में विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान, प्रो. कृष्ण कुमार सहित अन्य प्राध्यापक भी मौजूद थे|
सदस्यता लें
संदेश (Atom)