भारत में बढ़ती जनसंख्या के बाद दूसरी बड़ी समस्या बंधुआ मजदूरी की है। ये वो बंधुआ मजदूर है जो अपनी दो वक्त की रोटी के लिए गुलामी के भंवर में इस कदर फंस जाते हैं और इसे अपनी नियति मान लेते हैं। ये गरीब, कमजोर और लाचार बंधुआ लोग जमींदारों और साहूकारों के हाथों सालों साल शोषण का शिकार होते रहते हैं ।
इस समस्या से निपटने के लिए 25 अक्टूबर, 1975 में एक कानून बनाया गया जिसके बाद पूरे देश में बंधुआ मजदूरी प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के ठोस कदम उठाए गए और मजदूरों के़़ ऋणों को भी माफ कर दिया गया। इस कानून के बाद बंधुआ मजदूरी को एक दंडनीय अपराध माना जाने लगा। इस अधिनियम के लागू होने पर प्रत्येक श्रमिक को जबरन श्रम करने की बाध्यता से मुक्त कर दिया गया था। इस अधिनियम को राज्य सरकार द्वारा सभी राज्यों में भी लागू किया जा रहा है। यह कानून उन सभी बातों को अमान्य साबित करता है जिनके अनुसार किसी व्यक्ति को बंधुआ श्रम के रूप में अपनी सेवाएं देने के लिए बाध्य किया जा रहा हो।
बंधित श्रम पद्धति अधिनियम के द्वारा श्रमिकों को उनकी जमीन लौटा दी गई और उन्हें कारावास, जुर्माना आदि से भी मुक्त कर दिया गया और साथ ही साथ ऋण चुकाने की अवधि को भी बढाया गया। इन सभी विशेषताओं के साथ देश में बंधुआ मजदूरी को लेकर लोगों में जागरूकता बढी और बंधित श्रमिकों ने अपने अधिकार व कर्तव्य जाने।
बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए लागू की गई कुछ योजनाएं-
राज्य सरकारों द्वारा बंधुआ मजदूरों के लिए कुछ योजनाएं भी प्रारम्भ की गई। श्रम एंव रोजगार मंत्रालय द्वारा बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए मई,1978 में केन्द्रीयकृत रूप से प्रायोजित प्लान योजना आरम्भ की गई जिसके अंतर्गत इन श्रमिकों के पुनर्वास के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। बंधुआ श्रमिकों की पहचान करने के लिए जिले-वार सर्वे भी किया जाता है ताकि उन्हें शत-प्रतिशत सहायता मुहैया करवाई जा सके और अब तो इन श्रमिकों को दिए जाने वाला अनुदान 10,000 रूपए से बढा कर 20,000 रूपए कर दिया गया है । इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों को यह भी सलाह दी गई कि बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए प्रायोजित योजना को अन्य योजनाओं जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्व-रोजगार योजना, अनुसूचित जातियों के लिए विशेष संघटक योजना व जनजाति उप-योजनाओं के साथ जोडें ताकि श्रमिकों को दोगुना लाभ प्राप्त हो सके। सरकार द्वारा पुनर्वास पैकेज में कुछ बडे संघटक भी शामिल किए गए जैसे:
* भूमि विकास
* कम लागत वाली आवासीय इकाईयों का प्रावधान
* पशु पालन
* डेयरी व मुर्गी पालन
* वर्तमान कौशल विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण
* आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति
* बच्चों को शिक्षित करना व
* उनके अधिकारों की रक्षा करना।
हरियाणा, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, दिल्ली, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, उतराखण्ड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व मणिपुर राज्यों को बंधुआ श्रमिकों के सर्वेक्षण व जागरूकता सृजन कार्यक्रमों के लिए लगभग 676.00 लाख रूपए की राशि दी गई है। श्रम व रोजगार मंत्रालय के आंकडों से पता चला है कि 1997-98 के बाद ठोस प्रयासों के कारण बंधुआ मजदूरों की संख्या में भारी कमी आई है।
इन ठोस प्रयासों के माध्यम से बंधुआ श्रम की लोचनीयता कम करने के लिए अंतर्राष्टीय श्रम संस्था के साथ तमिलनाडु में पायलट योजना शुरू की गई थी जिसके आशाजनक परिणाम हासिल हुए इन प्रोत्साहक परिणामों को देखते हुए उपरोक्त परियोजनाओं को आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा व उड़ीसा में चलाए जाने का प्रयास किया जा रहा है।
सरकार राज्य सरकार के सहयोग से देश में बंधुआ मजदूरी के अभिशाप से गरीबों को मुक्त करने के लिए अनेकों रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम बना कर लागू कर रही है। अब इन बंधित श्रमिकों का भी दायित्व बनाता है कि वे जागरूक होकर और किसी प्रकार के दबाव में न आकर इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाएं और समाज की मुख्यधारा में लौटने की ओर कदम बढाए ।
इस समस्या से निपटने के लिए 25 अक्टूबर, 1975 में एक कानून बनाया गया जिसके बाद पूरे देश में बंधुआ मजदूरी प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के ठोस कदम उठाए गए और मजदूरों के़़ ऋणों को भी माफ कर दिया गया। इस कानून के बाद बंधुआ मजदूरी को एक दंडनीय अपराध माना जाने लगा। इस अधिनियम के लागू होने पर प्रत्येक श्रमिक को जबरन श्रम करने की बाध्यता से मुक्त कर दिया गया था। इस अधिनियम को राज्य सरकार द्वारा सभी राज्यों में भी लागू किया जा रहा है। यह कानून उन सभी बातों को अमान्य साबित करता है जिनके अनुसार किसी व्यक्ति को बंधुआ श्रम के रूप में अपनी सेवाएं देने के लिए बाध्य किया जा रहा हो।
बंधित श्रम पद्धति अधिनियम के द्वारा श्रमिकों को उनकी जमीन लौटा दी गई और उन्हें कारावास, जुर्माना आदि से भी मुक्त कर दिया गया और साथ ही साथ ऋण चुकाने की अवधि को भी बढाया गया। इन सभी विशेषताओं के साथ देश में बंधुआ मजदूरी को लेकर लोगों में जागरूकता बढी और बंधित श्रमिकों ने अपने अधिकार व कर्तव्य जाने।
बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए लागू की गई कुछ योजनाएं-
राज्य सरकारों द्वारा बंधुआ मजदूरों के लिए कुछ योजनाएं भी प्रारम्भ की गई। श्रम एंव रोजगार मंत्रालय द्वारा बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए मई,1978 में केन्द्रीयकृत रूप से प्रायोजित प्लान योजना आरम्भ की गई जिसके अंतर्गत इन श्रमिकों के पुनर्वास के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। बंधुआ श्रमिकों की पहचान करने के लिए जिले-वार सर्वे भी किया जाता है ताकि उन्हें शत-प्रतिशत सहायता मुहैया करवाई जा सके और अब तो इन श्रमिकों को दिए जाने वाला अनुदान 10,000 रूपए से बढा कर 20,000 रूपए कर दिया गया है । इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों को यह भी सलाह दी गई कि बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए प्रायोजित योजना को अन्य योजनाओं जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्व-रोजगार योजना, अनुसूचित जातियों के लिए विशेष संघटक योजना व जनजाति उप-योजनाओं के साथ जोडें ताकि श्रमिकों को दोगुना लाभ प्राप्त हो सके। सरकार द्वारा पुनर्वास पैकेज में कुछ बडे संघटक भी शामिल किए गए जैसे:
* भूमि विकास
* कम लागत वाली आवासीय इकाईयों का प्रावधान
* पशु पालन
* डेयरी व मुर्गी पालन
* वर्तमान कौशल विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण
* आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति
* बच्चों को शिक्षित करना व
* उनके अधिकारों की रक्षा करना।
हरियाणा, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, दिल्ली, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, उतराखण्ड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व मणिपुर राज्यों को बंधुआ श्रमिकों के सर्वेक्षण व जागरूकता सृजन कार्यक्रमों के लिए लगभग 676.00 लाख रूपए की राशि दी गई है। श्रम व रोजगार मंत्रालय के आंकडों से पता चला है कि 1997-98 के बाद ठोस प्रयासों के कारण बंधुआ मजदूरों की संख्या में भारी कमी आई है।
इन ठोस प्रयासों के माध्यम से बंधुआ श्रम की लोचनीयता कम करने के लिए अंतर्राष्टीय श्रम संस्था के साथ तमिलनाडु में पायलट योजना शुरू की गई थी जिसके आशाजनक परिणाम हासिल हुए इन प्रोत्साहक परिणामों को देखते हुए उपरोक्त परियोजनाओं को आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा व उड़ीसा में चलाए जाने का प्रयास किया जा रहा है।
सरकार राज्य सरकार के सहयोग से देश में बंधुआ मजदूरी के अभिशाप से गरीबों को मुक्त करने के लिए अनेकों रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम बना कर लागू कर रही है। अब इन बंधित श्रमिकों का भी दायित्व बनाता है कि वे जागरूक होकर और किसी प्रकार के दबाव में न आकर इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाएं और समाज की मुख्यधारा में लौटने की ओर कदम बढाए ।