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Need create wants, Wants create tension, Tension creates action And Action creates SATISFACTION

शनिवार, 4 सितंबर 2010

भ्रष्टाचार लोगों का राष्ट्रमंडल खेल

कामनवेल्थ खेल जिन्हें हम राष्ट्रमंडल खेलों के नाम से जानते हैं। इन दिनों ये राष्ट्रमंडल खेल चर्चा का विषय बने हुए हैं। भारत सरकार का ध्यान इन दिनों राष्ट्रमंडल खलों पर ही टिका हुआ है। जहाँ एक तरफ भारत सरकार राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी करने को अपना सौभाग्य समझ रही है वहीँ इन खेलों के कारण सरकार कई परेशानियों से घिरी हुई है। इन सब बातों के बावजूद भी सरकार राष्ट्रमंडल खेलों को सम्पन्न कराने में हर संभव प्रयास कर रही है।
            इन खेलों का आयोजन करीब ८० वर्ष पहले हुआ था। इन खेलों में वो देश भाग लेते हैं जो कभी न कभी ब्रिटिश राज के नियंत्रण में रहे हों। इन खेलों का आयोजन पहली बार १९३० में हुआ था। उस समय इन खेलों का नाम ब्रिटिश एम्पायर गेम्स था। ये खेल कनाडा के हेमिल्टन में आयोजित किये गए थे। १९५४ में इनका नाम बदलकर ब्रिटिश एम्पायर एंव कोमनवेल्थ गेम्स रखा गया। १९७८ में ये खेल राष्ट्रमंडल खेलों के नाम से जाने गए। इस वर्ष इन खेलों में ७१ देशों की टीमें हिस्सा ले रही हैं। इनमें केवल ६ ही ऐसी टीमें हैं जो अब तक हुए सभी राष्ट्रमंडल खेलों में भाग ले चुकी हैं। इन देशों में आस्ट्रेलिया,कनाडा,यूके,न्यूजीलेंड,स्काट्लेंड और वेल्स शामिल हैं।
           इन खेलों में सभी देश प्राचीन समय से चली आ रही प्रथा के अनुसार स्थान ग्रहण करते हैं। खेलों की शुरुआत व समाप्ति पर होने वाली परेड में सभी देश अंग्रेजी अक्षरों के क्रम के अनुसार स्थान लेते हैं। पहले स्थान पर पिछले राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजक देश होता है और अंतिम स्थान पर खेलों का आयोजन करने वाला वर्तमान देश होता है। पुरस्कार दिए जाने वाले मंच पर तीन झंडे लहराते हैं। ये झंडे पिछले खेलों का मेजबान देश,मौजूदा मेजबान देश,और अगले आयोजक देश क झंडे होते हैं। इन खेलों का आयोजन ४ वर्षों क बाद किया जाता है.
आम तौर पर ब्रिटेन की रानी इन खेलों क शुरूआती सत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं लेकिन इस बार हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में वो शरीक नहीं हो सकेंगी। यह ४० वर्ष में पहली बार होगा कि रानी एलिजाबेथ इन खेलों में शरीक नहीं होंगी। उनके प्रतिनिधि के तौर पर प्रिंस चार्ल्स भाग लेंगे।
           भारत ने अपनी राष्ट्रमंडल खेलों कि यात्रा ७ साल पहले शुरू की थी। भारत ने पहली बार १ मई २००३ को राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी का प्रस्ताव भेजा था। इसके बाद भारत को पहली बार १३ नवम्बर २००३ को जमैका में इन खेलों की मेजबानी मिली।
         अगले महीने के शुरूआती दिनों में शुरू होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन करने का अवसर भी भारत को ही मिला है। इन खेलों की अध्यक्षता पहले सुरेश कलमाड़ी को दी गयी थी। इन खेलों की वागडोर कलमाड़ी के हाथ में आते ही इन खेलों पर कई प्रश्न उठ रहे थे। जहाँ एक तरफ भारत सरकार राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी करने को अपना सौभाग्य समझ रही है वहीँ इन खेलों के कारण सरकार पर भी कई आरोप लगते रहे हैं। कभी भ्रष्टाचार तो कभी खेलों के आयोजन को लेकर।
         भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे देश के सबसे बड़े खेलों के आयोजन को सरकार ने अपने हाथों में ले लिया है। राष्ट्रमंडल खेलों की संगठित कमेटी के चेयरमेन सुरेश कलमाड़ी से सभी अधिकार छीन लिए हैं। उन्हें हर दायित्व से मुक्त कर दिया गया है। अब कमेटी के अधिकारी प्रधानमंत्री द्वारा बनाये गए १० नौकरशाहों क पेनल को रिपोर्ट करेंगे। इन सभी लोगों को खेल से जुडी अलग-अलग जिम्मेदारी सौंप दी गयी है। खुद प्रधानमंत्री भी अब सक्रिय हो गए हैं। संभव:त वे इन दिनों उन स्थानों का दौरा करेंगे जहाँ राष्ट्रमंडल खेलों की प्रतियोगिताएं होनी हैं।
         इन खेलों को लेकर एक और समस्या खड़ी हो गयी है। इनके आयोजन पर बड़े पैमाने पर पैसे की हेरा-फेरी के आरोप लग रहे हैं। साथ ही साथ प्रायोजकों ने भी अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं जो इन खेलों पर पैसा लगाने वाले हैं। इन प्रायोजकों को इस बात का दर सता रहा है कि इतना पैसा लगाना समझदारी है या नहीं।
        राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन ३ से १२ अक्टूबर २०१० तक दिल्ली में होने वाला है, जिसके लिए कई वर्षों से बड़ी धूमधाम से तैयारी चल रही है। भारत सरकार और दिल्ली सरकार ने इन खेलों के समय पर निर्माण कार्य पूरा करने के लिए पूरी ताकत और धन झोंक दिया है। एक अनुमान के अनुसार इन खेलों पर तकरीबन ४०००० करोड़ रुपये खर्च होंगे मतलब ४ करोड़ ४४ लाख रुपये रोजाना। कहा जा रहा है कि यह अभी तक के सबसे महंगे राष्ट्रमंडल खेल होंगे। यह भी तब, जब भारत प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से दुनिया के निम्नतम देशों में से एक है। विश्व भूख सूचकांक में हमारा स्थान इथियोपिया से भी नीचे है व ७७ प्रतिशत के लगभग भारत की जनसंख्या २० रुपये प्रति व्यक्ति (प्रति दिन) आय पर गुजारा कर रही है।
        राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली में बन रहे फ्लाईओवरों व पुलों की संख्या शायद सैकड़ा पार कर जायेगी। एक-एक फ्लाई ओवर के निर्माण की लागत ६० से ११० करोड़ रुपये के बीच होगी। हजारों की संख्या में आधुनिक वातानुकूलित बसों के ऑर्डर दिए गए हैं। कुल ६ क्लस्टर में ११ स्टेडियम या स्पर्द्धा स्थल तैयार किए जा रहे हैं। यमुना की तलछटी में खेलगाँव का निर्माण १५८ एकड़ के विशाल क्षेत्र में 1,०३८ करोड़ रुपये की लागत से हो रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी पाने के लिए भारतीय ओलंपिक संघ ने सारे खिलाड़ियों को मुफ्त प्रशिक्षण, मुफ्त हवाई यात्रा व ठहरने-खाने की मुफ्त व्यवस्था का प्रस्ताव दिया था।
         एक ओर जहाँ हमारे देश में लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। आज दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे, कुपोषित, आवासहीन व अशिक्षित लोग भारत में रह रहे हैं। गरीबों को सस्ता राशन, बिजली, पेयजल, इलाज के लिए पूरी व्यवस्था, बुढ़ापे में पेंशन और स्कूल में पूरे स्थायी शिक्षक एवं भवन व अन्य सुविधायें देने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। फिर सरकार के पास इस बारह दिनी आयोजन के लिए इतना पैसा कहाँ से आया ?
         वर्ष 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की वेबसाइट में इसका उद्देश्य बताया गया है:- ‘हरेक भारतीयों में खेलों के प्रति जागरूकता और खेल संस्कृति को पैदा करना।’ क्रिकेट व टेनिस के अलावा अन्य सारे खेल भारत में लंबे समय से उपेक्षित हो रहे हैं। खेलों का तेजी से बाजारीकरण व व्यवसायीकरण हुआ है। पैसे कमाने की होड़ ने खेलों में प्रतिबंधित दवाओं के सेवन, सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग को बढ़ावा दिया है। गाँवों व छोटे शहरों में खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने व प्रोत्साहित करने का कोई प्रयास केन्द्र व राज्य सरकारें नहीं कर रही हैं। गाँवों के स्कूलों में न तो खेल सामग्री है, न प्रशिक्षक और न ही खेल के मैदान। 1982 में भी भारत ने विशाल धनराशि खर्च करके एशियाई खेलों का आयोजन किया था। उसके बाद न तो देश के अंदर खेलों को विशेष बढ़ावा मिला और न ही अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से भारत की स्थिति में कुछ सुधार हुआ। कई सारे स्टेडियम जो उस समय बने थे, वे या तो खाली पड़े रहे या दूसरे तरह के कामों, जैसे शादी-विवाह में इस्तेमाल होते रहे और उनके रखरखाव का खर्च निकालना मुश्किल पड़ रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों के निर्माण कार्यों में पर्यावरण नियमों व श्रम नियमों का भी उल्लंघन हो रहा है। ठेकेदारों के माध्यम से बाहर से सस्ते मजदूरों को बुलाया गया है, जिन्हें संगठित होने, बेहतर मजदूरी माँगने, कार्यस्थल पर सुरक्षा, आवास व अन्य सुविधायें माँगने का कोई अधिकार नही है। इन कानूनों के उल्लंघन पर सर्वोच्च न्यायालय और केन्द्र सरकार दोनों चुप हैं। आखिर क्यों ? मजदूरों के शोषण व पर्यावरण के विनाश के बदले ये थोड़े समय की अंतरराष्ट्रीय वाहवाही क्या हमें ज्यादा प्रिय है ? इस पूरे आयोजन में किसे फायदा होने वाला है ? देश के खिलाड़ियों को तो लगता नहीं, आम-आदमी को भी नहीं। फायदा होने वाला है- बड़ी-बड़ी भारतीय व बहुराष्ट्रीय कंपनियों, ठेकेदारों और कमीशनखोर नेताओं को।
           दूसरी तरफ झुग्गी बस्तियों में रहने वाली दिल्ली की ६५ प्रतिशत जनता को शहर से दूर फेंका जा रहा है। तथाकथित सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों रेड़ी-खोमचे वालों का व्यवसाय बंद करने की नीति बनाई गयी है। दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया आदेश के मुताबिक दिल्ली में रह रहे अधिकांश भिखारियों को अक्टूबर २०१० के पहले उनके राज्य वापस भेजा जाएगा। इस तरह के आयोजनों में बड़ी-बड़ी कंपनियों को प्रायोजक बनाया जाता है, जिन्हें इन आयोजनों में विज्ञापनों इत्यादि से बहुत कमाने को मिलता है।
           कहा जा रहा है कि इस आयोजन में बड़ी मात्रा में विदेशी पर्यटक आएँगे। पर्यटन से आय होगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। प्रश्न यह है कि कितनी आय होगी ? और उसके लिए हमारे देश के संसाधनों का दुरुपयोग लोगों की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज करके करना कितना जायज है ? क्या इस विशाल खर्चे का १० प्रतिशत भी टिकटों की बिक्री और पर्यटन की आय से मिलेगा ? हमें आजाद हुए ६२ साल हो चुके हैं। लेकिन हमने गुलामी को ऐसे आत्मसात कर लिया है कि कोई यह प्रश्न ही नहीं पूछता कि आखिर राष्ट्रमंडल खेल हैं क्या ? राष्ट्रमंडल उन देशों का समूह है, जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहे हैं। इन खेलों की शुरूआत १९१८ में ‘साम्राज्य के उत्सव’ के रूप में हुई थी। फिर आज जब हमारा देश एक स्वतंत्र देश हैं, तब हम क्यों इसमें शामिल हैं ? गुलामी के प्रतीकों को ढोने में क्यों राष्ट्रगौरव व राष्ट्रसम्मान का अनुभव करते हैं ?
         एक झूठी राष्ट्रीयता व राष्ट्रभावना को फैलाकर लोगों को बहलाने का व जनता का ध्यान मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का कार्य हमारी सरकार कर रही है। इस आयोजन का उद्देश्य है, भारत को आर्थिक महाशक्ति के रूप में पेश करना, जिससे लोग अपनी हकीकत व असलियत को भूलकर झूठे राष्ट्रीय गर्व व जय-जयकार में लग जायें। राष्ट्रमंडल खेल इस देश की गुलामी,संसाधनों की लूट,बर्बादी,विलासिता और गलत खेल संस्कृति का प्रतीक है। हमारे देश की सरकार को कोई अधिकार नही है कि वह देश के संसाधनों को गुलामी और ऐयाशी को प्रतिष्ठित करने वाले ऐसे आयोजनों में लुटे और लुटाए।
         एक तरफ सरकार अपनी झूठी शान के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है वहीं भ्रष्टाचार के मामलों से जुडी कई बातों से लगातार पर्दा हटता जा रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के दौरान हुई अनियमितताओं की परतें एक के बाद एक कई हफ्तों से एक खुलती ही जा रही हैं। इसकी शुरुआत ब्रिटेन की संदिग्‍ध फर्म एएम फिल्म्स को कथित रूप से करोड़ों रुपये के भुगतान की बात सामने आने से हुई। उसके बाद स्टेडियमों के निर्माण में व्यापक घपलों की शिकायत, प्रायोजक लाने के लिए दी गई दलाली, राष्ट्रमंडल खेलों के लिए किराए पर लिए जा रहे सामानों के एवज में दिया गया किराया और ओसी के अफसरों की कई विदेश यात्राओं सहित कई अनियमितताओं पर सवाल उठ चुके हैं।
          मशीन की कीमत से ज्यादा किराया:-राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति ने खिलाड़ियों के लिए ट्रेड मिल मशीनें ४५ दिन के लिए प्रति मशीन ९,७५,000 रुपये की दर से किराए पर ली गई है। दुनिया में सबसे बढ़िया क्वालिटी की ट्रेड मिल यूके की हैरोड्स कंपनी बनाती है और इसकी कीमत ज्यादा से ज्यादा 7 लाख रुपये है। लेकिन यहां करीब दस लाख रुपए केवल किराए के लिए दिए जा रहे हैं। इसी तरह कुर्सियां और फ्रिज भी कई गुना ज्यादा किराए पर लिए गए हैं। कुर्सियों की दर प्रति कुर्सी 8,378 रुपए है और प्रति फ्रिज 42,202 रुपए दिए जा रहे हैं। हांलांकि इन वस्तुओं की कुल संख्या अभी पूरी तरह तय नहीं है, लेकिन इस मद में कुल 650 करोड़ रुपए के ठेके चार कंपनियों को आवंटित किए गए हैं। सबसे बड़ा 230 करोड़ रुपये का ठेका पिको- दीपाली फर्म को दिया गया है।
         बिजली 80 रुपए प्रति यूनिट :-बिजली की दरें भी बाजार भाव से काफी ज्यादा दी जा रही हैं। बाजार में बिजली का मार्केट भाव 8- से 10 रुपए प्रति यूनिट चल रहा है। लेकिन इन खेलों के लिए बिजली करीब 80 रुपए प्रति यूनिट की दर से ली जा रही है।
         खेल के नाम पर विदेश यात्राओं का ‘खेल’ :-राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर आयोजन समिति के क्रियाकलापों पर लगे प्रश्नचिन्ह के बाद, खेल मंत्रालय भी संदेह के दायरे में आ गया है। एक आरटीआई के जवाब में खेल मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि खेलों की तैयारी के तहत 2005 से 2009 के बीच उनके अफसरों ने करीब 90 विदेश दौरे किये और आश्चर्य इस बात का है कि इन दौरों में कुछ देश तो ऐसे भी थे, जो राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा नहीं हैं। एक आरटीआई के जवाब में मंत्रालय ने बताया कि सबसे ज्यादा 11 बार यात्राएं संयुक्त सचिव एस कृष्णन ने की। दूसरे संयुक्त सचिव राहुल भटनागर ने 10 और इसी स्तर के एक अन्य अधिकारी आई श्रीनिवास ने 8 बार विदेश यात्राएं कीं। इन सभी ने चीन, क्यूबा, कुवैत और दक्षिण कोरिया का भी दौरा किया, जो राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा नहीं हैं।
          कॉमनवेल्थ के चक्कर में कट गए 40 हजार पेड़:- इन खेलों की बदौलत दिल्ली में बड़े पैमाने पर इन्फ्रास्ट और ट्रांसपोर्ट के प्रोजेक्ट चल रहे हैं।लेकिन इसके लिए राजधानी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। दिल्ली मेट्रो, ढेरों फ्लाईओवर और गेम्स से जुड़े दूसरी परियाजनाओं के लिए, पिछले कुछ सालों के दौरान, 40 हजार हरे-भरे पेड़ों की कुर्बानी दी गई है। हालांकि, शहर का ग्रीन कवर हर साल एक फीसदी की दर से बढ़ा रहा है, जो काटे गए पेड़ों की जगह लगाए जाने वाले पौधों की वजह से है।
          सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अकेले मेट्रो के लिए 4340 पेड़ काटे गए हैं 30 फ्लाईओवरों के लिए 8000 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई। अफसरों का कहना है कि 2007-08 के बीच 18 शहरी वन बनाए गए हैं और हर काटे गए पेड़ के एवज में 10 नए पौधे लगाए गए हैं।
           इन सब आंकड़ों को जानने के बाद भी सरकार क्या साबित करना चाहती है। क्या सरकार हमें हंमेशा ऐसे ही उन देशों के अधीन रखना चाहती है जिन देशों ने न जाने कितने अत्याचार हम लोगों पर किये थे। आज उन्ही के चलाये हुए इन राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी करने को भारत अपना सौभाग्य समझ रही है। वाह रे "मेरा भारत महान १०० में से ९९ बेईमान"।
           एक जागरूक भारतीय और एक मीडिया प्रोफेशनल की सोच रखने के बाद अगर आप मेरी राय जानना चाहें तो मैं इन खेलों के होने से कतई संतुष्ट नहीं हूँ और मेरे जैसे और भी न जाने कितने लोग होंगे जो इन खेलों को कभी भी देश के विकास का आधार नहीं मानते। मेरा तो मानना है कि सरकार जितना पैसा इन खेलों पर बर्बाद कर रही है उसमे से अगर २० प्रतिशत पैसा भी सरकार देश के विकास पर लगाये तो कुछ तो इस देश में सुधार होगा पर हमारी सरकार के पास इन बातों को सोचने का वक़्त कहाँ। मेरे मन में राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर जो कुछ भी था मैंने तो लिख दिया अब आपकी बारी।

 

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