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Need create wants, Wants create tension, Tension creates action And Action creates SATISFACTION

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

टीवी की सांस्कृतिक समस्या

सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक बार फिर से हस्तक्षेप किया है| उसके पास शिकायते थी और उसके सामने समस्याएं भी थी कि "बिग बॉस" और "राखी का इन्साफ" नमक रियलिटी शो में जिस तरह के सीन और जैसी अशिष्ट भाषा का दिखाई जा रही है वह औचित्य कि हदों को पार कर रही है| गाली गलौच की मात्र बढ़ रही है और अशोभनीय दृश्यों की मात्र बढ़ रही है| चिंतित मंत्रालय और क्या करता ? उसने जो किया वो ठीक किया | चैंनलों के कार्यक्रमों  को प्राइम टाइम से हटा कर रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक दिखने का आदेश दिया है| यह भी कहा गया है कि इन्हें दिखने से पहले चेतावनी दी जनि चाहिए कि यह कार्यक्रम बछो के देखने लायक नहीं है| यह भी कहा कि न्यूज़ चैनल अपने प्राइम टाइम की या उससे पहले की ख़बरों में कई बार ऐसे कार्यक्रमों के प्रोमोज दिखाते रहते हैं| यह बंद होना चाहिए| स्पष्ट है कि आदेश इन कार्यक्रमों को को ' रेगुलेट ' करने के लिए आया, न कि इन पर प्रतिबंध लगाने के लिए आया| लेकिन चैनलों ने इस आदेश को आजादी में हस्तक्षेप माना है| इस पृष्ठ भूमि ने एक बड़ी सांस्कृतिक बहस के मुद्दे खोल दिए है| इस मसले पर आम जनता के पक्ष में बोलती सरकार का पक्ष है कि ये रियलिटी शो "रियलिटी" के नाम पर कृत्रिम, फूहड़, अशलील, और अमर्यादित जीवन शैली और व्यवहार को दिखाते रहते हैं| कार्यक्रमों और निर्माताओं को बढ़िया 'टीआरपी' मिलती है| कार्यक्रमों को बनाने वालों का कहना है कि जनता को हम वही दिखाते है जो वो देखना चाहती है| देखने के लिए उनकी ओर से कोई जबरदस्ती नही है| आपको देखना है तो आप देखें| कार्यक्रम के चुनाव का हक आपका है| इस प्रक्रिया में सरकार का हस्तक्षेप ठीक नहीं| यह तो सरासर तानाशाही हुई| अधिकांश हिन्दुस्तानी घरों में केवल एक ही टीवी सेट होता है और उसी से पूरा परिवार टीवी देखता है| हिस तरह की संस्कृति इन कार्यक्रमों में दिखाई जाती है वह तो वयस्कों की दुनिया के और अधिक उलट है| इस प्रक्रिया में 'नागरिक स्पेस' और 'नागरिकता' के मूल्य नहीं बनते और न ही एक दूसरे को समझने के मूल्य बन पते है| न ही नागरिक संस्कृति बनती है और न ही कहीं रचनात्मकता नजर आती है, इनके अलावा क्रूरता, हिंसक व्यवहार, नंगई से भरी भाषा का निर्माण होता है| इससे समाज पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण पामेला एंडरसन है वो एपिसोड तो किसी से भी छुपे नहीं है| अब तो असहिष्णुता और हिंसा आम बात हो गई है| अगर दूसरी और हम देखे तो राखी का इन्साफ भी किसी से पीछे नहीं है| राखी ने तो एक व्यक्ति को टीवी पर ही 'नामर्द' कह दिया| कुछ दिन बाद वह मर गया| उसके घर वालों का कहना है कि नामर्द कहने से उसने अपने  आप को अपमानित महसूस किया और डिप्रेशन के कारण मर गया| उसके बाद उसके प्रति हमदर्दी जताने तक के लिए न तो राखी आई और न ही चैनल आया|
क्या आम आदमी आपके कार्यक्रम के लिए 'गिनिपग' है, जिन्हें दिखा कर आप करोडो कमाते  हो  और जब  जिम्मेदारी  की  बात  आई  तो  पीठ  दिखाते  है?  ऐसे  कार्यक्रमों  से  लोग  कई  ऐसे  ही  सवाल  पूछते  है  जिनके  जवाब नदारद  रहते  हैं| इस  तरह  के  कार्यक्रमों  पर  तो  सवाल  उठने  ही  चाहिए, बहस  होनी  ही  चाहिए , और  जवाबदेही  भी  फिक्स होनी  चाहिए|
इमोशनल अत्याचार  और रोडीज भी ऐसे  ही रियलिटी  शो  है, जिन  पर  बहस  की जानी चाहिए  कि वे दर्शकों  को  कौन  से  मूल्य  देते  है ? किसी  कार्यक्रम  पर  प्रतिबंध लगाना  एक  अलग  बात  है  और  उसे  रेगुलेट करना, उनका  नियमन  करना  एक  अलग  बात |  प्रतिबंध  का  तो  कोई  ओचित्य  ही  नही  है , लेकिन  नियमन  की जरुरत  तो  है |अरबों  रुपयों  के  टीवी  मनोरंजन  उद्योग  के  लिए  हमारे  यहाँ  किसी  भी  तरह  के  कंटेंट  की  निगरानी  की  व्यवस्था  नहीं  है . इसलिए  सांस्कृतिक  समस्याए  पैदा  होती  रहती  है . अदालत  का  फैसला  जो  भी  हो , यह  उचित  अवसर  है की निजी  मनोरंजन  चैंनल सरकार के साथ  बैठ  कर  वैसी  ही  एक आत्मनियांत्रिक आचार  सहिंता  के  बारे  में सोचें  जिस  तरह  की  अचार  सहिंता  26 नवम्बर  के  आतंकी  हमले  के  बाद  न्यूज़  ब्रोडकास्ट  ने  बने  है ......





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